फिर कुछ नम सी महसूस हुई है ज़मीन ,
टपका है तेरा आंसू या बरसा है आसमान
भीड़ में चल रही हूँ लेकिन
मेसूस होती है तन्हाइयां यहाँ
शायद मैं समझ जाती जो तुम सुनाते
ये दिल के अफ़साने अनसुने ना रह जाते
पर अब बदल गया है वक्त
मैं कहाँ और तुम कहाँ
सोनल ०२ जुलाई २००९
टपका है तेरा आंसू या बरसा है आसमान
भीड़ में चल रही हूँ लेकिन
मेसूस होती है तन्हाइयां यहाँ
शायद मैं समझ जाती जो तुम सुनाते
ये दिल के अफ़साने अनसुने ना रह जाते
पर अब बदल गया है वक्त
मैं कहाँ और तुम कहाँ
सोनल ०२ जुलाई २००९
Aaankh se aasoon hi tapka hogo.....aasmaan se paani to tapak ne se raha
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteपहली पोस्ट से ही अंदाजा लगा सकते हैं आपकी प्रतिभा का...
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर
अनु