बेतरतीब मैं (१३ मई २०१५ )
फिर आसमा से टूटकर बरसा नशा
फिर हमपर मयकशी का इलज़ाम लगा
बारिशें किसी भी मौसम में आपको डिस्ट्रैक्ट कर सकती हैं ,कुछ जादू सा चलता है और आप मज़बूर हो जाते हो।
कागज़ की नाव चलाने वाली बारिशें , किसी नज़र की छुअन से सिहर जाने वाली बारिशें,किसी के जल्दी घर वापसी की दुआ मनाने वाली बारिशें
और भी कई मूड में बरस रही है ये बारिशें
आफिस के कांच के भीतर से बाहर सब धुंधला दिख रहा है अच्छा है ना.बाहर सड़क है ,ट्रैफिक है भीड़ है ,ये तो मेरी बारिशों का हिस्सा नहीं हो सकते
मेरी बारिशों में पहाड़ है उन पर झुके बादल है , मेरे हाँथ में छतरी के वाबजूद भीगती मैं
पहाड़ ना सही समंदर का किनारा ही हो जहां खारी लहरों के साथ मीठी बूँदें मुझे भिगो दे ,खैर आंसू भी तो खारे ही होंगे
मेरी मोहब्बत की कहानियों में बारिशें नहीं हैं बल्कि बारिश ही मेरी मोहब्बत है।
कई गहरी नीली शामें जब आसमान स्लेटी बादलों से खेल रहा था ,हवा में सीली सी गंध हाँथ में एक कप कॉफ़ी लिए आसमान को निहारते हुए मैंने गुडगाँव में चेरापूँजी को जिया है,
कल्पनाओ के पंख पर सवार मुक्त हो लेती हूँ मैं.
भर जाती हूँ भीतर तक तो खुलकर रो लेती हूँ मैं