Pages

Monday, March 7, 2011

..नारी होने की पीड़ा

विश्व महिला दिवस की पूर्व संध्या पर ..अरुणा क्या कहूं तुमसे .तुम जिस परिस्थिति में हो और जितने समय से हो ....तुम्हे तुम्हारे नारी होने की जो सजा मिली है वो अंतहीन है ..आजीवन कारावास भी १४ साल में ख़त्म हो जाती है ...
मैं तुम्हे जानती नहीं हूँ ..जानती तो मैं उन सबको भी नहीं हूँ जो सडको से उठा ली  जाती है ,घरो में मार खाती है , अपने करीबी रिश्तेदारों द्वारा कुचली जाती है ..पर हर खबर चुभती है बहुत गहरे तक ....हम जिन हादसों को सोच कर डर जाते है ..और मानाने लगते है हमारे साथ हमारे करीबियों के साथ वो कभी ना हो ..उनको तुम सबने झेला है ,कल सब नारी की महिमा गायेंगे ...मैं नहीं गा पाउंगी और ना गर्व कर पाउंगी अपने नारी होने पर ... अरुणा तुमको जीने नहीं दिया और अब मरने भी नहीं दे रहे ... जो लोग कामना कर रहे है तुम्हारे मरने की वो तुम्हारे मरने की कामना नहीं कर रहे बल्कि अपने इंसान होने की शर्मिंदगी दूर करना चाहते है ...तुम चली जाओ तो शायद अपने गिल्ट से छुटकारा पा जाए ... किसी की हवस किसी के लिए  कदर भयावह हो सकती है .....
नारी के कपड़ों चरित्र व्यवहार की विवेचना करने वाले उन पशुओ के लिए कभी कुछ नहीं लिखते जो समाज में घूम रहे है ... जिनके लिए १८ साल की युवती और ६ माह की बच्ची में कोई अंतर नहीं है ..शील ,मर्यादा ,कर्त्तव्य की बात तो करेंगे पर सिर्फ नारी के लिए ...पर कभी समझ नहीं पायेंगे नारी होने का भय ..नारी होने की पीड़ा




--



25 comments:

  1. बिलकुल सही कहा आपने नारी होने की पीड़ा सिर्फ नारी ही समझ सकती है.बहुत ही झकझोर देने वाला लेख लिखा है.

    सादर

    ReplyDelete
  2. सही कह रही है सोनल जी……………कोई नही समझ सकता कम से कम तब तक जब तक उससे गुजरा ना हो…………नारी की दुर्दशा जारीहै फिर कैसा महिला दिवस?

    ReplyDelete
  3. janti nahin hun , per ankahe dard ko bhoga hai .... band syaah kamre mein aatma chikhi hai, chillayi hai

    ReplyDelete
  4. नारी का दर्द क्या जाने मर्द
    ये तो नारी ही समझ सकती है

    ReplyDelete
  5. जिस तन लागे वो तन जाने। नारी दिवस पर मन की भावनाएं। चलो एक दिन तो है अपनी पीडा को कहने के लिये। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  6. shukriyaa is post kae liyae

    aruna ki peeda kaun samjh sakegaa

    ReplyDelete
  7. उफ़ ये पुरुष होने का दर्द भी
    शायद नारी नहीं समझ पायेगी.... ;)he he he..
    jokes apart, itz a nice article..loved it....

    ReplyDelete
  8. बहुत मर्मस्पर्शी आलेख..

    ReplyDelete
  9. शील ,मर्यादा ,कर्त्तव्य की बात तो करेंगे पर सिर्फ नारी के लिए ...पर कभी समझ नहीं पायेंगे नारी होने का भय ..नारी होने की पीड़ा
    सार्थक पोस्ट , हमारी आँखें खोलने में सक्षम , बधाई

    ReplyDelete
  10. नारी मन की व्‍यथा को प्रदर्शित करती पोस्‍ट।
    बधाई हो आपको।
    महिला दिवस की शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  11. बहुत संवेदनशील बात ...नारी की दुर्दशा को समझना ही नहीं चाहते .....

