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Tuesday, January 19, 2010

मितिया


"अब के सावन में झुलनी गड़ा दे पिया


जिया हरसाई दे पिया ना "

मितिया कमर हिला हिला कर नाच रही थी , पंद्रह साल की उम्र में झुलनी और पिया का मतलब थोड़ा थोड़ा समझने लगी थी, अपनी राधा मौसी को देख देख कर बंजारों के सारे हुनर सीख रही थी, देखने में भले ही हूर की परी ना हो पर, चेचरे पर कैशोर्य का लावण्या अपना रंग बिखेरने लगा था, मौसी की सीख मानकर छोटी सी मितिया जिसे मौसी मीतु बुलाती थी अपने को सबसे बचाकर चलती थी , गली देने को जबान और हाँथ में छुरी ऐसी कुशलता से चलती थी के सुनने वाले अपने कानो पर हाँथ रख लेते और देखने वाले दांतों टेल ऊँगली दबा लेते.

डेरे पर साथ में रहने वाले मर्दों की नज़र मितिया पर पड़ने लगी थी और मौसी को अपनी इस दौलत का पूरा एहसास था यही थी उनके बुढापे का सहारा सो सबसे बचाकर रखती थी,पर उनके समाज का खुलापन बहुत लम्बे समय तक मौसी को मितिया को बंधन में रखने से रोक ना सका, मितिया और रंगजी चोरी चोरी एक दुसरे को देखने लगे थे, अजीब सा सम्मोहन लगता था रंगजी को मितिया के नाच में ,जब वो घुँघरू बंधती तो अनोखा समा छा जाता, ऐसा कोई राहगीर नहीं होता जो उसे नज़रंदाज़ कर निकल जाए ढोल बजाता रंग जी भी कहाँ उस पर से अपनी निगाह हटा पाता था, हज़ारों मर्दों की निगाह मितिया पर होती पर मितिया रंगजी के निगाह की गर्मी से मानो पिघल सी जाती और और उस के नाच का बहाव और तेज़ हो जाता,

मौसी इस खेल से अनजान नहीं थी उन्होंने मितिया को हर तरह से समझाने की कोशिश की, पर इस उम्र का बहाव किसी भी बाँध से नहीं रुकता, मन और तन दोनों बावले हो उठते फिर कोई सीमा कहाँ, अल्हड उम्र पिया का साथ , भविष्य के सपने, आसमान भी उड़ने को छोटा लगने लगा.

घंटो चिलम फूकते और दोनों सपने बुनते ,मितिया अपनी इस ज़िन्दगी से छुटकारा चाहती थी ,रंगजी जो था उससे संतुष्ट था अपने डेरे वालों की तरह उसे शराब की भी लत नहीं थी सो सारी कमाई अपनी थी..कभी कभी मितिया की आँखों चमक रंगजी के दिल में दर बैठा देती वो कहता "मितु युझे आखिर करना क्या है ".

मितिया मुस्कुरा कर उसके कंधे पर सर रख देती.

एक दिन मितिया का नाच ख़त्म हुआ रंगजी सामान समेट रहा था अचानक सामने गाडी से उतर कर एक साब उतर कर आया, "बहुत अच्छा इटेम पेश किया तुम लोगों ने , आकर मुझसे मेरे होटल में मिलो "

मितिया और रंग जी की आँखे विस्मय से से फैल गई जब साब ने ५०० का पत्ता बक्शीश के रूप में उनके हाथ में रख दिया, दोनों समझ नहीं पा रहे थे, डेरे पर बड़े लोगों से सलाह ली तो कुछ ने डराया "अरे इ बाबू लोगो को भरोसा नहीं है ", तो कुछ ने मौक़ा न गवाने की सलाह दी , डेरे पर सबसे समझदार समझे जाने वाले नंदू को बुलाया गया ,नंदू बड़े बड़े शहरों में घूम चुका था थोड़ी अंग्रेजी भी बोल लेता था...तो फिर तै किया गया नंदू जाएगा मितिया और रंगजी के साथ.

