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Friday, June 5, 2015

ये मैं तो नहीं हूँ


१। 
सामने से आती एक शक्ल बेहद पहचानी सी लगी ,वही है क्या ? अरे हाँ वही तो है 
आठ  साल पहले सादा से प्रिंटेड सूट में देखा चेहरा आज किसी महंगे ब्रांड के वन पीस ड्रेस में कुछ अज़नबी सा लगा ,आँखों में पहचान का भाव उभरा और पानी के बुलबुले सा फुट गया और रह गया नीरव स्थिर अज़नबीपन। 
या तो उसने पहचाना नहीं या … जाने दो 
वो पहचाना अज़नबी साया पास से गुज़र चुका था अपने साथ खुशबू की लकीर छोड़ते हुए, इसको परफ्यूम की जरूरत कब से पड़ने लगी, छत की मुंडेर पर चाहे अनचाहे करीब आते हुए कितनी बार एक मादक सुगंध को जिया था कुछ रजनीगंधा जैसी शायद।
उसके हाँथ आज भी थामने पर पसीजते होंगे क्या सोचते ही होंठों पर मुस्कान  तैर गई 
पिछले आठ सालों में ज़िन्दगी की दौड़ दौड़ते हुए कभी एहसास ही नहीं हुआ जिनके साथ जीने मरने की कसमें खाई  थी आज उनका ख्याल भी नहीं आता 

२। 
होटल के कमरें में सिगरेट फूंकते हुए निगाह दरवाजे की तरफ  लगी है ,भागती  ज़िन्दगी में जब कुछ जरूरते जागती हैं तो खाने से बिस्तर तक होम डिलीवरी के ऑप्शन मिल जाते हैं ऐसी ही ऑप्शन पिछले कुछ सालों कमरे में आते जाते रहे है। 
अब एक ज़रुरत के लिए ज़िन्दगी भर के बंधन तो नहीं पाल सकता ना 
दरवाजा खुलते ही एक खुशबू का झोंका अपनी गर्माहट से भर देता है ,अचानक ये खुशबू खींचकर गली के मोड़ पर खड़ा कर देती है दिल की धड़कने तेज हो रही है , मेकअप की परतों में लिपटा अजनबी चेहरा अपना सा क्यों  लग रहा है ,
क्या ये वो है ,काश वो ना हो , उसको अपने साथ चाहा था एक ज़माने में पर 
आज इस कमरे में इस बिस्तर पर तो नहीं, उसके करीब आते ही एक ठंडी सांस राहत की भरता हूँ , वो नहीं है।  

३। 

उस दिन के बाद होटल के कमरें में जा नहीं पाया हूँ ,एक डर  भीतर बैठ गया है , उस दिन अगर वो होती तो ,इस बार नहीं थी पर अगली बार हुई तब ,ऐसे कितने चेहरे कितने रिश्ते बनाता बिगाड़ता आया हूँ , कुछ तो बीता है भीतर ही भीतर जिसने आत्मा जैसा कुछ जगा दिया है। 
भला -बुरा ,पाप पुण्य कानो में बज रहे है.
हरिद्वार में गंगा किनारे बैठे हुए पानी के शोर में कुछ चीखे कुछ रुदन जैसे सुनाई दे रहे हैं , मेरा अहम उसकी मिन्नतें , मेरी लापरवाही उसकी हताशा ,या कितने मज़बूर मुस्कुराते चेहरे। 
पैर पानी में जाते ही दिमाग और दिल में द्वंद  शुरू हो जाता है , मैं आज जो हूँ ऐसा तो नहीं था ,कब मैं बदलता गया। 
बचपन की मासूमियत से कैशोर्य के अल्हडपन  से युवावस्था के जोश तक, तब तक तो सब ठीक था , सपने थे दिल था धड़कन थी दर्द भी था
दिलों का सौदागर कब बना ,पहली बार दिल और भरोसा तोड़ा तो बुरा लगा फिर कम बुरा लगा फिर बुरा लगना बंद हो गया 
ये आज अतीत का कौन सा दरवाजा खुल गया है जो दिल दिमाग को भारी किये जा रहा है 
घाट पर बैठे पण्डे से माथे पर चन्दन लगवाता हूँ शायद दिमाग को ठंडक मिले 
आइना देखता हूँ  पर ये मैं तो नहीं हूँ 

Tuesday, July 10, 2012

रिश्तों की पैरहन.

उसे प्यार नहीं था पर कर रही थी कोशिश प्यार करने की क्योंकि यही रिवाज़ है, हर लड़की को चाहना होता है अपने होने वाले पति को, और और समझाना होता है यही है वो राजकुमार जिसका इंतज़ार करती आ रही है सदियों से,जब नख से शिख तक माप तौल चल रही होती है लड़की की, उसके पिता के बजट की, तब भी उसे अपने होने वाले पति में ढूंढना होता है महान आदर्श पुरुष.जो हर तरह से उसके योग्य है ,उसके माँ पिता तो बस माध्यम है चुना तो स्रष्टि ने है ना उसके लिए, अपने सपनो के खांचे में फिट करके देखती है नहीं होता ,तो  अटाने की कोशिश करती है वैसे ही जैसे कोई नया सूट जो एक साइज़ छोटा हो उसे शरीर पर चढ़ा लिया जाए 

...क्योंकि बस वही है उसके पास वही सर्वश्रेष्ट है ,ये कोशिश जिसे अडजस्ट करना कहते है चलती रहती है ताउम्र, कुछ खुद को घोल देती है रोज़ थोडा थोडा और सुकून से सांस लेती है अब घुटन नहीं होती पर अपने को खोने का दर्द और टीस सालती है हमेशा जिसे एक नकली मुस्कान से ढका करती है ,

जो नहीं घुल पाती उनका शरीर झाँकने लगता है उधडी सिलाइयों से और पड़ते है गहरे निशान, देखने वाले निगाहों से और इशारों से कोंचते है ,उधडे रिश्तों को ,और वो बिता देती है पूरी उम्र घुटन में ,उनके भीतर की उमस उन्हें ही भिगोती है पसीजती है ,सूखती है पर उतार नहीं पाती वो रिश्ते कैसे सामना करेंगी दुनिया का रिश्तों की पैरहन के बिना निर्वस्त्र रह जायेंगी,
कुछ के पास वो पैरहन भी नहीं होता बेलिबास होती है क्योंकि उनका रिश्ता किसी और को ढक रहा होता है और वो सोचती है कोई नहीं देख रहा ,मांग के सिन्दूर को गहरा करती है ,मंगलसूत्र कुछ और बड़ा, आत्मविश्वास का पाउडर चेहरे पर कुछ ज्यादा जिससे चेहरा सफ़ेद दिखे ,पर चेहरा सफ़ेद दिखने की कोशिश में पीला दिखता है रक्तहीन, वे दिखाती है मेरे पास सब है ,उस राजा की तरह जो हवा का लिबास ओढ़े सड़क पर निकल गया था ...खुद को मुगालते में रखती है,

एक नई कौम अंकुरित हुई है हाल में उसी मिट्टी से,संस्कारों की खाद से सींची हुई, जिसके चेहरे पर आत्मविश्वास थोपा हुआ नहीं है,जड़े ज्यादा गहरी है, प्यार करने की कोशिश की बजाय प्यार करने में यकीन करती है,अडजस्ट करने के नाम पर इनकार करती है एक नाप बड़े या छोटे रिश्तो में उतरने के लिए या खुद चुनती है अपने नाप जिससे सांस ले सके या चुने हुए रिश्तों को परखती है, किसी भी घुटन,उमस को झेलने की बजाय आज़ाद कर लेती है खुद को, रिवाज़ खुद गढ़ने लगी है,रिश्तो के लिबास के बिना भी खुश रहती है क्योंकि वो जान गई है निर्वस्त्र रहना शर्म की बात नहीं है ईश्वर ने रचा है आपको एक खूबसूरत जीवन दिया है ,उसे उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......


Monday, June 18, 2012

सुनो !मैं पढ़ रहा हूँ तुम्हे ...

सुनो !

