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Thursday, July 2, 2009

नम आसमान

फिर कुछ नम सी महसूस हुई है ज़मीन ,
टपका है तेरा आंसू या बरसा है आसमान
भीड़ में चल रही हूँ लेकिन
मेसूस होती है तन्हाइयां यहाँ
शायद मैं समझ जाती जो तुम सुनाते
ये दिल के अफ़साने अनसुने ना रह जाते
पर अब बदल गया है वक्त
मैं कहाँ और तुम कहाँ
सोनल ०२ जुलाई २००९

3 comments:

  1. Aaankh se aasoon hi tapka hogo.....aasmaan se paani to tapak ne se raha

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  2. बहुत बेहतरीन रचना।

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  3. पहली पोस्ट से ही अंदाजा लगा सकते हैं आपकी प्रतिभा का...
    :-)

    बहुत सुन्दर
    अनु

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