कभी कभी आँखे ऐसे दौर से गुज़रती है जब उनमें पानी की कमी नहीं रहती ..दिल का भारीपन जुबां को खुलने नहीं देता ..आखिर भारी दिल ..छलकने को तैयार आँखे और सुस्त जुबान कभी एक सुर में नहीं रह सकते ...कोई ना कोई धोखा दे ही जाएगा ..और हम शर्मिन्दा हो जायेंगे अपने इंसान होने पर ...
..रोबोट सी ज़िन्दगी जीते हुए बरस बीत गए ..थोडा थोडा करके साल डर साल अपने अन्दर की इंसानियत काट कर समय के साथ बहती चली गई ..पर कुछ हिस्से नहीं काट पाई जो मेरे दिल और आँहो से जुड़े थे ..आज भी वही बचे हुए हिस्से दिल में तीस पैदा करते है और आँखों में reaction सा हो जाता है और फिर मैं शर्मिन्दा हो जाती हूँ अपने इंसान होने पर ...
कुछ समय पहले इंसान से जानवर बनने का चलन था मैंने भी कोशश की ..शायद जानवर बनकर राहत पा जाऊं ..दिन बीते साल बीते पर ना पूरी इंसान रह पाई ना जानवर ...जब भी जानवर बनने की कोशिश की ...पता नहीं कहाँ से एक लकीर इंसानियत की चेहरे पर उभर आई और दिल ने बगावत कर दी ...काश कभी तो ये दिल दिमाग की सुन लेता ..और मैं शर्मिन्दा ना होती इंसान होने पर ...
इसी दौरान रोबोट का दौर आया हर चीज़ में छोटी सी मशीन ज़िन्दगी कितनी आसान सी लगने लगी भावनाओं वाले प्रोग्राम की फाइल hidden कर दी और सुकूं की ज़िन्दगी चलने लगी ...जब मशीन बनने लगे तो एहसास हुआ आस पास इंसान है ही नहीं सिर्फ मशीने ही मशीने है ...गलती तो मेरी ही थी ना कहाँ मशीनों में इंसान ढूंढ रही थी .... बड़े गर्व के साथ मशीनों में शामिल हो गई ...चोट देने लगी चोट खाने लगी दर्द अब कहीं नहीं था ये मेरी सोच थी ....
एक दिन फिर ..वो सामने आ गया ..इंसान कही का ...अभी भी दिल ,सितारे ,रेशम फूलों की बातें करता है ....बेवक़ूफ़ मेरे रेशमी दुपट्टे को हाँथ में लेकर कहता था "कितने निर्दोष कीड़ो की जान गई है इस दुपट्टे को बनाने में "
दर्द और उसका एहसास सब ज़िंदा रखा है उसने ...बहुत कोशिश की मैं उससे दूर रहूँ जिससे इंसान होने की बीमारी ना लगे बड़ी मुश्किल से खुद को मशीन बनाया है ... पर
नहीं रोक पाई ना ...आज शर्मिन्दा हूँ इंसान होने पर ..
(इस पोस्ट में जो कुछ लिखा है उसके लिए पूरी तरह डा. अनुराग आर्य जी का facebook status ज़िम्मेदार है )
..रोबोट सी ज़िन्दगी जीते हुए बरस बीत गए ..थोडा थोडा करके साल डर साल अपने अन्दर की इंसानियत काट कर समय के साथ बहती चली गई ..पर कुछ हिस्से नहीं काट पाई जो मेरे दिल और आँहो से जुड़े थे ..आज भी वही बचे हुए हिस्से दिल में तीस पैदा करते है और आँखों में reaction सा हो जाता है और फिर मैं शर्मिन्दा हो जाती हूँ अपने इंसान होने पर ...
