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Friday, June 15, 2012

मुझे झूठा ही रहने दो


मुझे टूटा ही रहने दो
मुझे बिखरा ही रहने दो
संवर कर क्या करूंगी मैं
मुझे उजड़ा ही रहने दो
नहीं मेरे  लिए दुनिया
ना दुनिया के मैं काबिल हूँ
जिला कर क्या करोगे तुम
मुझे मुर्दा ही रहने दो
मैं हो जाऊं जो खँडहर
तो बेहतर ही समझना तुम 

सजेगी ना कभी महफ़िल
मुझे वीरां  ही रहने दो
आंसू की चंद बूँदें है 

गवाह  मेरी तबाही की 
यकीन क्योंकर करेगा वो 
मुझे झूठा  ही रहने दो 

Wednesday, October 12, 2011

माँ व्यस्त रहती है

वो सोच सोच कर रखती है
हर बात मुझे बताने के लिए
मेरे हां, अच्छा कहने  भर से
सार्थक हो जाता है उसका याद रखना
 
बात बड़ी या छोटी कोई फर्क नहीं
बस बात होनी चाहिए जिससे
वो सुन सके और कह सके मुझसे
थोड़ी ज्यादा देर तक

जबसे महसूस किया है उसने
मैं उसके हाल चाल पूछता हूँ
और वो मेरी तबियत पूछती है
और पसर जाता है सन्नाटा
 
दोस्तों के बीच जिस बेटे की बातें
ख़त्म नहीं होती घंटों तक
अपनी माँ से बात करने पर
विषय शब्द ढूंढें नहीं मिलते 
 
पर माँ तो सहेजती है हर घटना
हर विषय हर रंग और हर स्वर
जिससे एक फोन के कटने से
दूसरा फोन आने तक व्यस्त रहती है


Monday, July 4, 2011

स्वाहा !


स्वाहा !
दोष मेरे
कष्ट मेरे
भाव सारे
भ्रष्ट मेरे

पाप मेरे
श्राप मेरे
पीर मेरी
संताप मेरे

लोभ मेरे
मोह मेरे
नियति के
भोग मेरे

सारे संकट
सारे कंटक
मोह मेरे
शोक मेरे

स्वाहा !

Tuesday, February 15, 2011

जली फिर रात रूमानी....

थी कल की शाम रूमानी
छलकता जाम रूमानी
निगाहे थी निगाहों तक
नज़र  की प्यास रूमानी
सहेजा भी संभाला भी
सीने से दिल निकाला भी
नहीं था सुर्ख इतना कुछ
जली  फिर रात रूमानी
अजब हालात थे शायद
मेरे जज्बात थे शायद
ना तुम बोले ना मैं बोली
चुपी ना रात रूमानी
कहें कैसे सुनें कैसे
ये किस्से प्यार वाले है
बहुत मीठे है गुड जैसे
यहाँ जितने निवाले है
तुम्हे पाया तो पा बैठी
मैं ये सौगात रूमानी

Tuesday, January 18, 2011

उसकी आँखें


उसकी आँखें
गहरी आँखें
दरवाजे पे
ठहरी आँखे
बरस बीते
अबतक सीली
तारो सी
रुपहली आँखें
दिलतक आई
मैंने पाई
प्यार भरी
रसीली आँखें
आँखों में
अबतक ज़िंदा है
दर्द पगी
पनीली आँखें 


 

Friday, November 19, 2010

मैं काजल हो जाती हूँ

 
मुझे जलना भा रहा है
मैं तो यूँही जल जाती हूँ 
तुम शमा बनोगे बोलो ना
मैं परवाना हो  जाती हूँ
तेरी खुशबू मन को भाये
मुझे मस्त करो और बहकाए
तुम कली बनो और इठलाओ
मैं भंवरा बन मंडराती हूँ
इतनी दीवानी चाहत में
मुझको मेरा होश नहीं
तुम मुक्त पवन के झोके से
और मैं आँचल हो  जाती हूँ
तुम हो प्यासे मैं रस से भरी
फिर रहे अधूरे अधूरे क्यों
तुम फैला दो अपनी बाहें
और मैं बादल हो जाती हूँ
तुम कितने भोले भाले से
जी भर देखूं तो नज़र लगे
मुझको भर लो तुम आँखों  में
और मैं काजल हो जाती हूँ
 
 
 
 

Sunday, September 26, 2010

चलो मैं बे-वफ़ा हो जाती हूँ

इतनी नजदीकी अच्छी नहीं


चलो कुछ खफा हो जाती हूँ

अपना ही मज़ा है बेचैन करने का

चलो मैं बे-वफ़ा हो जाती हूँ



तेरे सामने आऊं भी नहीं

तुझे महसूस हर लम्हा रहूँ

मांगे तू भी साथ मेरा शिद्दत से

चलो मैं खुदा सी हो जाती हूँ



कब तक नशीली रात सी रहूँ

होंठो पे छिपी बात सी रहूँ

जान जाए ये ज़माना मुझको

चलो चटख सुबह सी हो जाती हूँ



जितना जानो उतना उलझ जाओ

इतना उलझो ना सुलझ पाओ

ना जाने किस वक्त ज़रुरत पड़े

चलो मैं दुआ सी हो जाती हूँ



कभी देखो तो अनजान लगूं

कभी दिल की मेहमान लगूं

एक झलक देख लो तो दीवाने हो जाओ

चलो मैं उस अदा सी हो जाती हूँ

Tuesday, August 31, 2010

कान्हा मांगू तेरा संग

हर रूप
हर रंग
कान्हा मांगू
तेरा संग
शिशु तुमसा
ममतत्व जगाये
सखा तुमसा
दौड़ा आये
प्रिय तुमसा
नेह बढाए
साथी तुमसा
हर वचन निभाये
चरणों में जब
नयन लगाऊं
ये जीवन
सार्थक हो जाए
"आपसभी को कृष्णजन्मोत्सव की शुभकामनाये "

Saturday, July 3, 2010

पहली बारिश और हम तुम....

