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Monday, October 22, 2012

मैं कंघी

आज सुबह से मूड बन रहा है मोर्चा निकालने  का बस तय नहीं कर पा रहे थे किस बात को इशू बनाया जाए दुनिया की सबसे बड़ी समस्या क्या है .... भाई लोग आजकल हर बात पे धरना लगा देते है और हम इतने बड़े वेल्ले दुनिया के लिए कुछ भी नहीं कर रहे तो कुछ तो करने का समय आ गया है ...पर वो कुछ क्या हो सकता है इसी उलझन में टूथब्रश पर शेविंग क्रीम लगा ली और आज उसके स्वाद का भी पता चल गया :-) हमें अब अपने गंभीर होने पर कोई शक नहीं रहा भला तो करके रहेंगे दुनिया का चाहें कुछ भी हो जाए ...

समस्या का नाम लेते ही घडी पर निगाह गई इस विचारों के मंथन मे हम ज़रूर ठहर गए थे पर घडी सावधान की मुद्रा में चिढा रही थी ...विचारक महोदया ऑफिस जाना है अगर देर से पहुंची तो आपका बॉस आपके खिलाफ मोर्चा तान देगा ...वैसे भी आप से कुछ विरत सा रहता है ...हाय राम कितना खडूस है ..एक बार दो चार लोग साथ आ जाए तो उसके खिलाफ मोर्चा पक्का ... पर मैं इतनी स्वार्थी कैसे ...मुझे दुनिया का भला करना है अपना नहीं ... रसोई में कदम रखते हुए एक और झटका अभी तक काम वाली नहीं आई .... बर्तनों का ढेर ...गंदा घर बस चक्कर खाकर गिरने वाले थे ... कहीं दूर से मीठी आवाज़ सुनाई थी ...दीदी दरवाजा खोलो .... सुबह -सुबह कामवाली की सूरत पिया की सूरत से ज्यादा भाती है .....

घर की समस्या का समाधान मिलते ही हम देशसेवा में फिर तत्पर हो गए .. कौन सी समस्या को पकडे हमको वैसे तो बहुत सी समस्याओं ने घेर रखा है पर कोई ऐसी समस्या तो सूझे ... जितने "अचार" थे उसे आजकल अंकल लोग पकडे हुए हैं "भ्रष्टाचार , अनाचार ,दुराचार ,व्यभिचार " और बाकी क्लासिक समस्याओं  का ठेका आंटी लोगों के पास है "गरीबी ,भुखमरी ,बेरोजगारी ,जनसंख्या आदि आदि ". सुबह से सर खुजा रहे है और डंड्रफ के अलावा कुछ भी पैदा नहीं हो रहा ... समस्या तो क्या एक जूं  भी पकड़ नहीं आ रही ....

ऐसे कैसे चलेगा कुछ तो करना ही है, मन में देश की समस्याओं को सुलझाते हुए अपने बालों में कंघी को उलझा दिया और आईने पर निगाह गई चेहरे पर दर्द की रेखाएं ...उफ़ अचानक दिमाग का बल्ब पूरे वोल्टेज की पॉवर  से जगमगा उठा .... देश में उतनी ही समस्याएं है जितने सर में बाल बुरी तरह से उलझे हुए ...और सर यानी हम ...जब कुछ लोगों ने कंघी बनकर सुलझाने की कोशिश की तो उलझे बालों से सामना तो होना ही था ...और सर में दर्द भी .... दर्द से घबरा कर जब आप कंघी करना नहीं छोड़ते ..तो देश को समस्याओं के साथ कैसे छोड़ दे 

तो भाई डिसीजन ले लिया .... 

अब खुद  कंघी बनेगे 
समस्याओ से उलझेंगे 
आज नहीं तो कल 
सारे मसले सुलझेंगे 

Tuesday, October 16, 2012

बरषा बिगत सरद ऋतु आई


अंगडाइयां कुछ और सुस्त  ,जम्हाइयां लम्बी खिंचेगी क्या करे ये महीना ही ऐसा है जब सुबहें सबसे खुशनुमा और मुश्किल होनी शुरू होती है पंखों और ए सी का शोर बंद होते ही चिड़ियों की चहचहाहट साफ़ सुनाई देती  है 

..कमरे पे लगी दीवार  घडी की टिकटिक हमारी धड़कन के साथ ताल मिलाकर अपने ज़िंदा होने का सबूत देती है कमाल है गर्मी के लम्बें महीनो में ये आवाजें कहीं गुम  हो जाती है ..और अब हम जब चादर के भीतर सुकून पाते है तब ये आवाजें मुखर हो उठती है ...एक प्यारी सी आदत है सुबह आँख खुलते ही छत पर आना मानो सूरज से रेस लगा रहे हो ...हमेशा सूरज जीतता था ..आजकल हम :-) अपने इस दोस्त के साथ अब वक़्त बिताना दिन ब दिन ...दोपहर ब दोपहर और अच्छा लगेगा ....

कुछ दोस्त हर मौसम में अच्छे नहीं लगते ...  तंग करते है और कुछ मौसम उनके इंतज़ार के नाम हो जाते है ...गहरी साँसे भरके ताज़ा होने के दिन है जब तक कोहरे की नमी भरी बूँदें आपके चेहरे पर ओस नहीं छिड़कती।। हवा का रुख भी  बदला सा है गर्म लू की फुफकार के बाद सावन के  समझाने पर कुछ सुधर सी गई थी ..पर आजकल कुछ रूखी-रूखी सी महसूस हो  रही है ..ना रूकती है ना बात  सुनती मेरा आँचल  झटक कर चल देती है ...कभी कभी ऐसा तुनक जाती है अपने साथ पेड़ों के  पत्ते भी उड़ा  जाती है ..कहा था ना कुछ दोस्त हर मौसम  में अच्छे नहीं लगते ... 

मौसम का क्या कहें अपना शरीर भी पूरी तरह मूडी हो जाता है ...ज़रा सा गला बिगड़ा और सारा सिस्टम  सर से पाँव तक हड़ताल पर आँख नाक कान सब एक सुर में .... और ये 206 हड्डियों की मशीन विश्राम मुद्रा में ... हॉस्पिटल और मेडिकल स्टोर्स का सीजन शुरू ... जो कष्ट से मरेंगे वही तो "कस्टमर" कहलायेंगे .

कुछ बेतरतीब ख्यालों को समेटते हुए आप सभी को नवरात्रि  और शरद ऋतु  के आगमन की शुभकामनाये ....अपना ख़याल रखिये

बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥

फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