Pages

Thursday, January 24, 2013

क्या रखा ?

यूँही खुद को मैंने सदा तनहा रखा
खुशियों से महरूम औ रुसवा रखा
महफिलों से कतरा कर गुज़रे हम
दर्द से दिल इस कदर बोझिल रखा
सो ना जाए किसी शब् सुकून से
पलक में एक अश्क उलझा रखा
रौशनी ना मांगने लगे आँगन मेरा
चराग भी रखा तो बुझता रखा
ना कोई हमसफर हो जाए मेरा
अपनी हस्ती को मैंने मुर्दा रखा
जुर्म क्या था तेरा ये बता "सोनल "

सांस लेना इस कदर मुश्किल रखा 
कैसे मिलेगा बहीखाता  ज़िन्दगी का
पास बस दिल का एक टुकड़ा रखा 

16 comments:

  1. ओह हो.कुछ अलग ही मूड है आज.

    ReplyDelete
  2. महफिलों से कतरा कर गुज़रे हम
    दर्द से दिल इस कदर बोझिल रखा .
    बहुत ही सुन्दर कविता ....

    ReplyDelete
  3. कहीं पढ़ा था कि कविता इतनी विस्तारित होती है कि यह केवल कवि के भावों का उद्गार नहीं करती अपितु पाठक के भावों को भी समाहित कर लेती है इस कविता में ऐसा ही लगा, कहीं मेरा भीतर भी ऐसा है यह कविता अक्स है इसकी

    ReplyDelete
  4. कई बार तो दिल इतने टुकड़ों में बिखऱ जाता है कि बटोरना भी मुशिक्ल हो जाता है। खैर दिल का तराना गानों वालों के साथ ये तो होता ही है।

    ReplyDelete
  5. ना कोई हमसफर हो जाए मेरा
    अपनी हस्ती को मैंने मुर्दा रखा

    अच्छा लगा ये शेर !

    ReplyDelete
  6. कायेको ऐसा रक्खा।

    ये गजल अच्छी है लेकिन मूड गड़बड़!

    ReplyDelete
  7. ये मीना कुमारी सिन्ड्रोम काहे भाई?

    ReplyDelete
  8. अच्छी प्रस्तुति |
    आभार आदरेया ||

    ReplyDelete
  9. रौशनी ना मांगने लगे आँगन मेरा
    चराग भी रखा तो बुझता रखा
    बहुत खूब!
    सादर!

    कृपया पढ़ें और अपने सुझाव दें-
    http://voice-brijesh.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. कैसे मिलेगा बहीखाता ज़िन्दगी का
    पास बस दिल का एक टुकड़ा रखा .................gd one :)

    ReplyDelete
  11. सभी शेर बहुत खूबसूरत. ये बहुत ख़ास लगा...
    कैसे मिलेगा बहीखाता ज़िन्दगी का
    पास बस दिल का एक टुकड़ा रखा

    दाद स्वीकारें.

    ReplyDelete
  12. सभी शेर बहुत खूबसूरत.

    ReplyDelete