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Tuesday, August 31, 2010

कान्हा मांगू तेरा संग

हर रूप
हर रंग
कान्हा मांगू
तेरा संग
शिशु तुमसा
ममतत्व जगाये
सखा तुमसा
दौड़ा आये
प्रिय तुमसा
नेह बढाए
साथी तुमसा
हर वचन निभाये
चरणों में जब
नयन लगाऊं
ये जीवन
सार्थक हो जाए
"आपसभी को कृष्णजन्मोत्सव की शुभकामनाये "

Thursday, August 19, 2010

द्रुपदसुता "याज्ञसेनी " के लिए .....

नियति और दुर्गति का यदि संयोग देखना हो तो द्रुपद पुत्री कृष्णा (द्रौपदी) से सजीव कोई उदहारण नहीं है, उसकी स्वयं की नियति के साथ वह कुरुवंश के पतन की नियति भी बनी .....



"जीता उसने जिसको मन हारी

इश्वर की थी वो आभारी

बंटी अन्नं के दानो सी वो

टूटी बिखरी नियति से हारी

पिता गर्व का विषय थी वो

जन परिहास का विषय बनी

कुलटा,पतिता बहुपुरुष गामिनी

आक्षेपों की भेंट चढ़ी

पुन: सहेजा पुन: समेटा

बनी वंश की जीवन शक्ति

नग्न धरा पर सोई वो

तज विलास,वैभव आसक्ति

अपनों के हांथो छली सदा

अनुत्तरित हर प्रश्न रहा

द्यूत  में कैसे दाव लगी

रानी से दासी क्यों बनी

जिनके हांथो आशीष मिले

चीरहरण वो देखते रहे

अपमान की अग्नि से

दग्ध ह्रदय

हर पीड़ा कृष्ण से कहे

सखी थी लीलाधर की

फिर इतने कष्ट क्यों सहे

(क्रमश:)

जितनी बार चित्रा चतुर्वेदी जी की महाभारती पढ़ती हूँ उतना अधिक मन एं सम्मान बढ़ जाता है द्रुपदसुता "याज्ञसेनी " के लिए

Monday, August 16, 2010

ये धोखा है प्यार नहीं

एक कच्ची सी नज़्म लिखी


जो पकने को तैयार नहीं

मैं शमा बनी वो परवाना

वो जलने को तैयार नहीं

आहें भी भरी आंसू भी बहे

दिल मिलने को तैयार नहीं

आज़ादी दी और पंख दिए

वो उड़ने को तैयार नहीं

सब जग छोड़ा जिनकी खातिर

वो जुड़ने को तैयार नहीं

पर्वत से अकड़े बैठे है

वो झुकने को तैयार नहीं

हमको पक्का यकीन है

ये धोखा है प्यार नहीं

Wednesday, August 11, 2010

हम तो छप गए ...रवीश जी को बहुत बहुत धन्यवाद

- Guest column - Vimarsh - LiveHindustan.com


सच में कभी नहीं सोचा था दिल की बातें जो यूँ ही ब्लॉग पर डाल देती हूँ एक दिन खबर बन छप जायेंगी ...
आज का दिन आश्चर्य से भरा हुआ रहा ..जब पता चला मेरे ब्लॉग की चर्चा हिन्दुस्तान पर हुई है ...
खुद को ख़ुशी और परिवार को गर्व ......
आइये मेरी ख़ुशी में शामिल हो जाइए .. उत्साह तो आप सब ने बढाया है सदा ..

Tuesday, August 10, 2010

तू ही मुझे संवार दे

कुछ वियोगी मन हुआ
तन भी ना अब साथ दे
कोई ऐसा पल नहीं
जो मन को मेरे साध दे

साध मन की थी कभी
खुशिया सराहे फिर मुझे
बुझ गए आंसू में सब
दीप जितने थे जले

मुश्किल हूँ मैं
या वक़्त मुश्किल है मेरा
मिलता भी नहीं कभी
जब साथ मांगती हूँ तेरा

मैं इतनी बुरी ना थी
पर भली कब तक रहूँ
मन है पीड़ा से भरा
दर्द अब किससे कहूं

क्या कभी होगा प्रलय
टूट कर बह जाउंगी
मैं अपने जीवन का
अवशेष मात्र रह जाउंगी

नेह की बूंदे कभी कुछ

मुख पे मेरे डाल दे
बहुत बिखरी हूँ प्रिये
तू ही मुझे संवार दे

Saturday, August 7, 2010

ये सावन मन भाये ना ...

ये सावन


मन भाये ना

बदरा तुमको

लाये ना

दूर बिदेस में

बैठे तुम

सौतन कहीं

लुभाए ना

बाट निहारे

नैन दुखे

पीर हमारी

कौन सुने

काली आँखे

काली रात

उसपर उस

डायन की घात

मन तो

ऐसा ऐसा है

जाने

कैसा कैसा है

कोई टोना

डाल ना दे

तुमको मुझसे

टाल ना दे

जितनी डाह

है प्रेम में

उतना तो

अगन जलाये ना

Wednesday, August 4, 2010

अबकी बारिश में क्या क्या होगा

अबकी बारिश में क्या क्या होगा


हर कदम पर गड्ढा बना होगा

मौत को खुला आमंत्रण है

कदम कदम पे मेनहोल खुला होगा



घरो में नलों की टोटिया सूखी

सडको पे नदी- नालो का समां होगा

फ़रियाद करोगे भी तो किससे

प्रशासन तो सो रहा होगा



करनी पे शायद पछताए

भ्रष्ट नेता सुधर जाए

आज दिल्ली में खुला है पाताल का रास्ता

कल हर गली में खुला होगा

Monday, August 2, 2010

चेहरे पे चेहरा चढ़ाया है मैंने


हर सुबह आईने से


मुखातिब होता हूँ

किसी रोज़ तो

सही सूरत दिखलायेगा

चेहरे पे चेहरा

चढ़ाया है मैंने

एक रोज़ तो

ये उतर जाएगा

जो कहता है मुझसे

मैं सबसे भला हूँ

उसी का बुरा अक्सर

मैंने किया है

जो आया मरहम

की उम्मीद लेकर

बड़ा जख्म उसको

मैंने दिया है

हमेशा तो मेरी

ये फितरत नहीं थी

इस शहर ने शायद मुझे

कुछ और बना दिया है