मुझे आज भी गुमां है
तुम्हारा शहर जानता हूँ
तेरी पायल की आवाजें
तेरी सीढ़ी से मेरे दर तक
उन्हें सुनने की चाहत में
मैं हर शब जागता हूँ
तुम्हारे इत्र की खुशबू
जो खस सी ख़ास होती थी
उसी जादू की ख्वाहिश में
दुआ दिन रात मांगता हूँ
मेरी हर नज़्म फीकी है
नमक तुमसे ही आता था
उन बे-स्वाद मिसरों के वास्ते
तुम्हारा स्वाद मांगता हूँ
तुम्हीं ने तो तो सौपे थे
वो काले धागे नज़र वाले
उनकी गाँठ खोलने को
तुम्हारा साथ चाहता हूँ
मैं तुमको पहचानता हूँ
तुम्हारी बोलिया सुनकर तुम्हारा शहर जानता हूँ
तेरी पायल की आवाजें
तेरी सीढ़ी से मेरे दर तक
उन्हें सुनने की चाहत में
मैं हर शब जागता हूँ
तुम्हारे इत्र की खुशबू
जो खस सी ख़ास होती थी
उसी जादू की ख्वाहिश में
दुआ दिन रात मांगता हूँ
मेरी हर नज़्म फीकी है
नमक तुमसे ही आता था
उन बे-स्वाद मिसरों के वास्ते
तुम्हारा स्वाद मांगता हूँ
तुम्हीं ने तो तो सौपे थे
वो काले धागे नज़र वाले
उनकी गाँठ खोलने को
तुम्हारा साथ चाहता हूँ
"...तुम्हीं ने तो तो सौपे थे
ReplyDeleteवो काले धागे नज़र वाले
उनकी गाँठ खोलने को
तुम्हारा साथ चाहता हूँ "
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
सादर
मेरी हर नज़्म फीकी है
ReplyDeleteनमक तुमसे ही आता था
उन बे-स्वाद मिसरों के वास्ते
तुम्हारा स्वाद मांगता हूँ
क्या बात है क्या बात है क्या बात है ....नमक तो चाहिए ही चाहिए.
तेरी पायल की आवाजें
ReplyDeleteतेरी सीढ़ी से मेरे दर तक
उन्हें सुनने की चाहत में
मैं हर शब जागता हूँ
bahut achhe
बहुत सुन्दर नमकीन सी नज़्म
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नज्म है
ReplyDeleteवाह सोनल जी क्या बात है
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुती
सच बिना इस नमक के कविता अधुरी ही रहती है
सिर्फ नमकीन ही नहीं और भी कई जाइके/स्वाद है इस छोटी सी नज्म में - बहुत कुछ परोसा है सोनल जी ने - बहुत सुंदर
ReplyDeleteसरल अभिव्यक्ति
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteग़ज़ब का रोमाण्टिसिज़्म है... ऐसा लगा
ReplyDeleteअपने आप रातों में, चिलमने सरकती हैं,
चौंकते हैं दरवाज़े, सीढियाँ धडकती हैं,अप्ने आप!!
wah wah ..bahut sundar...
ReplyDeleteyah pahchaan apni si hai
ReplyDeleteतेरी पायल की आवाजें
ReplyDeleteतेरी सीढ़ी से मेरे दर तक
उन्हें सुनने की चाहत में
मैं हर शब जागता हूँ ..
बहुत सुन्दर....
बहुत सुन्दर नज्म है|धन्यवाद|
ReplyDeleteसुभालअल्लाह , नजर न लग जाय। बहुत सुन्दर रचना। प्रेमपूर्ण।
ReplyDeleteअच्छी रचना।
ReplyDelete''मेरी हर नज़्म फीकी है
नमक तुमसे ही आता था''
बेहतरीन लाईनें।
बधाई हो आपको।
सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .
ReplyDeleteक्या सच में तुम हो???---मिथिलेश
यूपी खबर
न्यूज़ व्यूज और भारतीय लेखकों का मंच
सरल और स्पष्ट रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteकाले धागे की गाँठ मत खोलियेगा,कविता को नज़र लग जायेगी.
सलाम.
उनकी गाँठ खोलने को
ReplyDeleteतुम्हारा साथ चाहता हूँ
बहुत बढ़िया!
बहुत खूब ....शुभकामनायें !
ReplyDeleteतेरी पायल की आवाजें
ReplyDeleteतेरी सीढ़ी से मेरे दर तक
उन्हें सुनने की चाहत में
मैं हर शब जागता हूँ ..
सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .
इतनी खूबसूरत ख्वाहिश....
ReplyDeleteपूरी होनी ही चाहिए!
आमीन!
आशीष
क्या बात है ....शुरू करते ही आनंद आ गया !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !!
कुछ रचनाएँ बार बार पढने को दिल चाहता है ....यह ऐसी ही है !
ReplyDeleteamazing nazm sonal ji
ReplyDeletekayi baar padh liya , ek do lines ne seedhe dil par asar kiya .. kya kahun .. ab shabd nahi hai ..
salaam
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
Sundar...
ReplyDeleteदिल को छू गयी रचना। शुभकामनायें।
ReplyDeleteमेरी हर नज़्म फीकी है
ReplyDeleteनमक तुमसे ही आता था
उन बे-स्वाद मिसरों के वास्ते
तुम्हारा स्वाद मांगता ....wah hriday sparshi rachna..bahut khoob Sonal
उम्दा...नमकीन
ReplyDeleteस्वाद आया पढकर...
पहली उपस्थिति स्वीकार करें।
डा.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
www.meajeet.blogspot.com
मेरी हर नज़्म फीकी है
ReplyDeleteनमक तुमसे ही आता था
ye mua namak hai hi aisee chij jaha jata hai...usse chatpata kar deta hai..:D:D
बहुत खूब!
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