हर रूप
हर रंग
कान्हा मांगू
तेरा संग
शिशु तुमसा
ममतत्व जगाये
सखा तुमसा
दौड़ा आये
प्रिय तुमसा
नेह बढाए
साथी तुमसा
हर वचन निभाये
चरणों में जब
नयन लगाऊं
ये जीवन
सार्थक हो जाए
"आपसभी को कृष्णजन्मोत्सव की शुभकामनाये "
मैं क्या सोचती हूँ ..दुनिया को कैसे देखती हूँ ..जब कुछ दिल को खुश करता है या ठेस पहुंचाता है बस लिख डालती हूँ ..मेरा ब्लॉग मेरी डायरी है ..जहाँ मैं अपने दिल की बात खुलकर रख पाती हूँ
Tuesday, August 31, 2010
Thursday, August 19, 2010
द्रुपदसुता "याज्ञसेनी " के लिए .....
नियति और दुर्गति का यदि संयोग देखना हो तो द्रुपद पुत्री कृष्णा (द्रौपदी) से सजीव कोई उदहारण नहीं है, उसकी स्वयं की नियति के साथ वह कुरुवंश के पतन की नियति भी बनी .....
"जीता उसने जिसको मन हारी
इश्वर की थी वो आभारी
बंटी अन्नं के दानो सी वो
टूटी बिखरी नियति से हारी
पिता गर्व का विषय थी वो
जन परिहास का विषय बनी
कुलटा,पतिता बहुपुरुष गामिनी
आक्षेपों की भेंट चढ़ी
पुन: सहेजा पुन: समेटा
बनी वंश की जीवन शक्ति
नग्न धरा पर सोई वो
तज विलास,वैभव आसक्ति
अपनों के हांथो छली सदा
अनुत्तरित हर प्रश्न रहा
द्यूत में कैसे दाव लगी
रानी से दासी क्यों बनी
जिनके हांथो आशीष मिले
चीरहरण वो देखते रहे
अपमान की अग्नि से
दग्ध ह्रदय
हर पीड़ा कृष्ण से कहे
सखी थी लीलाधर की
फिर इतने कष्ट क्यों सहे
(क्रमश:)
जितनी बार चित्रा चतुर्वेदी जी की महाभारती पढ़ती हूँ उतना अधिक मन एं सम्मान बढ़ जाता है द्रुपदसुता "याज्ञसेनी " के लिए
"जीता उसने जिसको मन हारी
इश्वर की थी वो आभारी
बंटी अन्नं के दानो सी वो
टूटी बिखरी नियति से हारी
पिता गर्व का विषय थी वो
जन परिहास का विषय बनी
कुलटा,पतिता बहुपुरुष गामिनी
आक्षेपों की भेंट चढ़ी
पुन: सहेजा पुन: समेटा
बनी वंश की जीवन शक्ति
नग्न धरा पर सोई वो
तज विलास,वैभव आसक्ति
अपनों के हांथो छली सदा
अनुत्तरित हर प्रश्न रहा
द्यूत में कैसे दाव लगी
रानी से दासी क्यों बनी
जिनके हांथो आशीष मिले
चीरहरण वो देखते रहे
अपमान की अग्नि से
दग्ध ह्रदय
हर पीड़ा कृष्ण से कहे
सखी थी लीलाधर की
फिर इतने कष्ट क्यों सहे
(क्रमश:)
जितनी बार चित्रा चतुर्वेदी जी की महाभारती पढ़ती हूँ उतना अधिक मन एं सम्मान बढ़ जाता है द्रुपदसुता "याज्ञसेनी " के लिए
Monday, August 16, 2010
ये धोखा है प्यार नहीं
एक कच्ची सी नज़्म लिखी
जो पकने को तैयार नहीं
मैं शमा बनी वो परवाना
वो जलने को तैयार नहीं
आहें भी भरी आंसू भी बहे
दिल मिलने को तैयार नहीं
आज़ादी दी और पंख दिए
वो उड़ने को तैयार नहीं
सब जग छोड़ा जिनकी खातिर
वो जुड़ने को तैयार नहीं
पर्वत से अकड़े बैठे है
वो झुकने को तैयार नहीं
हमको पक्का यकीन है
ये धोखा है प्यार नहीं
जो पकने को तैयार नहीं
मैं शमा बनी वो परवाना
वो जलने को तैयार नहीं
आहें भी भरी आंसू भी बहे
दिल मिलने को तैयार नहीं
आज़ादी दी और पंख दिए
वो उड़ने को तैयार नहीं
सब जग छोड़ा जिनकी खातिर
वो जुड़ने को तैयार नहीं
पर्वत से अकड़े बैठे है
वो झुकने को तैयार नहीं
हमको पक्का यकीन है
ये धोखा है प्यार नहीं
Wednesday, August 11, 2010
हम तो छप गए ...रवीश जी को बहुत बहुत धन्यवाद
- Guest column - Vimarsh - LiveHindustan.com
सच में कभी नहीं सोचा था दिल की बातें जो यूँ ही ब्लॉग पर डाल देती हूँ एक दिन खबर बन छप जायेंगी ...
आज का दिन आश्चर्य से भरा हुआ रहा ..जब पता चला मेरे ब्लॉग की चर्चा हिन्दुस्तान पर हुई है ...
खुद को ख़ुशी और परिवार को गर्व ......