तुमसे बात करना कविता लिखने जैसा है ..बेहद नाजुक बातें होती है तुमसे ...बातें नाजुक हां ...इन गुलाबी होंठो से खुदा ना करे कोई और बातें हो ..तो मैं कह रहा था तुमसे बात करना .....तुम्हारी उंगलिया अनजाने संगीत पर  ताल देती है हमेशा या तुम कीबोर्ड कुछ ना पढ़ी जा सकने वाली इबारत टाइप कर रही हो कई बार सोचा की पूछ ही लूं शायद बता दो पर रहने दो जिस दिन महाकाव्य पूरा होगा उस दिन तुम्हारे लबो से सुनूँगा..तसल्ली से ...ये जो आदत है ना तुम्हारी बातें करते हुए अपनी जुल्फों में उंगलिया फेरने की ,,मुझे बादलो में बिजली के तड़कने का एहसास देती है ..कभी आईने के सामने खड़े होकर जुल्फों में फसीं  इन उँगलियों को यूँभी देख लेना ....मुझसे बात करते करते अचानक जो मुस्कुराती हो वो मुस्कान हमेशा रहस्यों से भरी होती है ..एक दिन इस मुस्कराहट ...इन होंठों से जुड़े सारे रहस्य हल कर लूँगा मैं पढ़ रहा हूँ तुम्हे समझ रहा हूँ तुम्हे ...अगर समझ पाया तो ...कई बार ऐसा लगा मेरी बातों को समझने के लिए तुम्हे अपनी आँखों का सहारा लेना पड़ता है ...जब किसी बात पर ध्यान देते हुए तुम अपनी आँखे छोटी करती हो तो लगता है मेरे विचार अपनी आँखों के रास्ते खींच रही हो अपने दिमाग तक और समझ में आते ही फिर उसी आकार में लौट आती है तुम्हारी आँखे .... तुम्हे जब लगता है मैं तुम्हे नहीं सुन रहा मैं तब भी तुम्हे ही पढ़ रहा होता हूँ ..ना तुमसे निगाह हटती है ना किसी पल ख्यालों से तुम गायब होती हो ,कहा ना मैं तुम्हे पढ़ रहा हूँ ..जब तुम बेतकल्लुफी जताती हो और सामने कुशन के सहारे  अधलेटी  होकर बात कर रही होती हो ..तो तुम जानती हो मैं तुम्हारे जिस्म की लहर के साथ चढ़ उतर रहा हूँ ... मेरी नज्मो में जो नमक है वो तुमसे ही तो है उधार लिया है मैंने ...एक दिन इस नमक का क़र्ज़ अदा कर दूंगा ...उस दिन तक ..मुझे पढने दो..

Wednesday, June 6, 2012

तुम संग

तुमने कहने सुनने के सारे रास्ते बंद कर दिए ..तुम तक मेरी कोई सदा ना पहुंचे ....चीखती रहूँ मैं इस खुले आसमां के नीचे और तुम जिसने अपने को बंद कर लिया है एक कोठरी में ...क्या नहीं जानते तुम तुम तक मेरी क्या किसी की आवाज़ नहीं पहुंचेगी  साथ में ना पहुंचेगी सुबह की धूप और रात की चांदनी ...बारिश के बाद मिटटी की सोंधी खुशबू से महरूम रहोगे ..शायद यही तुम्हारी नियति है या तुमने इससे अपनी नियति बना लिया है ...तुम ताजगी से दूर रहना चाहते हो चाहते हो बासी यादों में लिपटे रहना  पर जानते नहीं क्या वो अतीत था ..अतीत वर्तमान को काला कर देता  है और काले रंग पर कोई और रंग नहीं चढ़ता ,पर मैं भी कोशिश करती रहूंगी  सुनहले,रुपहले और गुलाबी रंगों के साथ तुम्हारे मन की दीवारों को रंगने  की किसी दिन तो तुम एक झरोखा खोलोगे और मुझे आने दोगे ...कही ना कही कोई संद  रह गई होगी मैं एक किरण बन उतर आऊंगी और तुम्हे एहसास दिलाउंगी रौशनी सबके लिए है दुनिया में तुम्हारे लिए भी और तुम इनकार न कर सकोगे ...मैं आशा हूँ और तुम्हे निराश कैसे छोड़ दूं ...सच है वो तुम्हारी ज़िन्दगी का हिस्सा थी पर अब पन्ने पलट लो नए पन्ने पर कुछ लिखो अगर मुझे मौक़ा दो तो शायद मैं कुछ लिख पाऊं ...आखिर प्यार करती हूँ तुमसे ..
(गीत की भावनाओं को समझिये .........)


Monday, June 4, 2012

तुम बिन ....

पुरानी तस्वीरे ..छूटे रूमाल आधी काटी टॉफी और पेड़ पर चाक़ू से बना निशाँ सब वही है सब गवाह है तुम मेरी थी मेरे साथ थी पर अब तुम्हारे सिवा सब यहीं है. कितना आसान होगा ना जो तुम्हे बे-वफ़ा कह दूं और मोड़ लूँ अपनी राहे ,तुम्हारे करीब से ना गुजरूँ ना तुम्हे सोचूं पर क्या करूं उस नहर का जहाँ पैर डाले दोपहर बिताते थे मेरी राह तुमसे तो मुड़ गई है. पर वो नहर ना जाने कैसे अब भी मेरे रास्ते में आ जाती है ...और तुम्हारी खिलखिलाहट फिर से महसूस करवा देती है ...क्यों नहीं तुमको भाता था माल में घूमना जो मैं बंद कर देता वहां जाना ...तुम्हे सिनेमा  का शौक भी नहीं था मेरे लिए थोडा आसान हो जाता ना ..पर तुम्हे पसंद था मंदिर ,गलियों के चक्कर लगाना रिक्शे में बैठना ...फूटपाथ पर लगी रेहड़ियों से मोलभाव करना ...फिर २ रूपये कम करवाकर मुस्कुराना ...हर दूसरी लड़की यही करती दिख जाती है और साथ में तुम भी ...तुम्हारे खुले बाल जब बस की हवा से मेरे चेहरे पर बार बार आते थे और ना मैं उन्हें हटाता  था और ना तुम कोई कोशिश करती थी बस उसी सुकून भरी छाँव में मैं कितनी गर्मियां काट लेता था . आज तीखी धूप मुझे भीतर तक जला रही है अपने ही जलते मांस की गंध ने सांस लेना दूभर कर दिया है. कितनी आसानी से चली गई ना तुम ...काश मैं जाता और तुम यहाँ होती तो महसूस करती तड़प को दूरियां ही बनानी  थी तो इसी जहां में रहकर बना लेती कसम से कुछ नहीं कहता ...पर उस जहां तक मेरी आवाज़ भी तो नहीं जाती होगी ना ......

Tuesday, May 8, 2012

देखो रूठा ना करो ...


ओह तो ये तुम हो,,,, उसने अपनी उनींदी आँखे खोलते हुए कहा ,
तो रात के ढाई बजे अपने बेडरूम में तुम किसे एक्स्पेक्ट कर रही थी उसकी  की आवाज़ में झुंझलाहट थी ,
 "सलमान खान को ... उसने  मुस्कुराते हुए जवाब दिया.
जिनके पति रात देर से आते है उन्हें बीवी की नाराजगी डर रहता है ...पर तुम्हारा मैं क्या करूँ ?
मेरा क्या है मुझे कितनी प्राइवेसी देते हो तुम ...कितनी लकी हूँ मैं , और तो और बिलकुल पजेसिव भी नहीं हो मेरे बारे में तभी तो सुबह १० से रात ढाई बजे तक एक बार कॉल नहीं किया ....रिअली लव यू ,
क्यों भिगो -२ कर मार रही हो बेचारे गरीब को ...बताया ना ऑफिस में बहुत काम है बाद ये हफ्ता फिर हम दोनों साथ रहेंगे ....कहीं घूमने  का प्लान करे उसने मीठी आवाज़ में कहा
अरे नहीं ..इस दुनिया में सबसे अच्छी जगह अपना घर ...मेरा तो कहीं जाने का मन ही नहीं करता, पता नहीं लोगों को किस बात की कमी लगती है जो फोरन टूर पर या नैनीताल ,शिमला में ढूंढते है ...अभी तो गए थे दो साल पहले वो मुस्कुराते हुए बोली
आज देवी फुल मूड में है एक एक करके वार कर रही है हर वर पिछले से तीखा ... वो मन ही मन मुस्काया
बाय द वे, ये ताने तुमने कही से याद किये है या तुम्हारी क्रियेशन है ...सुपर्ब उसने शरारत से बोला
लो मैं तो तुमारी तारीफ़ कर रही हूँ और तुम्हे ताने लग रहे है ....ऐसा जीवन साथी किस्मत वालो को मिलता है
 बस तुम तारीफ़ ही मत किया करो ...चाशनी भरी बातें मेरी जान ले लेंगी
मैं तो तुम्हारे प्यार में इतनी अंधी हूँ के तुम यहाँ हफ्ते हफ्ते भी नहीं रहते पर मुझे लगता ही नहीं के तुम यहाँ नहीं हो .... ऐसे छाये हुए हो मेरे दिल ओ दिमाग पर ..... उस मुकाम पर पहुँच गया है मेरा प्यार ....
अरे सुनो कल शाम की flight  है सिंगापूर की पांच  दिन लगेंगे ..प्लीज़ packing कर देना
तुम हमारी  एनिवर्सरी पर  भी यहाँ नहीं रहोगे .... I HATE YOU  उसकी आँखे भीग गई
मैडम packing दोनों की करनी है उसने मुस्कुराते हुए दो टिकेट उसके हाँथ में रख दिए ....फिर