सिमटे सिमटे


सीले सीले

आधे सूखे

आधे गीले

पहली  बारिश

और हम तुम

सुलगे सुलगे

दहके दहके

थोड़े संभले

थोड़े बहके

पहली  बारिश

और हम तुम

चाय की प्याली

गर्म पकोड़े

मुंह  में भरते

सी सी करते

पहली बारिश

और हम तुम

सावन आये

सावन जाए

जिया करेंगे

संग रहेंगे

पहली  बारिश

और हम तुम

Tuesday, May 11, 2010

प्रेम के क्षण (१)


काँप गई

आलिंगन में
उन्मुक्तता है
इस बंधन में
पंख लगे है
धडकनों को
उबरू कैसे
इस उलझन से


कितने मादक कितने मोहक

नैन तुम्हारे
मौन में भी कितने मुखर
नैन तुम्हारे
इन नैनो ने विकल किया
ये तो सोये
पर जागे रात रात भर
नैन हमारे


दिन-ब-दिन

तुम चढ़ रहे हो
सीढ़िया सफलता की
मैं थक रही हूँ
नहीं चल पाती
उस रफ़्तार से
शायद मैं फिर
जुटा सकूँ
कतरा कतरा हिम्मत
जो हाँथ थाम लो
तुम प्यार से

Monday, May 3, 2010

हर रंग में छांट लूं ...

चलो एहसासों को

दुपट्टे में बाँध लूं

तुम्हारी छुअन को

किनारी सा टांक लूं



लिपटे जो मुझसे

तो तुम नज़र आओ

काँधे से फिसलो तो

बाँहों में उतर जाओ



दांतों तले दबा लूं

तो हया से लगो

ऐसे बनो मेरा हिस्सा

कभी न जुदा से लगो



इतने रंग भर दो

के अम्बर को बाँट दूं

दुपट्टे की तरह तुमको

हर रंग में छांट लूं

Friday, April 30, 2010

वो सहता गया....


दर्द उसको भी होता था

खून उसका भी रिसता  था
तुम जख्म देते गए
वो सहता गया

तुम दोस्ती के नाम पर
मांगते रहे कुर्बानियाँ
वो तुम्हारे भरोसे पर
हर लम्हा साथ देता गया


तुमने मिटा दिया
उसने आह भी ना निकाली
ये दोस्ती का है इम्तिहान
हँस के वो कहता गया..

Thursday, April 22, 2010

तुमको याद ना हो

बहुत मुमकिन है

तुमको याद ना हो

तुम्हारी डायरी के

इक्किस्वे पन्ने पर

एक सूखा गुडहल

जो तुमने अपने हांथो से लगाया था

मेरे जूडे में

फिर मान के निशानी

दबा दिया डायरी में

उसकी साँसे

कल तक बाकि थी

आज ही दम तोडा है

अपने रिश्ते के साथ

अब शायद मुझको भी

दफ़न कर दोगे

मानकर निशानी

और भुला दोगे

जान कर याद पुरानी

Saturday, March 27, 2010

दुआ दूं या बददुआ


आज तुम्हारी बेवफाई से वाकिफ हुए है




क्या समझोगे कितने दर्द से गुज़रे हैं



जब थे मेरे साथ और ख़याल था गैर का



ऐसे लम्हे भी ज़िन्दगी से गुज़रे हैं







तुम थे खामोश हम समझे खफा हो



गुमसुम थे तो समझे कुछ जुदा हो



कोशिश की खुशिया भर दूं दामन में



अनजान थे तुम किसी और के भी खुदा हो







दर्द इतना है की रो भी नहीं पा रहे है



होश गुम है न जाने कहाँ जा रहे है



तुम्हारे सिवा दुनिया भी नहीं देखी



इस भरी दुनिया में तनहा नज़र आ रहे है





दुआ दूं या बद्दुआ तुम ही बताओ

कोई हल हो तुम ही सुझाओं

निभाई है मुझसे बे-वफाई जिस वफ़ा से

तुम्हे ख़त्म कर दूँ या खुद को मिटाऊं

Thursday, July 2, 2009

नम आसमान

फिर कुछ नम सी महसूस हुई है ज़मीन ,
टपका है तेरा आंसू या बरसा है आसमान
भीड़ में चल रही हूँ लेकिन
मेसूस होती है तन्हाइयां यहाँ
शायद मैं समझ जाती जो तुम सुनाते
ये दिल के अफ़साने अनसुने ना रह जाते
पर अब बदल गया है वक्त
मैं कहाँ और तुम कहाँ
सोनल ०२ जुलाई २००९