प्यार की खुशबू कच्चे आम सी होती है,जो तन मन के सारे तंत्र जगा देती है ,देखो बहस की कोई गुंजाईश नहीं है उसने चहकते हुए कहा ...वैसे मेरी हिम्मत बहस करूँ और वो भी तुमसे ना -बाबा, तुम प्यार पर एक कुकरी बुक क्यों नहीं लिख देती title रहेगा "जायके मोहब्बत के ". तुमको मैं पगली लगती हूँ ना ..इसमें लगने की क्या बात है उसने मुस्कुराते हुए कहा,अमा यार इतने स्वादों की बात करती हो पर खुद एक दम तीखी हो मिर्च की तरह ... एक पल को उसके गाल दहक उठे ..फिर संभल कर बोली "जानते हो लेह लद्दाख में लोगों को मिर्च की गर्मी ज़िंदा रखती है " ...तुम गई हो क्या लेह .... मेरे याद में कभी अपने कसबे के बाहर पैर तो रखा नहीं तुमने . माना दुनिया नहीं घूमी मैंने पर जानती तो हूँ ना ..इन किताबों से ..टीवी से कितना कुछ बताते है ये ..और अपनी जानकारी का पिटारा मुझपर खाली कर देती हो ..और मैं दब जाता हूँ तुम्हारी इन बातों के बोझ तले...इतनी बुरी लगती है मेरी बातें ..तो ठीक है अब तुमसे कभी बात नहीं करूंगी और ना तुम मुझे फोन करना ....
बस यही तो सुनना चाहता था मैं ...जब तुम तुनक कर रूठती हो तो पता नहीं क्यों बहुत मासूम सी लगती हो ...अभी तीखी थी अभी मासूम तुम तय कर लो मैं क्या हूँ ..............
गुफ्तगू प्यार की
चलती रहेगी सुबह तक
दिल के मारो को
एक पल भी आराम कहाँ
फुर्सत मिले
तो सोचे दुनियादारी
इश्क से ज़रूरी
इनको कोई काम कहाँ
बस यही तो सुनना चाहता था मैं ...जब तुम तुनक कर रूठती हो तो पता नहीं क्यों बहुत मासूम सी लगती हो ...अभी तीखी थी अभी मासूम तुम तय कर लो मैं क्या हूँ ..............
गुफ्तगू प्यार की
चलती रहेगी सुबह तक
दिल के मारो को
एक पल भी आराम कहाँ
फुर्सत मिले
तो सोचे दुनियादारी
इश्क से ज़रूरी
इनको कोई काम कहाँ