जिरह-ए-जुल्फ में उलझा हुआ हूँ
बेवजह शानो पर बिखरा हुआ हूँ
पास होकर भी दूरियां मीलों की
हूँ अश्क़, आँख से फिसला हुआ हूँ
अधूरी ग़ज़ल का मिसरा हुआ हूँ
कहीं ख़याल में अटका हुआ हूँ
किस लम्हा मुकम्मल हो जाऊं
हूँ ग़ज़ल, बहर से भटका हुआ हूँ
यूँ अपने आप से बिगड़ा हुआ हूँ
छोड़ दुनिया आज तनहा खड़ा हूँ
सामने आँखों के अँधियारा घना है
हूँ सितारा,राह से भटका हुआ हूँ
कल तुझमें डूबकर तुझसा हुआ हूँ
सांस की उस छुअन से तप रहा हूँ
मुझको रोक ले ख़ाक होने से पहले
हूँ शरारा, ईमान से बुझता हुआ हूँ
बेवजह शानो पर बिखरा हुआ हूँ
पास होकर भी दूरियां मीलों की
हूँ अश्क़, आँख से फिसला हुआ हूँ
अधूरी ग़ज़ल का मिसरा हुआ हूँ
कहीं ख़याल में अटका हुआ हूँ
किस लम्हा मुकम्मल हो जाऊं
हूँ ग़ज़ल, बहर से भटका हुआ हूँ
यूँ अपने आप से बिगड़ा हुआ हूँ
छोड़ दुनिया आज तनहा खड़ा हूँ
सामने आँखों के अँधियारा घना है
हूँ सितारा,राह से भटका हुआ हूँ
कल तुझमें डूबकर तुझसा हुआ हूँ
सांस की उस छुअन से तप रहा हूँ
मुझको रोक ले ख़ाक होने से पहले
हूँ शरारा, ईमान से बुझता हुआ हूँ