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Thursday, January 24, 2013

क्या रखा ?

यूँही खुद को मैंने सदा तनहा रखा
खुशियों से महरूम औ रुसवा रखा
महफिलों से कतरा कर गुज़रे हम
दर्द से दिल इस कदर बोझिल रखा
सो ना जाए किसी शब् सुकून से
पलक में एक अश्क उलझा रखा
रौशनी ना मांगने लगे आँगन मेरा
चराग भी रखा तो बुझता रखा
ना कोई हमसफर हो जाए मेरा
अपनी हस्ती को मैंने मुर्दा रखा
जुर्म क्या था तेरा ये बता "सोनल "

सांस लेना इस कदर मुश्किल रखा 
कैसे मिलेगा बहीखाता  ज़िन्दगी का
पास बस दिल का एक टुकड़ा रखा 

Tuesday, September 22, 2009

मजबूर

बनाया हमने आशियाना पत्थरों का जो मजबूत था
क्या थी खबर वो हमारे ख्वाबो का ताबूत था ,
चाहा अपने आप को बचा लूं ज़माने से
खुदा से की गुजारिश पर वो भी मजबूर था