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Monday, December 31, 2012

रख जूती पर पाँव सखी !


लाठी कल बरसाई थी
इस बरस पड़ेंगे पाँव सखी
पीर ना मद्धम होने पाए
ताजे रखो घाव सखी
जूती सर पर पड़ी हमारी
रख जूती पर पाँव सखी
छीनेगे पतवार हमारी 
खुद खेवेंगे नाव सखी
पीड़ा हुई सब की सांझी
दिल्ली या उन्नाव सखी
मरी कोख में या बस पर
था वहशत का भाव सखी
ये गिरगिट बदलेंगे रंग
समझो सारे दांव सखी
छोड़े जिंदा फिर डस लेंगे
है बिच्छू सा स्वभाव सखी
बांटने वाले आज समझ ले
एक है सारा गाँव सखी








Tuesday, December 18, 2012

बस देह भर


पुनरावृति
हताशा की
एक मौन
अपने होने पर
एक पीड़ा
नारी होने की
वही अंतहीन
अरण्य रुदन
बस देह भर
ये अस्तित्व
छिद्रान्वेषण
पुन: पुन:
चरित्र हनन
या वस्त्र विमर्श
मैं बस विवश
बस विवश ...