मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
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Friday, September 25, 2009
चाहत
किस्मत से शिकायत का क्या फायदा ,
एक तरफा मुहब्बत का क्या फायदा
चाहो उसे जो चाहे तुम्हे
बेमतलब की चाहत का क्या फायदा
आपसे सहमत नहीं हूँ पर आपकी भावना अच्छी लगी
ReplyDeleteसुंदर
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें ।
ReplyDeleteगुलमोहर का फूल
आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteएक निवेदन:
कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है.
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न!!
फायदा है कवीता बन जाती है लिखती रहैं
ReplyDeleteबढ़िया है..ऐसे ही नियमित लिखती रहें।
ReplyDelete॥दस्तक॥
well said.
ReplyDeleteचिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. शुभकामनाएं. जारी रहें.
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Till 30-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
चाहत पे भी वश होता क्या लगता प्रश्न विशाल।
ReplyDeleteऔर नफा, नुकसान इश्क में उलझा हुआ सवाल।।
theek-thaak hi lagi aapki kavitaa....aur maanjhhe ise.....!!
ReplyDeleteसौदेबाजी ठीक नहीं । लिखते रहिये ।
ReplyDeletekavita achhi lagi usmey imandari hai kahani navlekhak ke liye achha prayas hai sarthak likhney ke liye sarthak pada jana aur bahut padna jaroori hai
ReplyDeleteकोई भी शहर छोटा नहीं होता। आप जैसे रचनाकर ही किसी शहर या कस्बे को बड़ा बनाते हैं।
ReplyDeleteअच्छी शुरुआत की है। जारी रखें। स्वागत और बधाई। मेरे ब्लॉग पर भी आएं।
Go ahead.
ReplyDelete" sonal,aapka swagat hai "
ReplyDeletelikhate rahiye
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sher thik thak hai ...koi khas nahi ..or mahnat kare..
ReplyDeleteDeepak :bedil.
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acha likha hai sahi kaha hai..magara ye ek alg bat hai hamesha nahi ho pata ye
ReplyDeleteअच्छी कविता है,
ReplyDeleteबहुत खूब, लो आपसे प्रेरणा लेकर चंद पंक्तियां हम ने भी लिख दी
"फायदे-नुकसान का हिसाब न कर,
हर वक्त दिलवालों की मजाक न कर,
कुछ तो उनमें भी होगी कुव्वत,
इनकी मेहनत को तू बेकार न कर,
मिलता है दुतरफा प्यार, सब चाहने वालो को,
उपर वाले पर बस तू विश्वास कर,
शरीके गम में भी होना भी है एक आनंद,
दिल है, दर्द का एहसास कर। "
अन्यथा न लें,
स्वागत है ब्लॉग जगत में पदार्पण पर। लगे रहो, लिखते रहो।
चाहत तो बेमतलब की ही होती है, मतलब हो तो चाहत कहां । यह तो सौदा हुआ।
ReplyDeleteचाहत चाहने से या सोच कर पैदा नहीं होती । चाहत बीज है दुख के पौधे का। लेखन के लिये बधाई। मेरे ब्लोग पर भी दस्तक दें।
ReplyDeleteचिट्ठाजगत में स्वागत है
ReplyDeleteBahut Barhia... aapka swagat hai...
ReplyDeletethanx
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solah aane sach.narayan narayan
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