एक रस्म निभाने को चाँद को देखा ,
आँचल की ओट में माहताब को देखा
दोनों पर नूर चढा था गज़ब का,
खुशकिस्मती हमारी जी भर के शबाब को देखा
एक चाँद के इंतज़ार में ,दूजा चाँद बेकरार था
दगा नहीं देगा मौसम, इस का ऐतबार था
उम्मीद का जुगनू चमका कई बार आँखों में
आती जाती उम्मीद को रुख पर बार बार देखा
हम भी थे इंतज़ार में के शायद करम हो जाए
उस बेचैन नज़र से ये दर्द कुछ कम हो जाए
हाँ अब सुकून आया है दिल-ए-बेताब को
चाँद को देख कर जब उसने मुझे
आँखों में भरकर प्यार देखा
" acche bhav ...magar aakhari line me badlav ki jaroorat "
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
acha likha hai....i remembered karwachouth.....
ReplyDeleteकल 15/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
यहाँ तो चाँद दिखता ही नहीं :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यकित ! बधाई !
ReplyDelete♥
ReplyDeleteहां ,
अब सुकून आया है दिल-ए-बेताब को
चांद को देख कर जब उसने मुझे
आंखों में भरकर प्यार देखा
बहुत ख़ूबसूरत …
सोनल जी !
आपकी रचनाओं में हमेशा एक आह्लाद छलकता है …
धन्य हो जाता हूं पढ़ कर …
:)
आपको सपरिवार त्यौंहारों के इस सीजन सहित दीपावली की अग्रिम बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
करवा चौथ पर सुंदर रचना ।
ReplyDeleteवाह ....बहुत बढि़या।
ReplyDeletebadhiya prastuti
ReplyDeleteएक चाँद के इंतज़ार में ,दूजा चाँद बेकरार था
ReplyDeleteदगा नहीं देगा मौसम, इस का ऐतबार था...
वाह करवा चौथ पर बढि़या रचना
सादर बधाईयां...
सुंदर रचना!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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