आइये मेरी ख़ुशी में शामिल हो जाइए .. उत्साह तो आप सब ने बढाया है सदा ..
सच में कभी नहीं सोचा था दिल की बातें जो यूँ ही ब्लॉग पर डाल देती हूँ एक दिन खबर बन छप जायेंगी ...
आज का दिन आश्चर्य से भरा हुआ रहा ..जब पता चला मेरे ब्लॉग की चर्चा हिन्दुस्तान पर हुई है ...
खुद को ख़ुशी और परिवार को गर्व ......
आइये मेरी ख़ुशी में शामिल हो जाइए .. उत्साह तो आप सब ने बढाया है सदा ..
Tuesday, August 10, 2010
तू ही मुझे संवार दे
कुछ वियोगी मन हुआ
तन भी ना अब साथ दे
कोई ऐसा पल नहीं
जो मन को मेरे साध दे
साध मन की थी कभी
खुशिया सराहे फिर मुझे
बुझ गए आंसू में सब
दीप जितने थे जले
मुश्किल हूँ मैं
या वक़्त मुश्किल है मेरा
मिलता भी नहीं कभी
जब साथ मांगती हूँ तेरा
मैं इतनी बुरी ना थी
पर भली कब तक रहूँ
मन है पीड़ा से भरा
दर्द अब किससे कहूं
क्या कभी होगा प्रलय
टूट कर बह जाउंगी
मैं अपने जीवन का
अवशेष मात्र रह जाउंगी
नेह की बूंदे कभी कुछ
मुख पे मेरे डाल दे
बहुत बिखरी हूँ प्रिये
तू ही मुझे संवार दे
तन भी ना अब साथ दे
कोई ऐसा पल नहीं
जो मन को मेरे साध दे
साध मन की थी कभी
खुशिया सराहे फिर मुझे
बुझ गए आंसू में सब
दीप जितने थे जले
मुश्किल हूँ मैं
या वक़्त मुश्किल है मेरा
मिलता भी नहीं कभी
जब साथ मांगती हूँ तेरा
मैं इतनी बुरी ना थी
पर भली कब तक रहूँ
मन है पीड़ा से भरा
दर्द अब किससे कहूं
क्या कभी होगा प्रलय
टूट कर बह जाउंगी
मैं अपने जीवन का
अवशेष मात्र रह जाउंगी
नेह की बूंदे कभी कुछ
मुख पे मेरे डाल दे
बहुत बिखरी हूँ प्रिये
तू ही मुझे संवार दे
Saturday, August 7, 2010
ये सावन मन भाये ना ...
ये सावन
मन भाये ना
बदरा तुमको
लाये ना
दूर बिदेस में
बैठे तुम
सौतन कहीं
लुभाए ना
बाट निहारे
नैन दुखे
पीर हमारी
कौन सुने
काली आँखे
काली रात
उसपर उस
डायन की घात
मन तो
ऐसा ऐसा है
जाने
कैसा कैसा है
कोई टोना
डाल ना दे
तुमको मुझसे
टाल ना दे
जितनी डाह
है प्रेम में
उतना तो
अगन जलाये ना
मन भाये ना
बदरा तुमको
लाये ना
दूर बिदेस में
बैठे तुम
सौतन कहीं
लुभाए ना
बाट निहारे
नैन दुखे
पीर हमारी
कौन सुने
काली आँखे
काली रात
उसपर उस
डायन की घात
मन तो
ऐसा ऐसा है
जाने
कैसा कैसा है
कोई टोना
डाल ना दे
तुमको मुझसे
टाल ना दे
जितनी डाह
है प्रेम में
उतना तो
अगन जलाये ना
Wednesday, August 4, 2010
अबकी बारिश में क्या क्या होगा
अबकी बारिश में क्या क्या होगा
हर कदम पर गड्ढा बना होगा
मौत को खुला आमंत्रण है
कदम कदम पे मेनहोल खुला होगा
घरो में नलों की टोटिया सूखी
सडको पे नदी- नालो का समां होगा
फ़रियाद करोगे भी तो किससे
प्रशासन तो सो रहा होगा
करनी पे शायद पछताए
भ्रष्ट नेता सुधर जाए
आज दिल्ली में खुला है पाताल का रास्ता
कल हर गली में खुला होगा
हर कदम पर गड्ढा बना होगा
मौत को खुला आमंत्रण है
कदम कदम पे मेनहोल खुला होगा
घरो में नलों की टोटिया सूखी
सडको पे नदी- नालो का समां होगा
फ़रियाद करोगे भी तो किससे
प्रशासन तो सो रहा होगा
करनी पे शायद पछताए
भ्रष्ट नेता सुधर जाए
आज दिल्ली में खुला है पाताल का रास्ता
कल हर गली में खुला होगा
Monday, August 2, 2010
चेहरे पे चेहरा चढ़ाया है मैंने
हर सुबह आईने से
मुखातिब होता हूँ
किसी रोज़ तो
सही सूरत दिखलायेगा
चेहरे पे चेहरा
चढ़ाया है मैंने
एक रोज़ तो
ये उतर जाएगा
जो कहता है मुझसे
मैं सबसे भला हूँ
उसी का बुरा अक्सर
मैंने किया है
जो आया मरहम
की उम्मीद लेकर
बड़ा जख्म उसको
मैंने दिया है
हमेशा तो मेरी
ये फितरत नहीं थी
इस शहर ने शायद मुझे
कुछ और बना दिया है
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