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Monday, February 7, 2011

कई साल पहले ...लिखी थी ये ..किसी ख़ास के लिए

एक  रोज़  मैंने  सोचा  तुमको  एक  rose   दूं  मैं
पर  दिल   मेरा  बोला  क्यों  रोज़  rose दूं  मैं
एक  रोज़  rose लेकर  तुम  ज़िन्दगी में आओ
मैं  तो  चाहू  हर  रोज़  rose लाओ
पर  आज  rose day है  मेरा  है  तुमसे  कहना 
मेरी  ज़िन्दगी  में  हर  रोज़  फ्रेश  rose बनकर  रहना ....

20 comments:

  1. वो खास अब कहाँ है इम्पोर्टेंट ये है.. :)

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  2. गुलाब सा खिले जीवन प्रतिदिन।

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  3. एक बेहतरीन रचना ।
    काबिले तारीफ़ शव्द संयोजन ।
    बेहतरीन अनूठी कल्पना भावाव्यक्ति

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  4. वाह, रोज और rose का बढिया प्रयोग किया है
    उम्दा कविता

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  5. बहुत ही सुन्‍दर ...।

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  6. awwwwww....shoo shweeeeeet ;)

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  7. वो भी क्‍या दिन थे, जब पसीना गुलाब था...

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  8. कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  9. ’गुलाब दिवस’ पर गुलाब जैसी महकती शुभकामनाएं ।

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  10. बहुत खूब सोनल जी.
    शुभ कामनाएं.

    सादर

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  11. ईश्वर से प्रार्थना है कि आपका हर दिन रोज़ डे हो और आपके और आपके उस ख़ास के बीच गुलाबकी ख़ुशबू हो काँटे कभी न हों!!

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  12. बहुत ही सुन्‍दर भावाव्यक्ति| धन्यवाद|

    आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  13. बहुत ही सुन्दर.
    सलाम.

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  14. ये रोज तुम्हें रोज रोज मिले :)

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  15. ये तो आपने कविता को बिलकुल अलंकृत कर दिया.....मालूम नहेन्न. यमक है या शेष.....लेकिन जो भी है अच्छा है....

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  16. यहाँ आया मन गुलाबी हो गया |आपकी कविता पढे तो मन गुलाबी हो गया |बहुत बढियां पोस्ट है बधाई सोनल जी |

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  17. यहाँ आया तो यहीं पर खो गया |आपकी कविता बसंती मन गुलाबी हो गया |सोनल जी बहुत बढ़िया लिखा है आपने |बहुत बहुत बधाई |

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