ऑफिस से निकलते ही दिमाग में घर के काम भर जाते है,दूध लेना है घी भी ख़त्म हो रहा है ,जाते ही वाशिंग मशीन लगनी है....ओफ़्फ़. ऑफिस में घुसने के बाद शायद हमारा दिमाग अपना रोल बदल लेता है उन आठ घंटों में घर की कोई बात जैसे याद नहीं आती जैसे किसी ने पौज़ बटन दबा दिया हो जो छः बजते वापस प्ले हो जाता है.....
अरे ये खुशबू कहाँ से आ रही है अचानक मेरी गर्दन घूम गई, बहुत जानी पहचानी सी जैसे मेरा हिस्सा रही हो अचानक निगाह पड़ी हरसिंगार के पेड़ पर जो कुछ कलियों और अधखिले फूलों से लदा हुआ था....मुझे लगा जैसे पेड़ मुझे देखकर मुस्कुरा रहा हो और पूछ रहा हो "बिटिया मुझे तो तुम भूल ही गई " मैंने कुछ ज़मीन पर पड़े फूल उठाये और घर आकर वापस बचपन में पहुँच गई ....
कम से कम बीस साल पहले अपनी खिड़की के सामने हरसिंगार को देखना हमेशा अच्छा लगता था ,गहरे रंग के कुछ मखमली और कुछ खुरदुरे से लगते पत्ते जो सारे साल शांत रहते पर क्वार का महीना आते ही बौरा जाते ....सफ़ेद फूल नारंगी डंडी और मीठी मीठी खुशबू दूर दूर तक फ़ैल जाती...
मुझे हमेशा हर्सिगार का पेड़ बहुत उदार लगता जिसमे रात को फूल खिलते और सुबह-सुबह उन्हें मोतियों की तरह बिखेर देते और अगर कोई डाल हिला दे तो बस ताजे ओस में भीगे फूल आसमान से बरस उठते जो हमको हिंदी फिल्मों के द्रश्य याद सिलाते जहाँ नायक नायिका पर फूलों की डाल से फूल बरसाता है ........
मेरी दादी हर मौसम में सवा लाख हर्सिगार के फूल अपने ठाकुर जी को चढाती...और हम बच्चों की सेना उनको फूल लाकर देती..रात को पेड़ के नीचे चादर बिछा देते और सुबह-सुबह वो चादर सैकडों फूलों से भरी होती मानो हरसिंगार नतमस्तक होकर खुद लड्डू गोपाल जी को अपने फूल अर्पित कर रहा हो.
दादी सौ सौ के ढेर बनाती और अपनी कॉपी में लिखती....सूखे हुए फूलों की डंडी चन्दन के साथ पीस देती तो चन्दन का रंग और चटख हो जाता....
सवा लाख पूरे होने के बाद जितने फूल होते वो हम बच्चों के खेल का हिस्सा बन जाते ..गुडिया की माला,अपने गजरे ,फूलों की रंगोली और न जाने क्या क्या...
सच है कुछ खुशबू ,रंग और द्रश्य हमारे अस्तित्व का हिस्सा बन जाते है
आज मैं अपने शहर से सैकडों किलोमीटर दूर हूँ,बचपन को गए भी अरसा हो गया पर जब भी हरसिंगार के पेड़ के सामने गुज़रती हूँ और फूलों को हाँथ में लेकर एक बार अपनी दादी को याद करती हूँ......
मैं नहीं भूली न दादी आपको और ना हरसिंगार को.....
Loved it.....so moving...so touching...
ReplyDeleteमैं नहीं भूली न दादी आपको और ना हरसिंगार को.....
ReplyDeletekuchh yaade manas patal par hamesha ke liye ankit ho jaati hain
Sonal ji ,
ReplyDeleteBhot sunder tarike se yadon ko aapne shbdon ka jama pahnaya hai .....swagat hai aapka ....!!
मन को भिगो दिया आपने..
ReplyDeleteजो भी लिखा है एक नज़्म सा बन के खिला है.