मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Friday, December 23, 2011
Friday, December 16, 2011
बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने
लिखूं क्या तुम्हारे बारे में ,कोई इतना बे-वफ़ा कैसे हो सकता है ..कितना कोसती हूँ तुम्हे जानकर शायद किसी पल नाराज़ होकर कह उठोगे "कुछ तो मजबूरिया रही होंगी ,कोई यूँही तो बे-वफ़ा नहीं होता ".. और मैं कहूँगी कम से कम शेर तो अपना use किया करो ..
पर तुम तो दुनिया की भीड़ में इस तरह गायब हुए जैसे कभी मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा थे ही नहीं ...माना मैंने भी तम्हे काट फेंका एक पल में पर तुम नाखून तो नहीं थे ना ..के ना दर्द होता ना अफ़सोस ..जहाँ से काटा था तुमको वो हिस्सा आज भी दुःख रहा है ..नहीं जानती थी ..एक पल का आवेश ज़िन्दगी भर का दर्द दे जाएगा
..सोचा था तुम्हारे बिना जीना आसान रहेगा ..आखिर ऐसा क्या है तुममें के तुम्हारे बिना मैं रह ना सकूं ..पर हर सुबह मुझे मेरे खालीपन का एहसास दिलाती है ..... माना मैं गलत थी पर क्या इतनी गलत के मेरी गलती तुम माफ़ ना कर पाओ..हर बार भ्रम होता है तुम मुझे देख रहे हो ...पर तुम कहीं नहीं होते .... सिवा मेरे दिल के ..
ये आग मैंने खुद लगाईं और मैं ही सुलग रही हूँ राख होने के इंतज़ार में पर पता नहीं कैसी लकड़ी है ये देह ये आत्मा सालो से सुलग रही है ..तुम्हारी दूरी की आंच ना बुझ रही है ना कम हो रही है ,
अक्सर लगता है तुम शायद अपनी दुनिया बसा चुके होगे ..प्यारी सी बीवी ..दो बच्चे सब होंगे तुम्हारे पास ...पर दिल डरता है तुम्हारे सुकूं से कहीं एक उम्मीद आज भी बाकी है के तुम भी मेरा इंतज़ार कर रहे होगे ..ये अहम् की दिवार इतनी बढ़ गई के मैं इस पार रह गई और तुम शायद उस पार ...लोग कहते है दुनिया बहुत छोटी है ...अक्सर लोग मोड़ों पर मिल जाया करते है पर तुम किस मोड़ पर रुक गए जहाँ से मैं तुम्हे ना देख पा रही हूँ ना ढूंढ पा रही हूँ
आखिर मुझमें ऐसा भी तो कुछ नहीं जो तुम लौट कर आ जाते या फिर जाते ही ना.......
पर तुम तो दुनिया की भीड़ में इस तरह गायब हुए जैसे कभी मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा थे ही नहीं ...माना मैंने भी तम्हे काट फेंका एक पल में पर तुम नाखून तो नहीं थे ना ..के ना दर्द होता ना अफ़सोस ..जहाँ से काटा था तुमको वो हिस्सा आज भी दुःख रहा है ..नहीं जानती थी ..एक पल का आवेश ज़िन्दगी भर का दर्द दे जाएगा
..सोचा था तुम्हारे बिना जीना आसान रहेगा ..आखिर ऐसा क्या है तुममें के तुम्हारे बिना मैं रह ना सकूं ..पर हर सुबह मुझे मेरे खालीपन का एहसास दिलाती है ..... माना मैं गलत थी पर क्या इतनी गलत के मेरी गलती तुम माफ़ ना कर पाओ..हर बार भ्रम होता है तुम मुझे देख रहे हो ...पर तुम कहीं नहीं होते .... सिवा मेरे दिल के ..
ये आग मैंने खुद लगाईं और मैं ही सुलग रही हूँ राख होने के इंतज़ार में पर पता नहीं कैसी लकड़ी है ये देह ये आत्मा सालो से सुलग रही है ..तुम्हारी दूरी की आंच ना बुझ रही है ना कम हो रही है ,
अक्सर लगता है तुम शायद अपनी दुनिया बसा चुके होगे ..प्यारी सी बीवी ..दो बच्चे सब होंगे तुम्हारे पास ...पर दिल डरता है तुम्हारे सुकूं से कहीं एक उम्मीद आज भी बाकी है के तुम भी मेरा इंतज़ार कर रहे होगे ..ये अहम् की दिवार इतनी बढ़ गई के मैं इस पार रह गई और तुम शायद उस पार ...लोग कहते है दुनिया बहुत छोटी है ...अक्सर लोग मोड़ों पर मिल जाया करते है पर तुम किस मोड़ पर रुक गए जहाँ से मैं तुम्हे ना देख पा रही हूँ ना ढूंढ पा रही हूँ
आखिर मुझमें ऐसा भी तो कुछ नहीं जो तुम लौट कर आ जाते या फिर जाते ही ना.......
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