Friday, May 4, 2012

अधूरी

कुछ अधपढ़ी किताबें ,कुछ अधूरे लिखे ख़त , कुछ बाकी बचे कामों की लिस्ट के साथ आँख बंद करके लेटी मैं ....सोच रही हूँ आज किसी अधूरे सपने को पूरा कर लूं ..पर ये अधूरापन मुझे कभी पूरा होने नहीं देगा ,याद नहीं आता कभी कोई काम अंजाम तक पहुँचाया हो ..किताबों के मुड़े पन्ने इस बात की गवाही देते नज़र आते है के दुबारा उन्हें खोला नहीं गया है, एक पात्र के साथ दूसरा पात्र गड्ड मड्ड,  सब खुला दरबार कभी शरत चन्द्र की कहानियों में शिवानी की नायिकाएं चली आती और बंगाल से एक क्षण में भुवाली पहुंचा देती ...तो प्रेमचंद्र के हीरा मोती ..यहाँ वहा टहलते दिखाई पड़ते ...इन दिवास्वप्नो में कभी किसी नाटक का कोई पात्र अपने मंगलसूत्र की कसम खाता लगता ...और अचानक मेरा माथा झन्ना उठता .
मैं ऊन की लच्छी सी उलझ गई हूँ सिरा ना-मालूम कहाँ है ..और ना इतना संयम के इत्मीनान से सिरा खोज लूं ,
सच तो कहता था वो , ये अधूरापन ,confusion तुम्हारी परेशानी नहीं है तुम्हारा शौक है ,तुम्हे पसंद है ऐसे ही रहना ..तुमको सीधा सहज कुछ भी भाता ही कहाँ है ...तुम चीज़ों को अधूरा इसलिए छोडती हो के उसमें उलझी रहो ..और साथ में जो हो उसे भी उलझा लो के वो तुम्हारे अलावा कुछ ना सोच पाए .छोड़कर चला गया वो उसे सब पूरा चाहिए था ,मैं मेरा प्यार मेरा समय और मेरा समर्पण ...पर मैं राज़ी नहीं हुई इतनी आसानी से अपना अधूरापन छोड़ने के लिए बस वो चला गया मुझे इस अधूरेपन के साथ , पहली बार उसके जाने के बाद महसूस हुआ शायद वही है जो मेरी इस अंतहीन यात्रा को एक सुखद अंत दे सकता है ...उसके साथ मैं पूरी होना चाहती हूँ , मोबाइल में नंबर है ..पर उंगलियाँ कई बार अधूरा नंबर मिलाकर रुक चुकी है ..... कितना बिगड़ के पूछा था उसने , क्या तुम नहीं चाहती मैं तुम्हारे साथ रहूँ ...उफ़ कितने मासूम से लगे थे तुम और दिल किया तुम्हे गले लगा लूं ...पर ठहर गई  आज अचानक  मेरे भीतर उभर आता है तुम्हारा अक्स मैं किसी जादू से बंधी ....अधूरे ख़त फाड़ती हूँ ,अधपढ़ी  किताबें शेल्फ में लगाती हूँ , इस बार नंबर पूरा मिलाती हूँ .. सुनो मुझसे मिल सकते हो अभी .... बस दस मिनट में ....

Tuesday, April 3, 2012

गुनाह ज्यादा है ...वक़्त कम.

आज दिल कुछ अजीब से लम्हात में जी रहा है ,बड़ा सुकूं है जबके चारो ओर शोर है ...शरीर ऐसा शांत है मानो कितनी मुद्दत के बाद गहरी नींद सोये हो, आस पास की हलचल धीरे धीरे कम होती लग रही है और फिर एक मनचाहा सन्नाटा सा पसर जाता है,आज लगता है उपरवाला मुझे स्पा treatment  देने के मूड में है ,मेरा माथा  धीरे धीरे सहलाकर सारी हलचले शांत कर रहा है ,कोई दर्द नहीं कोई ख़याल नहीं ..बस एक गहरा नीला रंग वही रंग जो सुबह सूरज उगने से पहले आसमां का होता है, आज से पहले ऐसा लगता था मानो सुकूं बस मौत के बाद ही मयस्सर होगा ... खैर मौत किसने देखी है ! इस नीले रंग में ये सफ़ेद सा साया किसका है क्या खुदा मेरे सामने आ गया ..... अब कैसे हो ...कैसा महसूस कर रहे हो ...एक दूर से आती गहरी आवाज़ .....अचानक तेज़ हो जाती है और सारे शोर ज़िंदा अचानक सफ़ेद साए के इर्द गिर्द कई चेहरे उगने लगते है ...मैं इन्हें पहचानता हूँ आर ये मुझे पहचानते है ...कौन है ये लोग ...जो  फ़िक्रमंद निगाहों से मुझे देख रहे है ........ मेरा सुकूं अचानक बुलबुले सा फूटता है ,और मैं चिहुक उठा हूँ जैसे किसी ने तेज़ चिकोटी काट ली ....
" चक्कर कैसे आ गया " मेरी पास की सीट पर बैठने वाली निशा पूछती  है , पिछले दस मिनट से बेहोश हो.
आँख पूरी तरह खुलती है ,शरीर  इतना कमज़ोर महसूस हो रहा है जैसे मानो पत्थर उठा रखे हो ...सारा सुकूं कपूर की तरह उड़ गया. ढेर सारे सवाल हिदायतों और फलो के साथ मुझे रूम पर छोड़ गए. जानता हूँ ज्यादा वक़्त नहीं है मेरे पास .... डॉक्टर बता चुका है ..कभी भी विदा हो सकता हूँ दुनिया से ...क्या पता आज ही वो दिन था ...फिर वापस क्यों लौट आया ... एक क़र्ज़ बाकी है शायद चुका दूं तो बरी हो जाऊं ...दादी कहती थी सारा हिसाब यहीं धरती पर चुकाना पड़ता है. अच्छा बुरा सब कुछ ...आज दादी तुम बहुत याद आ रही हो ...अगर तुम इतनी जल्दी ना जाती तो शायद आज मैं कुछ और होता ...घर पर बात करूँ ? पिछले तीन साल से ना मैंने कोई फोन किया ना कोई फोन आया .... कहूंगा क्या "मैं मरने वाला हूँ " .. वो तो पहले ही कह चुके है "तू हमारे लिए मर चुका है "... एक बार कोशिश करूँ ? जाने दो जब मैंने अपनी ज़िन्दगी खुद चुनी थी और किसी की बात नहीं सुनी थी तो मौत के लिए उनको क्यों परेशान करूँ ..... सच में हर इंसान को ज़िन्दगी में एक बार मौत को करीब से ज़रूर देखना चाहिए ... आँखे बंद करने से पहले मौत इंसान के भीतर की आँखे खोल देती है.... अपनों के आंसू जो नाटक ,ड्रामा लगते थे आज कितने सच्चे लग रहे है ... अपने लिए ये तन्हाई मैंने खुद ही चुनी थी ...मैंने हर वो काम किया जो मुझे मना किया गया ... हर नियम तोड़ा,जिसने मुझे प्यार किया उसका मैंने फायदा उठाया ...नीरू आँख बंद करके मुझपर यकीन करती रही और मैं इस्तेमाल ...घर वालो को यकीन था वो बहु बनेगी उनके घर की ...सबके सपने आशाये जुड़े थे ...और कितनी आसानी से मैं उसे छोकर आगे बढ़ गया ....मेरा सारा परिवार उसके साथ खड़ा था और मैं एक दम अलग, उन्होंने मुझे कोसा ,अपने संस्कारो को कोसा ...मां ने अपनी कोख तक को कोसा पर ..पता नहीं किस धुन में मैं घर से निकल आया ...अनजान शहर में ...अपनी शर्तों पर जीने के लिए ... मैंने नहीं सोचा था ..मेरे हिसाब किताब का दिन इतनी जल्दी आ जाएगा ... गुनाह ज्यादा है ...वक़्त कम...सज़ा तो यहीं पूरी  करनी होगी ...

