मुझे आज भी गुमां है
तुम्हारा शहर जानता हूँ
तेरी पायल की आवाजें
तेरी सीढ़ी से मेरे दर तक
उन्हें सुनने की चाहत में
मैं हर शब जागता हूँ
तुम्हारे इत्र की खुशबू
जो खस सी ख़ास होती थी
उसी जादू की ख्वाहिश में
दुआ दिन रात मांगता हूँ
मेरी हर नज़्म फीकी है
नमक तुमसे ही आता था
उन बे-स्वाद मिसरों के वास्ते
तुम्हारा स्वाद मांगता हूँ
तुम्हीं ने तो तो सौपे थे
वो काले धागे नज़र वाले
उनकी गाँठ खोलने को
तुम्हारा साथ चाहता हूँ
मैं तुमको पहचानता हूँ
तुम्हारी बोलिया सुनकर तुम्हारा शहर जानता हूँ
तेरी पायल की आवाजें
तेरी सीढ़ी से मेरे दर तक
उन्हें सुनने की चाहत में
मैं हर शब जागता हूँ
तुम्हारे इत्र की खुशबू
जो खस सी ख़ास होती थी
उसी जादू की ख्वाहिश में
दुआ दिन रात मांगता हूँ
मेरी हर नज़्म फीकी है
नमक तुमसे ही आता था
उन बे-स्वाद मिसरों के वास्ते
तुम्हारा स्वाद मांगता हूँ
तुम्हीं ने तो तो सौपे थे
वो काले धागे नज़र वाले
उनकी गाँठ खोलने को
तुम्हारा साथ चाहता हूँ