लाडली १ (२८.०७। १६ )
हम किस हालात में लिखते है ? जब हम रीते होते है या जब भावनाएं छलक उठती है अपने बारे में सोचूं तो अज़ीब लगेगा बरसो से लिखने के बाद भी आज भी अनजान हूँ कब कैसे लिख पाती हूँ किसी साल १०० से ऊपर ब्लॉग पोस्ट तो कोई साल पूरी तरह सूना।
सृजन तो चल रहा है साथ में क्षरण भी चल रहा है पर ब्लॉग पर पोस्ट के रूप में दर्ज नहीं हो पा रहा, आखिर एक शाम बारिश में रचना फूट पड़ी आसमान से बरसता रस मेरे भीतर के कवि को सींच गया अब जो शुरू हुआ है वो रुकने नहीं देना है ,
हम किस हालात में लिखते है ? जब हम रीते होते है या जब भावनाएं छलक उठती है अपने बारे में सोचूं तो अज़ीब लगेगा बरसो से लिखने के बाद भी आज भी अनजान हूँ कब कैसे लिख पाती हूँ किसी साल १०० से ऊपर ब्लॉग पोस्ट तो कोई साल पूरी तरह सूना।
सृजन तो चल रहा है साथ में क्षरण भी चल रहा है पर ब्लॉग पर पोस्ट के रूप में दर्ज नहीं हो पा रहा, आखिर एक शाम बारिश में रचना फूट पड़ी आसमान से बरसता रस मेरे भीतर के कवि को सींच गया अब जो शुरू हुआ है वो रुकने नहीं देना है ,
अपनी लाडली के नाम
तुमको बारिशें सौंप रही हूँ
भीगने से घबराना मत
छतरी के पीछे शरमाकर
खुदको कभी छुपाना मत
जो मन भाये बादल गढना
जीवन में सकुचाना मत
तुमको जीवन सौंप रही हूँ
जीने से घबराना मत