 

Monday, February 13, 2012

गुफ्तगू प्यार की

प्यार की खुशबू कच्चे आम सी होती है,जो तन मन के सारे तंत्र जगा देती है ,देखो बहस की कोई गुंजाईश नहीं है उसने चहकते हुए कहा ...वैसे मेरी हिम्मत बहस करूँ और वो भी तुमसे ना -बाबा, तुम प्यार पर एक कुकरी बुक क्यों नहीं लिख देती title रहेगा "जायके मोहब्बत के ". तुमको मैं पगली लगती हूँ ना ..इसमें लगने की क्या बात है उसने मुस्कुराते हुए कहा,अमा यार इतने स्वादों की बात करती हो पर खुद एक दम तीखी हो मिर्च की तरह ... एक पल को उसके गाल दहक उठे ..फिर संभल कर बोली "जानते हो लेह लद्दाख में लोगों को मिर्च की गर्मी ज़िंदा रखती है " ...तुम गई हो क्या लेह .... मेरे याद में कभी अपने कसबे के बाहर पैर तो रखा नहीं तुमने . माना दुनिया नहीं घूमी मैंने पर जानती तो हूँ ना ..इन किताबों से ..टीवी से कितना कुछ बताते है ये ..और अपनी जानकारी का पिटारा मुझपर खाली कर देती हो ..और मैं दब जाता हूँ तुम्हारी इन बातों के बोझ तले...इतनी बुरी लगती है मेरी बातें ..तो ठीक है अब तुमसे कभी बात नहीं करूंगी और ना तुम मुझे फोन करना ....
बस यही तो सुनना चाहता था मैं ...जब तुम तुनक कर रूठती हो तो पता नहीं क्यों बहुत मासूम सी लगती हो ...अभी तीखी थी अभी मासूम तुम तय कर लो मैं क्या हूँ ..............
गुफ्तगू प्यार की
चलती रहेगी सुबह तक
दिल के मारो को
एक पल भी आराम कहाँ
फुर्सत मिले
तो सोचे दुनियादारी
इश्क से ज़रूरी
इनको
कोई काम कहाँ

Friday, December 16, 2011

बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने

लिखूं क्या तुम्हारे बारे में ,कोई इतना बे-वफ़ा कैसे हो सकता है ..कितना कोसती हूँ तुम्हे जानकर शायद किसी पल नाराज़ होकर कह उठोगे "कुछ तो मजबूरिया रही होंगी ,कोई यूँही तो बे-वफ़ा नहीं होता ".. और मैं कहूँगी कम से कम शेर तो अपना use किया करो ..

पर तुम तो दुनिया की भीड़ में इस तरह गायब हुए जैसे कभी मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा थे ही नहीं ...माना मैंने भी तम्हे काट फेंका एक  पल में पर तुम नाखून तो नहीं थे ना ..के ना दर्द होता ना अफ़सोस ..जहाँ से काटा था तुमको वो हिस्सा आज भी दुःख रहा है ..नहीं जानती थी ..एक पल का आवेश ज़िन्दगी भर का दर्द दे जाएगा 
..सोचा था तुम्हारे बिना जीना आसान रहेगा ..आखिर ऐसा क्या है तुममें के तुम्हारे बिना मैं रह ना सकूं ..पर हर सुबह मुझे मेरे खालीपन का एहसास दिलाती है ..... माना मैं गलत थी पर क्या इतनी गलत के मेरी गलती तुम माफ़ ना कर पाओ..हर बार भ्रम होता है तुम मुझे देख रहे हो ...पर तुम कहीं नहीं होते .... सिवा मेरे दिल के ..
ये आग मैंने खुद लगाईं और मैं ही सुलग रही हूँ राख होने के इंतज़ार में पर पता नहीं कैसी लकड़ी है ये देह ये आत्मा सालो से सुलग रही है ..तुम्हारी दूरी की आंच ना बुझ रही है ना कम हो रही है ,


अक्सर लगता है तुम शायद अपनी दुनिया बसा चुके होगे ..प्यारी सी बीवी ..दो बच्चे सब होंगे तुम्हारे पास ...पर दिल डरता है तुम्हारे सुकूं से कहीं एक उम्मीद आज भी बाकी है के तुम भी मेरा इंतज़ार कर रहे होगे ..ये अहम् की दिवार इतनी बढ़ गई के मैं इस पार रह गई और तुम शायद उस पार ...लोग कहते है दुनिया बहुत छोटी है ...अक्सर लोग मोड़ों पर मिल जाया करते है पर तुम किस मोड़ पर रुक गए जहाँ से मैं तुम्हे ना देख पा रही हूँ ना ढूंढ पा रही हूँ
आखिर मुझमें ऐसा भी तो कुछ नहीं जो तुम लौट कर आ जाते या फिर जाते ही ना....... 

Friday, November 25, 2011

प्यार के पापकार्न

आजकल जहाँ से गुजरते है एक सोंधी सी खुशबू ठिठकने पर मजबूर कर देती है लगता है कहीं ना कहीं कुछ पापकार्न पक रहे है ये मक्के वाले नहीं ,जी ये तो प्यार वाले पापकार्न है ,छोटे शहरों में जो मोहल्ले की छतों पर,पार्क के कोनो में हुआ करता था आज वो हर सड़क और गली ,मॉल और पार्क ,कैफे और बाज़ार में सामने दिखता है .

मारल पुलिस प्लीज़ माफ़ करो मुझे तो ये गुलाबी मौसम बहुत  पसंद है , जब हवा में सिर्फ प्यार छाया हो .

माना छतें और शामें आज की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी से माइनस हो चुकी है पर दिल तो वही है ना और दिलदार भी साथ ही है, फिर ज्यादा कुछ करना भी तो नहीं है,बस एक कॉम्प्लीमेंट ,एक गुलाब ,एक कप चाय या छोटी सी वाक. सारा नज़ारा बदल देगा .सब सामने ही है पर रोज़ कि व्यस्तताओं  नें आँखों  पर काला चश्मा लगा दिया है 

 सिर्फ युवा  ही नहीं आज हर जोड़ा खुलकर अपने प्यार का इज़हार करता है,चाहें जन्मदिन हो ,valentine डे या यूँही , आखिर बुराई क्या है ,जिस जीवन साथी ने हर सुख दुःख में आपका साथ दिया है अगर उसका हाँथ थाम कर दुनिया के नज़ारे देखने निकल पड़े तो भवें क्यों तिरछी क्यों की जाए,चाहें बरसात के मौसम में एक साथ भुट्टे का मज़ा लेना हो या खोमचे पर खड़े होकर चाट खाना और अपनी "प्रियतमा" को गोलगप्पे खाते हुए देखना.

कुछ द्रश्य जो आज से कुछ साल पहले तक शायद दीखते नहीं थे आज आम है .ऐसे दृश्य हमें एहसास दिलाते है ज़िन्दगी सिर्फ भागने के लिए नहीं है ,कुछ पल सुकूं से गुज़ारने के लिए भी है,किसी रिश्ते में बंधने से पहले वो पल जैसे भी हो निकाले जाते थे और जिए भी जाते थे डर था ना अपने साथी को खोने का ,और आज जब वो साथ है तो वक़्त की कमी का रोना क्यों ?

