एक सुस्त दोपहर में लेते हुए जम्हाइयां
करते है कोशिश ढूढने को अपनी परछाइयां
मन वैसा रीता -रीता सा जैसी सूनी है सड़के
झुलस न जाए तपिश से धुप में पड़े सपने
तेज धुप से चुन्ध्याती आँखें दुखने लगती है
जब नींद आती है तो पलके झुकने लगती है
है कैसे लम्बे लम्बे दिन और कैसे जलते तपते दिन
कैसे बीते तन्हाई में बोलो साजन तेरे बिन
तुम बाँहों में जो ले लो तो थोडी सी ठंडक पड़ जाए
सो जाऊं मैं चैन से ये गर्म दोपहर कट जाए
करते है कोशिश ढूढने को अपनी परछाइयां
मन वैसा रीता -रीता सा जैसी सूनी है सड़के
झुलस न जाए तपिश से धुप में पड़े सपने
तेज धुप से चुन्ध्याती आँखें दुखने लगती है
जब नींद आती है तो पलके झुकने लगती है
है कैसे लम्बे लम्बे दिन और कैसे जलते तपते दिन
कैसे बीते तन्हाई में बोलो साजन तेरे बिन
तुम बाँहों में जो ले लो तो थोडी सी ठंडक पड़ जाए
सो जाऊं मैं चैन से ये गर्म दोपहर कट जाए
is aalas bhare mausam ko bahut khoob ukeraa hai.
ReplyDeleteYE MAUSAM HI AISA HAI
ReplyDeleteKABHI BHI NEED AA JATI HAI
" bahut hi acchi rachana ..badhai ho aaapko "
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
kya baat hai ..rumaniyat chalak rahi hai kavita se bharpoor.. :) behad khushgwaar si ghazal..garmi ki dopahar ke liye ke thandak liye hue.. :)
ReplyDeletebat to sahi haiiiiiiiii
ReplyDeleteKya baat hai!!!
ReplyDeleteखुद को ढूँढने से बेहतर क्या है ?
ReplyDeleteदूसरों में झांकने से बदतर क्या है ??
"मैं एक प्यार हूँ |"इस उत्तर से बढ़ कर-
"मैं कौन हूँ ?" प्रश्न का उत्तर क्या हैं??
सच है सोनल जी,अपनी परछाईं ही आत्म-स्वरूप- है | इस लिये अपनी परछाईं ढूँढना ही सब से
बड़ी साधना है |