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Tuesday, December 17, 2013

मेरी चिट्ठियाँ




तुमको लिखी वो तुमने पढ़ी 

खयालो से कभी ना आगे बढ़ी 

अक्सर किताबों में दबकर रही 

मुझ जैसी तनहा मेरी चिट्ठियाँ ...

किसी पंक्ति पर खुलकर हंसी

किसी शब्द से झलकी बेबसी

खुलके ना कह पाई बात कभी

मर्यादा से बंधी मेरी चिट्ठियाँ ...

देने से पहले कई बार पढ़ी

हज़ार टुकडो में कई बार फटी

मैंने लिखी और मुझ तक रही

अंतर्मुखी सी मेरी चिट्ठियाँ ....

रात ख़्वाबों में उठकर चली

तकिये के नीचे दबकर रही

सोये रहे तुम पर जागी रही

करवटें बदलती मेरी चिट्ठियाँ ....




11 comments:

  1. आह.. है मुझ सी ही मासूम .. मेरी चिट्ठियाँ

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  2. ताकते तुम रहे पढ़ती वो रहीं ,
    निगाहें तुम्हारी मेरी चिठ्ठियाँ ।

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  3. चली मगर पहुंची नहीं तुम तक
    मुझसी नादाँ मेरी चिट्ठियां !
    बहुत प्यारी है ये आपकी चिट्ठियां !

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  4. वाह, बहुत ही प्यारी रचना।

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  5. कितनी सादगी लिए हैं ये चिट्ठियाँ ...
    लाजवाब रचना ...

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  6. Interesting Story shared by you ever. Being in love is, perhaps, the most fascinating aspect anyone can experience. प्यार की कहानियाँ Thank You.

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  7. सोये रहे तुम पर जागी रही

    करवटें बदलती मेरी चिट्ठियाँ ....
    मोबाईल के दौर में यादों में कविताओं में ही रह गई हैं चिट्ठियाँ ....

    आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
    http://savanxxx.blogspot.in

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

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