तीन घंटे पिक्चर हाल में गुजारना कुछ लोगों को पैसे या टाइम की बर्बादी लग सकता है पर कोई बताये सिर्फ साथ रहने के लिए अपनी व्यस्त शाम में से तीन घंटे कौन निकाल पाता है, कितने लोग है जो शाम को जल्दी आकर कहते है चलो तैयार हो जाओ कहीं घूम कर आते है , आसमान में बादल छाते  है ,बरस जाते है जब तक हम आप बाहर निकलते है तब हमें सिर्फ कीचड और ट्रेफिक जाम याद आता है,
 
आज कोई बुजुर्ग जोड़ा जब मॉल में एक कॉफ़ी टेबल पर एक साथ सुकून से काफ़ी का मज़ा ले रहा होता है तो कितने युवा जोड़ों के दिल में यही उम्मीद जगाती है काश हमारा बुढ़ापा भी ऐसे हाँथ में हाँथ डालकर बीते एक दुसरे के साथ. अजीब बात है सबको रश्क है टीनएजर युवाओं से रश्क कर रहे है "जब हम Independent  होंगे तो जैसे चाहें एन्जॉय करेंगे ", युवा अधेड़ों से रश्क करते है "यार हम भी सेटल   हो जाए फिर लाइफ जियेंगे " और बुजुर्ग पीछे मुड कर देखते है और सोचते है काश ..थोडा वक़्त अपने लिए भी निकाला होता . बस यूँही फिसल जाते है हसीं लम्हें रेत कि मानिंद हांथों से
बड़ों के लिहाज के चलते ऐसे पलों का मज़ा सिर्फ पहाड़ों पर छुट्टियों के दौरान ही उठाते थे ना ,आज वीकेंड वही मौक़ा देता है हर हफ्ते आप पर है आप कितना एन्जॉय कर पाते है ,प्यार तब भी था प्यार अब भी है बस पहले जताते नहीं थे अब छिपाते नहीं.
भले ही युवा जोड़ों को गुटर-गूं करते देख दिल में टीस उठे कभी उनको बे-शर्म भी कह दे पर वो टीस खुद वो लम्हे ना एन्जॉय कर पाने की होती है, तो रोका किसने है ज़िन्दगी तो यूँही भागती रहेगी जब तक जोड़ों के दर्द आपको धीमे चलने के लिए मजबूर नहीं कर देंगे क्या पता तब वक़्त हो ,पैसा हो पर साथी ना हो ,लम्हे तो चुराने ही पड़ेंगे ना ,

ये प्यार के पोपकोर्न है आपके हाँथ थामने भर से खिल उठेंगे और अपनी सोंधी खुशबू से मजबूर कर देंगे कि बस एक रूमानी सा ब्रेक तो बनता ही है ना .

Saturday, November 5, 2011

तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती



क्या तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती ...उसने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा ..कह तो गया फिर मुस्कुरा कर बोला इसमें तुम्हारा क्या दोष इतनी सादगी में भी गज़ब ढाती हो, शायद तुम्हारे जैसे रूप को ज़माने से बचने के लिए परदे का चलन हुआ होगा ... तुम पर शायरी सवार हो रही है ये लो पेन और लिखना शुरू कर दो ..मुझे नहीं समझ आती तुम्हारी सपनो की बातें वो खिलखिला दी .
सच में वैसे तो हर माशूक को अपना महबूब ज़माने से प्यारा लगता है पर वो थी ही पूरा चाँद उसके आते ही आसपास की सारी लडकिया तारों सी लगती और वो उनमें एक दम अलग से जगमगाती हुई .... एक दम धुली -धुली एक दम ताज़ा , पर उसका रुझान सिर्फ इस नाचीज़ शायर में था ..शायरी में बिलकुल नहीं , वो भविष्य की बातें करती और ये सपनो की ,ये कहती सपने बंद आँखों से देखे जाते है और उन्हें पूरा करने के लिए आँखे खोलनी पड़ती है .... अब इसे फितूर कहे या इश्क का सुरूर उसको ना समाज में आना था और ना आया ... दिन ,महीने फिर साल ...
आज वो दुल्हन बनी है सर से पाँव तक सजी हुई ...पूनम का चाँद जिससे निगाह चाह कर भी नहीं हट पा रही थी वो तोहफा लेकर स्टेज पर चढ़ा कुछ तो चुभा दिल में ..पर लबों पर मुस्कराहट उभर आई ..एक साथ चले थे दोनों पर मंजिल अलग अलग थी तो जुदा हो गए .... धीरे से उसके पास जाकर फुसफुसा उठा
"क्या तुम थोड़ी कम खूबसूरत नहीं लग सकती " ..और थोड़ी देर के लिए दोनों की आँखे धुंधली हुई और बचे हुए ख्वाब आँखे छोड़कर बह चले .....



Saturday, October 1, 2011

आप तो सुपरवूमन हो -हे देवी माँ



हे देवी  माँ सच्ची अब लिमिट की भी लिमिट क्रोस हो गई है या तो हमें दे दो अष्टभुजा या हम भी चले नौ दिन के अनशन पर, आपके सामने से हटेंगे नहीं, एक तो आपकी मोहिनी सूरत ऊपर से शेर और इतने सारे शस्त्र (लाइसेंस है क्या ?) कोई इम्प्रेस नहीं होगा तो क्या होगा, लाइन तो लगेगी ही ना ,आप तो सुपरवूमन हो और अपन ठहरे आम भारतीय नारी सुबह से  मशीन की तरह जो स्टार्ट होते है रात बिस्तर पर  उल्लुओं और झींगुर को गुड नाईट बोलकर सोने जाते है कई बार चौकीदार भी दांत दिखाता है "मेमसाब आप तो जाग ही रही है कहें तो मैं थोड़ी देर झपकी मार लूं ".  दिन भर की चढ़ी मेकअप की परत के साथ नकली मुस्कान को भी उतार कर किनारे रखते है ..अगले दिन सुबह सुबह फिर जो चिपकानी होगी होंठों पर ,.. इतना टाइम नहीं होता हमारे पास कि जवाब दे सके "क्या हुआ?" "चेहरे पर बारह क्यों बजे है ","तबियत  ख़राब है क्या ".  अजी सरदर्द ,कमर दर्द,एसिडिटी  ये सब तो खाली बैठे  लोगों के शगल है ये राजरोग भोगने और आराम से सबको सुनाने लगे तो पहुँच गए बच्चे स्कूल और पतिदेव और हम ऑफिस. हम नॉन-स्टॉप चलते है कितनी बार पानी पी पी कर भेजा (इंजन ) ठंडा करना पड़ता है ,सच कह रही हूँ माँ कई बार बंद करने की कोशिश की पर इमोशनल धक्के मार मार कर स्टार्ट करवा दी गई. कुछ नहीं तो अपना शेर की भेज दो कुछ दिनों के लिए कितना गुर्राते है सब एक बार दहाड़ देगा ना मेरे फेवर में तो बॉस से बिग-बॉस तक सबकी बोलती बंद. मां अपनी ट्रिक हमारे साथ भी तो शेयर करो कैसे सारे के सारे आपके सामने सर झुका देते है और कान पकड़ कर खड़े रहते है जबकि आप तो बस मुस्कुराती रहती हो कुछ कहती भी नहीं और यहाँ हमने बोलने को मुहं खोला वहां सामने वाला कान बंद करके निकल लेता है. कुछ तो मैजिक  करती ही हो आप की एक झलक  के लिए पहाड़ चढ़ जाते है नंगे पैर दौड़े आते है दारु -चिकन मटन सब छोड़ देते है , यहाँ तो कहते कहते कलेंडर की तारीखे बदल गई पर कुछ नहीं होता कभी कभी लगता है सुबह की चाय की तरह हमारी चक चक की भी आदत पड़ गई है. अरे आप तो मुस्कुराने लगी सोच रही होंगी कितनी शिकायत करती है ये लड़की पर क्या करूं आपसे नहीं कहूँगी तो किससे कहूँगी पर प्रोमिस कीजिये हमारे सारे अकाउंट (प्रोब्लेम्स वाले ) इसी साल सेटल करेंगी और सिर्फ खुशिया की कैरीफॉरवर्ड होंगे टेंशन ,दुःख और आंसू नहीं आपको छ महीने की डेडलाइन देती हूँ वरना अप्रैल में पक्का बैठ जाउंगी अनशन पर अब अन्ना शीतकालीन सत्र का वेट कर सकते है तो मैं क्यों नहीं . 
http://epaper.inextlive.com/12985/INEXT-LUCKNOW/29.09.11#p=page:n=15:z=2

 


Thursday, September 22, 2011

एक ख़त.....

