लाठी कल बरसाई थी
इस बरस पड़ेंगे पाँव सखी
पीर ना मद्धम होने पाए
ताजे रखो घाव सखी
जूती सर पर पड़ी हमारी
रख जूती पर पाँव सखी
छीनेगे पतवार हमारी
खुद खेवेंगे नाव सखी
पीड़ा हुई सब की सांझी
दिल्ली या उन्नाव सखी
मरी कोख में या बस पर
था वहशत का भाव सखी
ये गिरगिट बदलेंगे रंग
समझो सारे दांव सखी
छोड़े जिंदा फिर डस लेंगे
है बिच्छू सा स्वभाव सखी
बांटने वाले आज समझ ले
एक है सारा गाँव सखी