होटल में पहुँच कर तीनों की मानों पलकों ने झपकना छोड़ दिया, महल जैसा , सूत बूट में घुमते साब लोग और परियों जैसी मेंम -साब , मस्त-मलंग सी मितिया को अपने कपड़ों के गंदे होने का एहसास होने लगा और अपने आप में सिमटने लगी,

"इसी होटल का नाम बताया था ना ,तुम लोग गलती तो नहीं कर रहे " नंदू असमंजस में था.

"अरे तुम लोग बाहर क्यों खड़े हो अन्दर आओ " गाडी वाला साब सामने खड़ा मुस्कुर्रा रहा था उस पल के बाद मानो रंग जी और मितिया जैसे मशीनों की तरह चलते गए, सब कुछ सपनो की तरह होता गया, अब उनको सड़कों पर धुल नहीं फाकनी थी, हर शाम होटल में अपना कार्यक्रम देना था .....अब सरस्वती पर लक्ष्मी मेहरबान हो रही थी, डेरे के और लोगों को भी काम मिल गया.

इस सब में मितिया को लगने लगा रंग जी कुछ बदल सा गया है , अब वो उससे थोड़ा दूर रहने लगा है , उसके कंधे पर सर रखे भी तो महीनो हो गए , जब टूरिस्ट लोग मितिया की तस्वीरे लेते और उसकी तारीफ़ करते तो रंग जी ने कदम और पीछे खीच लेता और कही भीड़ में गुम हो जाता.

एक दिन इटेम के बाद मितिया रंगजी को ढूँढने निकली तो देखा एक अंग्रेजन रंगजी के कंधे पर हाँथ रखे खड़ी है, और लिपट लिपट पर तस्वीरे खिचवा रही है, मितिया को मनो साप सूंघ गया, मितिया को मर्दों की कमी नहीं थी पर रंगजी जैसा उसके डेरे में कोई नहीं था , बांका जवान,कोई बुरी आदत नहीं .

उसके आँखों में आंसू की लकीर तैर गई , गुस्से से चेहरा गर्म हो गया, दिल की जलन चेहरे से साफ़ झलक रही थी और शायद जबान से भी निकल आती की रंगजी की निगाह अकेली खड़ी मितिया पर पड़ गई....एक पल में उसे सब समझ में आ गया तीन साल से साथ था मितिया के ..लपक कर उसने मितिया का हाँथ पकड़ लिया ..

मेमसाब दोनों को साथ देखकर एक दम बोली "ऐसे ही खड़े रहो बहुत अछे लग रहे हो दोनों साथ "

एक तरफ टूरिस्ट दोनों की तस्वीरे खीच रहे थे , पर दोनों एक दुसरे का हाँथ धीरे से दबाते हुए अपने मन की बात आँखों ही आँखों में बोल रहे थे ....

अकेले में मितिया धीरे से बोली " लगन करेगा मुझसे ....अब मुझसे अकेले नहीं रहा जाता "

रंग जी ने हस कर कहा "तो फिर तुझे झुलनी (नथ) गडाने के लिए सावन का इंतज़ार नहीं करना पडेगा ...

और मितिया और रंग जी एक दुसरे की बाहों में खो गए

6 comments:

  1. Very very impressive....your best till now.

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  2. sonal ..nicely written...hw u cn imagen such a different bckground ....keep it upp...!!

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  3. " bahut hi badhiya lagi aapki kahani ..badhai "

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  4. बहुत ढंग से लिखी कहानी ।
    अंत ने तो मुग्ध कर दिया । आभार ।

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  5. आशाओं की कथा, सुंदर मनोभावों की कथा. लोक रंग शब्दों से झलक रहा है और तस्वीर भी बहुत सुंदर.

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