डिअर X ,

तुम तो जानते ही हो  तुम से मेरा रिश्ता facebook से ही है , तुम्हारी हर बात स्टेटस अपडेट जैसी जिसे मैं पढ़ती ,गुनती और like  करती और एक दम से कमेन्ट भी कर देती हूँ ..तुम भी उस कमेन्ट पर अपना कमेन्ट करते हो और इसी तरह हम दोनों दुनिया से बे-खबर खोये रहते है  तुम्हे याद है ना जब हम आर्कुट पर थे कितना सताया था दुनिया ने ,मेरे तुम्हारे दिल की बातें गली गली डिसकस हुई थी मोहल्ले के चबूतरो से गाँव की चौपालों तक ..हर जानने वाला  हमारी ख़ास बातें आम कर रहा था उफ़ कितनी बदनामी ,तुम्हारी नीली शर्ट वाली तस्वीर चाह कर भी तुम्हे सेक्सी नहीं कह पाई वही ना दुनिया का डर ....
कितना मज़ा आता है ना दुनिया को दूसरों के प्रोफाइल में झाँकने में ,तसवीरें पलटने में ,एक से दुसरे ,दुसरे से तीसरे दोस्तों पर टाइम पास करने में, ये दुनिया दो प्यार करने वालों को कभी सुकून  से चैट नहीं करने देगी , मुझे कभी कभी डर लगता है कहीं तुमने भी तो दो प्रोफाइल नहीं बना रखे एक मेरे लिए और एक ...नहीं नहीं ऐसा सोचने से पहले पूरा facebook  हैक हो जाए ,सर्वर बैठ जाए ,सोशल नेट्वोर्किंग तबाह हो जाए ,क्या करूं मेरी फ्रेंडलिस्ट में दोस्त तो हज़ारों है पर कमिटेड तो मैं तुमसे ही हूँ ना, पता नहीं तुम्हे मेरे कुछ ख़ास दोस्तों से क्यों परेशानी होती है क्या तुम नहीं जानते वो तो सिर्फ टाइम पास है ..अब एक स्टेटस पर 40 -45 लिखे और कमेन्ट ना हो तो बताओ कैसे दिल लगेगा ,और तुम भी ना रहते कितने दूर हो क्या मैं जानती नहीं वो नासपीटी angel इन sky इसी ताक में रहती है के तुम कुछ लिखो और वो फट्ट से like कर दे ..हर वक़्त तुम्हे इम्प्रेस करना चाहती है ,पिछले हफ्ते उसकी जिस तस्वीर पर तुमने उसे "nice क्लिक" लिखा था उसका पोस्टर बना कर कमरे की दीवार पर लटका दिया है ,हिम्मत तो देखो ,सच कहती हूँ किसी दिन दिमाग खराब हुआ तो उसको फेसबुक की वाल पर बिना रस्सी लटका दूँगी , और R .I .P  भी लिखकर like  कर दूँगी ,अब तुम कहोगे मैं पजेसिव हो रही हूँ ,हाँ तो इसमें बुराई  क्या है ? जिससे सारे एकाउंट्स के paaswords  शेयर किये हो उससे इतनी भी उम्मीद करना बेमानी है क्या, मैं तुम्हारी और तुम मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा है मैं कोई स्टेटस  नहीं जिसे जब चाहा पोस्ट किया जब दिल में आया डिलीट कर दिया,खुदा ना करे वो दिन आये ,  प्लीज़ मेरे लिए अपनी privacy सेट्टिंग ओनली मेरे लिए कर दो ना प्यार में सब पब्लिक होना अच्छा नहीं होता. मेरा बस चले तुम्हारा शेयर का आप्शन ही disable कर दूं .

तुम्हारी

http://epaper.inextlive.com/12500/INEXT-LUCKNOW/22.09.11#p=page:n=15:z=1

Thursday, July 7, 2011

बड़े मियाँ दीवाने

उम्र के उस मोड़ पर खड़े बड़े मियाँ अब आप नाम पूछोगे ,अमां यार रहने दो नाम जान कर कौन सा तीर मार लोगे बस आप तो इश्टोरी के मजे लो ,हाँ तो उम्र के उस मोड़ पर बड़े मियाँ  खड़े थे जहाँ जवानी छोड़ कर भागती है और बुढ़ापा अपनी ओर खींचता है और इंसान उसी लकीर पर तब तक खड़ा रहना चाहता है जब तक खड़ा रह सके ..पकते बाल पहले मेहँदी फिर हिजाब से रंगे जाते है ..महीन लकीरे दाढ़ी मूंछो से छुपाई जाती है ...हलके रंगों से गहरे रंगों की ओर फिर से दौड़ा जाता है .....और पड़ोस के जवान होते बच्चो को ध्यान से सुनकर ..नए शब्द और मुहावरे सीखे जाते है ...मतलब सींग तुड़ा कर ...समझ गए ना आप .

अब
बड़े मियाँ  तो अपने को स्मार्ट समझ रहे होते है और आसपास के बच्चे उनकी स्मार्टनेस देखकर ठहाके लगा रहे होते और नवयुवतिया समझने की कोशिश कर रही होती है "ये अंकल को हुआ क्या है ".  
बड़े मियाँ सोचते हाय हम इस समय जवान क्यों ना हुए इतनी रंगीन ज़िन्दगी तो हमारी जवानी में ना थी ,इतना खुलापन ,इतनी आज़ादी . अब बड़े मियाँ एक डोर पकड़ते है तो दूसरी हाँथ से छूट जाती है...इक चीज़ जो बड़े मियाँ की उम्र से ज्यादा तेजी से बढ़ रही है वो है उनका ईगो  गलती से एक हसीना (जिसपर ये फ़िदा थे ) अंकल कह कर निकल गई ..तो ईगो में आग लगनी थी तो लग गई पर फुकने से किसका भला हुआ है . आफिस में अपने टार्गेट हर रोज सेट करते आइये उनके टार्गेट देखे और समझे कोई फायदा नहीं टार्गेट धरे के धरे रह गए हिम्मत ही नहीं  जुटा पाए बड़े मियाँ
मीता- बहनजी टाइप, जिसने अपनी दुनिया अपनी चोटी में बाँध रखी   है अगर उसने अपनी चोटी खोली तो शायद भूकंप आ जाए .
रीता -जो दुनिया को अपनी जूती पर रखती है ,उसके द्वारा उच्चारित सुभाषित देल्ली बेल्ली को भी मात करते है .
अनीता -चालु चैप्टर जी इसी नाम से बुलाते है है उसे ,उसका कोई काम कभी नहीं अटकता और वो अपने साथ किसी को अटकने नहीं देती 


गीता -बेचारी मीता और अनिता के बीच का पात्र है मीठी होने की कोशिश में चिपचिपी हो जाते है और सब पीछा छुडाते नज़र आते है,अगर मीता के साथ रहती है तो परेशान और अगर अनिता के साथ तो महापरेशान .


सविता- इन २०+ कन्याओं में ये ४५  + महिला जो सामान भाव से सबसे मित्रता रखती है वो भी
बड़े मियाँके दौर से गुज़र रही है पर बेहतर तरीके से (इनकी कहानी फिर कभी ,कृपया याद दिला दीजिएगा )

अब बात आई
बड़े मियाँ की उनको आपकी सलाह की ज़रुरत है कौन सा टार्गेट सेट करे और क्यों ?


(सत्य घटना पर आधारित ,पात्रों के नाम काल्पनिक है और लय में रखे गए है , अगर किसी को यह पात्र अपने जैसा लगता है तो इसमें लेखक का नहीं आपकी उम्र का दोष है "टेक इट easy " }




Thursday, June 23, 2011

उदासी

उसकी उदासी बेहद संक्रामक है ,वो गहरी उदास आँखों वाला लड़का जब भी क्लास में अपनी सीट लेता ,उसकी आँखों की उदासी मेरी भी आँखों में भी उतर आती ,जब मुस्कुराता होगा तो कैसा दिखता होगा ये सवाल मुझे और जाने किस किस को परेशान करता होगा ,हिम्मत भी नहीं होती की सामने जाकर पूछ लूं ,पर कुछ तो है उन उदास आँखों  में जो खुद से जुदा नहीं होने देती,नहीं नहीं अगर आप सोच रहे हो मुझे उससे प्यार है तो आप गलत हो मेरी ये बेचैनी प्यार की नहीं बल्कि उत्सुकता की है ..किसी रहस्य को जानने की ,ऐसा क्या है जीने उसके चेहरे पर सदा के लिए अपना मकान बना लिया है .......
उसका कोई दोस्त भी नहीं जो कुछ पता चले ,जब निगाह मिलती है तो उनमें इस कदर अजनबीपन पसरा रहता है की मेरी निगाह कतरा कर वहाँ से लौट आती है,एक दो बार आवाज़ सुनी है उसकी ,मीठी है बार कम बोलता है ना तो उससे भी अंदाजा लगाना मुश्किल है,मैंने कितनी कहानियों को उसके इर्द-गिर्द बुन लिया ,या अपनी कहानियों में उसे ले जाकर फिट करने की कोशिश की पर कहानी का अंत क्या करू ..एकतरफा अंत करना अन्याय नहीं होगा क्या किरदार के साथ ,अब आपको फिर लगने लगा मुझे उससे प्यार है ,अरे नहीं भाई ,वो मेरी कहानी का एक पात्र है अब उस पर निगाह नहीं रखूंगी तो कहानी के साथ न्याय कैसे करूंगी ...
आज कई दिन क्र बाद वो वापस क्लास में आया है अजीब सा लग रहा है ....अजीब हाँ उसके चेहरे पर चमक और मुस्कान दोनों है हाँथ में मिठाई का डिब्बा सब आश्चर्य से देख रहे है उसको पहली बार खुश देखा है ,उसकी मंगेतर एक साल पहले कोमा में चली गई थी दुर्घटना के बाद आज होश में आई है ..उसकी आँखों में उदासी दूर दूर तक नहीं है चमक है ...
मिठाई मुह में रखते ही अचानक अपनी आँखे कुछ गर्म सी लगने लगी आइना देखा तो ....आँखों में कुछ था ... मैंने कहा था ना उसकी उदासी संक्रामक है ..