    ReplyDelete
  12. काश यह पीड़ा सब देख पाते।

    ReplyDelete
  13. सच कहा सोनल....यह समाज जीने तो नहीं ही देता....और मरने की भी इजाज़त नहीं

    ReplyDelete
  14. मार्मिक .... ये सब गलत है समाज में .. और संकल्प शक्ति से ही इस सोच को दूर किया जा सकता है ...
    सभी को महिला दिवस की शुभकामनाएं ...

    ReplyDelete
  15. विरोध और विद्रोह का यह स्वर नारी के बदलते स्वरूप की दास्तां बयां कर रही है।

    ReplyDelete
  16. .

    सोनल जी ,

    बहुत सही लिखा है आपने । ये नारी का दर्द तो समझते नहीं , बस मात्र दिखावा करते हैं । यदि सच में कभी स्त्री का दर्द समझा होता तो कन्या भ्रूण और बलात्कार की घटनाएं कम होती जातीं । लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा । स्त्री का शोषण बदस्तूर जारी है । आज पता नहीं किसका मन बहलाने के लिए महिला दिवस मना रहे है ये लोग। क्या स्त्रियाँ इतनी मूर्ख हैं की ये बहलायेंगे और हम बहल जायेंगे ?

    .

    ReplyDelete
  17. महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  18. aapko Mahila Divas ki shubkamnaye!
    aapne bahtu shai likha he, lekin aaj ki nari
    itniashaye nhi he, ki usko kisi ke kandho ka
    sahara lena pade, samaye badal raha he, aur bahut teji se badal raha he, aur jin gahtnao ka aapne jikr kiya, wo hoti hain, lekin kitni tadad me hoti he, me koi smarthan nhi kar raha in granit ghatnao ka! lekin mahilaye apne liye is samaaj me bahut achhe se jagha banane me kamyaab ho rahi hain! yahi sabse badi uplabdhi he! yun koi bhi cheez complete nhi hoti, kahi na kahi kcuh na kuch kami to hoti hi he!

    ReplyDelete
  19. आदरणीय सोनल रस्तौगी जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    ..नारी होने की पीड़ा पढ़ कर मन उद्वेग और वितृष्णा से भर गया …
    नारी के कपड़ों, चरित्र, व्यवहार की विवेचना करने वाले उन पशुओ के लिए कभी कुछ नहीं लिखते जो समाज में घूम रहे है ... जिनके लिए १८ साल की युवती और ६ माह की बच्ची में कोई अंतर नहीं है ..शील ,मर्यादा ,कर्त्तव्य की बात तो करेंगे पर सिर्फ नारी के लिए ...पर कभी समझ नहीं पायेंगे नारी होने का भय ..नारी होने की पीड़ा

    हिला दिया आपने … ! गहरे तक कुछ एहसास कराते ये हृदयोद्गार भुलाए नहीं जा सकेंगे … … …
    काश ! समाज में ऐसी व्यवस्था हो पाती जिनसे इन परिस्थितियों से हम सब रूबरू न हुए होते … काश !

    उतरदायित्व बनता है क़लम थामने वालों का भी , समय मिले तो दृष्टिपात कीजिएगा …


    मां पत्नी बेटी बहन ; देवियां हैं , चरणों पर शीश धरो !


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  20. वाकई नहीं समझ सकते ...शायद नारी की पीड़ा का शतांश भी नहीं समझ सकते, इसे समझाने के लिए, सबसे पहली आवश्यकता तो एक संवेदनशील मन होना चाहिए ...वही आजकल दुर्लभ है !
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  21. आदरणीया सोनल जी सादर अभिवादन |होली की सपरिवार रंगबिरंगी शुभकामनाएं |

    ReplyDelete