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Tuesday, August 7, 2012

यही फ़िज़ा की मोहब्बत का हश्र है दुनिया



सुहाग बनके तुझे ही फ़िज़ूल बेच गया
गुलाबी फूल दिखाकर बबूल बेच गया
यकीन था तुझे जिस शख़्स के उसूलों पर
सर ए बाज़ार वो सारे उसूल बेच गया
ये कैसा सौदा किया है दिखा के आईना
तुझे वो रास्ते की गर्द औ धूल बेच गया
जिन्हें सजाती रही अपनी सेज पर हर शब 
तुझे वो तेरी ही तुरबत के फूल बेच गया
बनी  तमाशा तेरी  वस्ल भी जुदाई भी
नमक जख्मो के वास्ते नामाकूल बेच गया
यही फ़िज़ा की मोहब्बत का हश्र है दुनिया
वो बन के चाँद तुझे तेरी भूल बेच गया