Thursday, June 2, 2011

माचिस की डिब्बी

मई के महीने में शीत लहर सी दौड़ गई ...अन्दर तक काँप गई वो  नहीं वो नहीं हो सकता यहाँ  क्या कर रहा है .... क्या कशमकश है जिसकी एक झलक देखने को सारी दोपहर खिड़की पर गुज़ार देती थी लू के थपेड़े भी ठन्डे मालूम पड़ते थे आज उससे सामना होने के अंदेशे से कलेजा मुह को आने लगा है.... किसी अनहोनी कि आशंका से वो घबरा उठी.
 हे भगवान् वो  ना हो .... उसके  के होंठ बुदबुदा उठे , पहली बार अपनी सहेली दिशा के घर मिली थी उसकी  बुआ का बेटा था गर्मी की छुटियों बिताने, पहली नज़र में  कुछ अजीब सा लगा था पर जब उसने मुस्कुरा कर देखा तो आँखे और दिल दोनों उसके पास कब ट्रांसफर हो गए पता ही नहीं चला ... कितनी दोपहर दोनों साथ रहते एक दिन जब बातों बातों में  उसने  हँसते हुए धीरे से हथेली दबा दी थी पूरी कि पूरी पसीने से भीग गई थी ...बस चिट्ठियों का सिलसिला चल निकला ...माचिस की डिब्बी में सात तह में मुड़े ख़त ...उस दौर में उन खतों से ज्यादा कुछ भी कीमती नहीं था ..पर जला कर फ्लश करने पड़ते थे पर उससे पहले हज़ार बार चूमे जाते ....
उसके जाने के बाद दिशा को हमराज़ बनाया ...
अब उसकी चिठियाँ किसी और  के पते से उसके  के हांथो तक आती  .... हर शब्द नए सपनो तक ले जाता ..आँखे कुछ मुंदी और कुछ खुली सी रहती हर वक़्त हलकी हरारत सी ...पर इलाज करने वाला तो बहुत दूर बैठा था ..फोन पर बात ना करने का फैसला हम दोनों का ही था और चिट्ठिया जलाने का भी .... इस दफा गर्मी की छुटिया कुछ देर से आई या साल बहुत धीरे बीता निगाहें किसी ऐसे को ढूंढ रही थी जो वहां नहीं था ..... पर वो आया अभी भी उतना ही मासूम लग रहा था और वही मुस्कराहट जिसने मुझे खुद को खोने पर मजबूर कर दिया था ...
उसने फरमान भेजा ..मिलना है ..
पर कहाँ ?उसका  सवाल था
जहां तन्हाई मिले .... उसने मुस्कुरा कर कहा
दो लोग एक साथ कभी तन्हा नहीं होते .. और तन्हाई वो सेफ नहीं ...वो मुस्कुरा दी
तुम्हे किससे डर लगता है ...मुझे से या मेरे साथ तन्हाई में मिलने से
मुझे खुद से डर लगता है वो खिलखिला दी... पर पता नहीं क्यों वो खुद इस डर को जीना चाहती थी पिछले एक साल कई बार वो तन्हाई में मिलना चाह रहा था हर ख़त में पूछता था आज उसकी बे-ताबी उसकी आँखों से साफ़ झलक रही थी
 वो जब मिले तो जाना ख़त दर ख़त दोनों का रिश्ता कितना मज़बूत हो चुका है दोनों असहज थे ..फिर सहज हुए फर असहज हुए ... उसके बालों से गुलाब की  भीनी महक आ रही थी ... कुछ देर बाद वो महक उसके वजूद का हिस्सा बन गई ..
ना फूल सदा रहते है ना खुशबू ...उसका रिश्ता तय हो गया बहुत रोई ..गिड़गिड़ाई  किसी तरह उसको फोन किया ...
"नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकती ..मैं अभी ट्रेनिंग पर हूँ ६ महीने नहीं आ सकता"
"मैं घर वालों को नहीं समझा सकती"
"मैं तुम्हारे ख़त तुम्हारे ससुराल पोस्ट कर दूंगा ,अगर मेरी नहीं तो किसी कि भी नहीं "
प्यार, यादें ,मायका सब छोड़ कर जाना पड़ा ..और रमते रमते रम गई .... जो नहीं मिला उसका क्या गम करे जो मिला वो भी तो बुरा नहीं ...
आज २ साल बाद खुमारी ,खुशबू ,तन्हाई  ,माचिस की डिब्बी और उसमें दबे ख़त सब ज़िंदा हो गए ...
वो सामने खड़ा था और शायद पहचानने कि कोशिश कर रहा था ... एक कसक सी आँखों में उतरी फिर अजनबी सन्नाटा  पसर गया ... उसने देखकर भी नहीं देखा ...बड़ी देर तक उसकी धड़कन तेज़ रही ....
आज दो दिलो ने वाकई सन्नाटे को देर तक सुना

Monday, May 23, 2011

वो मैं और facebook

(१)
मैं उसे सालों से जानता हूँ हमारे ब्रेकप   के बाद भी वो मेरे फसबुक status को चेक करती होगी ...मैंने उसे
फ्रेंडलिस्ट  से हटा दिया है पर उसकी रूम मेट शमा अभी भी जुडी है ..जानता हूँ वो मेरी तस्वीरे चेक कर रही होगी ... पंद्रह दिन उसके बिना बहुत भारी है पर मेरा दिल ये मानने को तैयार नहीं की उसने मुझसे सारे रिश्ते तोड़ लिए है ...... जी भर के घुमा हूँ दोस्तों के साथ  पंद्रह दिनों में जी भर तसवीरें खिचवाई है ..और फसबूक ,ऑरकुट पर पोस्ट भी की है ..आखिर उसे पता तो चले मैं कोई देवदास नहीं हूँ मुझे फर्क नहीं पड़ता. उसके होने ना होने से वो कोई आक्सीजन नहीं है जिसके ना होने से मेरी साँसे बंद हो जाए ...या वो कोई सूरज नहीं इसके ना होने से मेरा चेहरा सूरजमुखी की तरह मुरझा जाए ... इस बार उसको मुझे मनांना होगा बहुत हो गई जबरदस्ती ......
(२)
तस्वीरें तो मुस्कुरा कर खिचवा रहा है पर ये नहीं जानता आँखों में तैरती उदासी छिपाई नहीं जा सकती ..पंद्रह दिन हो गए मुझे पता है उसने गुस्से में मुझे अपनी फ्रेंडलिस्ट से हटा दिया है पर क्या इतनी आसानी से दिल से ,दिमाग से भी disconnect  कर सकता है क्या ..जानती हूँ मुझे भेजने के लिखे मेसेज ड्राफ्ट में संभाल कर रख रहा होगा ..रात भर जागी आँखों की उदासी इन रंगीन तस्वीरों में साफ़ दिखती है ...एक मिस कॉल भी नहीं दिया ,एक SMS  भी नहीं ,ट्विट्टर पर भी तो भेज सकता था सारा दिन इंतज़ार में जाता है ...अगर मुझसे सारे रिश्ते तोड़ रखे है तो अभी भी हाँथ में मेरा दिया ब्रेसलेट क्या कर रहा है ...ठीक से खुश होने का दिखावा करना भी नहीं आता ......पर पंद्रह दिन हो गए अभी तक मनाने भी नहीं आया .....
(३)
वो सामने से आ रही है ,कितनी प्यारी लग रही है जानती है मुझे उसपर नीला रंग कितना पसंद है ..सब नीला पहना है जानता हूँ मुझसे बात नहीं करेगी ...अगर पहले बात कर लेगी तो उसकी ख़ूबसूरती में कमी जो आ जायेगी .....
कैसे दिखावा कर रहा है जैसे मुझे देखा ही नहीं ..पर अजनबी की तरह वर्ताव कर रहा है लगता है बेहद नाराज़ है आज बीस दिन हो गए ........उसके सारे तोहफे लौटा दूँगी आखिर समझता क्या है उसके बिना नहीं रह सकती हूँ क्या ...
अचानक ख्यालों में खोये खोये ..सामने से आती कार  नहीं दिखी एक पल में वो उसकी बाहों में थी ...वो गुस्से में चिल्ला रहा था " कभी सड़क पर ठीक से नहीं चलोगी ,पता नहीं ध्यान कहाँ  रहता है अभी कुछ हो जाता तो " .
"तुम्हारे बिना जी कर भी क्या करुँगी " 



वो मैं और facebook
....

Friday, May 20, 2011

मायावी


आज पूरे चाँद की रात है ..उसने कान में फुसफुसाते हुए कहा ..

तो ? वो तुनक उठी

आज ना मिलो तो बेहतर .. बहुत रोशनी होगी ना छत पर .. उसने समझाया

अरे ये तो मेरी लाइन होनी चाहिए थी ना ..वो खिलखिला उठी ..

उसकी जिद थी भी गज़ब और हिम्मत उससे भी ज्यादा वरना ..तीन छत पार कर जाने का माद्दा मुझमें तो नहीं था

पर वो बेफिक्र आधी रात अपनी छत पर मेरा इंतज़ार कर रही थी ..और मैं दुनिया की फिक्र में घुला जा रहा था ...दिन में अगर कभी गली में आती जाती दिख जाती तो इतनी अजनबी निगाह डालती के एक बार यकीन नहीं होता की ये वही है ...

एक तो चांदनी रात ऊपर से सफ़ेद दुपट्टा डाले शरारत भी आँखों से मुझे देख रही है .... कितनी मायावी सी लग रही है ..क्या लडकिया वास्तव में इतनी खूबसूरत होती है ...एक बार दिल किया उसके पैर देखूं ...कही उलटे तो नहीं

दादी कहती थी चांदनी रात में ऎसी खूबसूरत चुड़ैले सफ़ेद कपडे पहन कर घूमती है ...अनायास अपनी सोच पर मेरी हसी छूट गई

क्या सोच रहे थे बोलो ना ...उसने अपनी बाहें मेरे गले में डालते हुए कहा ..फिर आदतन खुद ही बोली "मैं सुन्दर लग रही हूँ आ ..सब कहते है सफ़ेद रंग मुझे सूट करता है "

दिल किया एक बार बता दूं .... चुड़ैल .... पर फिर जो होता उसे संभालना मेरे बस की बात नहीं थी .. .... उसको बाहों में भर लिया ..उसको गले लगाना हमेशा सुकूं ही देता है ऐसा लगता है ...कोई मंतर चल गया हो ..... और जब दो दिल मिल रहे हो ..तो ज्यादा दिमाग नहीं चलाना चाहिए











Thursday, March 17, 2011

होली ....

होली ..हर उम्र में होली का अपना मज़ा होता है ..मन फागुन की बयार में बौराने लगता है आज भी बौइरा रही हूँ पर तुम पता नहीं कहा हो ..शायद कंधे पर लैपटॉप डाले ऑफिस की तरफ जा रहे होगे ...या अपनी शॉप पर बैठे होगे ..तुम कहाँ हो और आज क्या कर रहे हो मुझे कुछ भी नहीं पता पर हर होली  दिल में टीस जरूर दे जाती है ..... मेरी भटकी आँखों को कई बार ... निलय ने पकड़ा है  "किसे ढूंढ रही हो सपना " और मैं मज़ाक में कहती हूँ "जब तुम सामने हो तो मुझे किसी को ढूँढने की जरूरत नहीं ....
आज बरसो बाद सिगरेट पीने की इच्छा हो रही है ..मन कर रहा है दो कश भरु और और मुह से धुएं के साथ अपने अन्दर से तुम्हे भी बाहर निकाल दूं .. तुम्हारी यादें कसैली सी लगने लगी है ..तुमने जब हांथों में रंग लेकर मेरी तरफ पहली बार शरारत से देखा था तो सच मानो मेरे गाल भी उतने ही बेताब थे जितने तुम्हारे हाँथ ...और मैं बिलकुल नहीं चाहती थी कोई मेरे गालों पर तुमसे पहले गुलाल लगाये ...सारी रात इसी इंतज़ार में थी ...तुम कौन सा रंग लगाओगे ... सुर्ख लाल ..जो मैं तुम्हारे हांथो से अपनी मांग में देखना चाहती  थी ,चमकीला  हरा जो शायद मेरी कलाइयों में चूड़ी बन खनकेगा ..पीला जो हांथो में हल्दी बन सजेगा या फिर रुपहला मेरे सपनों की तरह.
तुम जब मेरी ज़िन्दगी में शामिल होने लगे थे तब बहुत कच्ची उम्र में थी मैं ..अल्हड पर तुमको देखते ही मानो किस अनुशासन से बंध जाती थी ..कितनी बार सोचती तुम कुछ कहो ..पर नहीं इसी अबोले पलो के बीच दिवाली से होली आ गई ....और मेरे मन में आकर्षण के बीज में अंकुर फूटने लगे ..कभी कभी जब तुम्हे सोचती तो शारीर से ना जाने कैसी सोंधी सी महक उठती और मैं कस्तूरी मृग की तरह बौरा उठती .... सब जादू सा लगता ...सपने सा ..सपना का सपना ...
तुम जब मेरी तरफ रंग लगाने के लिए बढे ..तो मैं सकुचा रही थी पर ..ये अनुभव बिलकुल वैसा नहीं था ...मेरे कोमल सपने एक पल में कुचल गए ...तुम्हारे हांथो में काला रंग था जो तुम बड़ी कठोरता से मेरे मुह पर मेरे गले पर लगा रहे थे ..और तुम्हारे दोस्तों की आवाजें "छोड़ना मत " ,"मौके का फायदा उठा यार ", "तेरी तो सेटिंग है "... कानो में पिघले सीसे की तरह उतर रहे थे मैं अपने को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी ..बीच बीच में उठती ..शराब की तीव्र गंध में जो कस्तूरी  खोई वो आज तक नहीं  मिली ....
उस होली ने छोड़ा मुह पर काला रंग जिसको कितना उतारने की कोशिश की पर आज भी ..कहीं मन के कोने में रह गया है ..जो हर होली रंगों को देखते ही पूरे अस्तित्व को अँधेरे में डाल देता है ........
आज फिर होली है हर तरफ रंग है निलय आने जाने वालो को बोल रहे है सपना को रंग पसंद नहीं है ..और गुलाल के टिके लगा रहे है ...निलय के मनपसंद त्यौहार पर मेरा ना होना उसे मायूस तो करता है पर कभी भी उसने जबरदस्ती नहीं की ..जब भी वो नए शादीशुदा जोड़ो को होली में मस्ती करते देखता तो उसकी उम्मीद भरी आँखे मेरी तरफ उठ जाती ..ये हमारी शादी के बाद दूसरी होली है ..मैं निलय का चेहरा देख रही हूँ ...कितना प्यार करता है मुझे ...कितना सुरक्षित महसूस करती हूँ उसकी बाहों में ....और मैं किस के लिए  लिए निलय को तकलीफ दे रही हूँ जिससे मेरा कोई रिश्ता भी नहीं है 
अचानक सारी कालिमा ख़त्म होने लगती है और थाली में सजे रंग मानो आवाज़ देते है आओ और सजा लो हमें अपनी ज़िन्दगी में ..मेरे हांथो में गुलाबी रंग लिए मैं निलय पर टूट पड़ती हूँ और बिना उसे संभलने का मौक़ा दिए रंगों में सराबोर कर डालती  हूँ ... निलय की आँखों में कई रंग तैर जाते है ..भौचक्का .... विस्मय ...आश्चर्य .. शरारत ..फिर...  कितनी देर हम दोनों होली खेलते  रहे याद नहीं....इस होली की यादें ऐसी बनी की अब शायद कोई और होली कभी याद ना आये .....



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Sonal Rastogi