कुछ समय पहले इंसान से जानवर बनने का चलन था मैंने भी कोशश की ..शायद जानवर बनकर राहत पा जाऊं ..दिन बीते साल बीते पर ना पूरी इंसान रह पाई ना जानवर ...जब भी जानवर बनने की कोशिश की ...पता नहीं कहाँ से एक लकीर इंसानियत की चेहरे पर उभर आई और दिल ने बगावत कर दी ...काश कभी तो ये दिल दिमाग की सुन लेता ..और मैं शर्मिन्दा ना होती इंसान होने पर ...
इसी दौरान रोबोट का दौर आया हर चीज़ में छोटी सी मशीन ज़िन्दगी कितनी आसान सी लगने लगी भावनाओं वाले प्रोग्राम की फाइल hidden कर दी और सुकूं की ज़िन्दगी चलने लगी ...जब मशीन बनने लगे तो एहसास हुआ आस पास इंसान है ही नहीं सिर्फ मशीने ही मशीने है ...गलती तो मेरी ही थी ना कहाँ मशीनों में इंसान ढूंढ रही थी .... बड़े गर्व के साथ मशीनों में शामिल हो गई ...चोट देने लगी चोट खाने लगी दर्द अब कहीं नहीं था ये मेरी सोच थी ....
एक दिन फिर ..वो सामने आ गया ..इंसान कही का ...अभी भी दिल ,सितारे ,रेशम फूलों की बातें करता है ....बेवक़ूफ़ मेरे रेशमी दुपट्टे को हाँथ में लेकर कहता था "कितने निर्दोष कीड़ो की जान गई है इस दुपट्टे को बनाने में "
दर्द और उसका एहसास सब ज़िंदा रखा है उसने ...बहुत कोशिश की मैं उससे दूर रहूँ जिससे इंसान होने की बीमारी ना लगे बड़ी मुश्किल से खुद को मशीन बनाया है ... पर
नहीं रोक पाई ना ...आज शर्मिन्दा हूँ इंसान होने पर ..
(इस पोस्ट में जो कुछ लिखा है उसके लिए पूरी तरह डा. अनुराग आर्य जी का facebook status ज़िम्मेदार है )
सोनल! पहले तो इस पोस्ट के जिम्मेदार को धन्यवाद.:)
ReplyDeleteअब तुम्हारी बारी..अगर मशीन इतना अच्छा लिख सकती है तो हम कहेंगे तुम मशीन ही बनी रहो और गाहे बगाहे इंसान से मिलती रहो क्योंकि इसके फलस्वरूप कुछ इतना खूबसूरत हम ( जो पता नहीं इंसान हैं या जानवर या मशीन)पढ़ सकेंगे. .
भावना तो इन्सान वाली उबाल मार रही है और आप कह रही हो की आप मशीन हो . अगर मशीन होती तो टंकड़ की त्रुटियां नहीं होती . तो ये मान लो की आप इन्सान ही हो .मानवीय भावनाओ से लबरेज
ReplyDeleteइंसान होने पर कभी शर्मिंदा मत होना, क्योंकि दुनिया में अब बहुत कम इंसान बचे हैं. जो हैं उन्हें भी ढूँढ पाना बहुत मुश्किल है.
ReplyDeleteपोस्ट लिखने के बाद कैसा लग रहा है.! उम्मीद है दिल और दिमाग की ज़द्दोजेहद कुछ कम हुई होगी. फिर भी इंसान को जिंदा रखना ज़रूरी है.
ReplyDeletekaisi sharmindgi.... robot ki tarah kab tak ?
ReplyDeleteइंसान जानवर और मशीन .....सब में कुछ न कुछ तो घालमेल है......
ReplyDeleteआखिर यह विचार आपके मन में आया क्यों इस प्रश्न का उत्तर चाहिए मशीन में और आदमी का फर्क केवल भाव का है
ReplyDeleteइंसान सिर्फ़ इंसान ही रहे तो अच्छा है।
ReplyDeleteबहुत कुछ कह गयी आपकी पोस्ट
बहुत कुछ कह गयी आपकी पोस्ट
ReplyDeleteइंसान तो बहुत कम है इसलिए उनके होने पर शर्मिंदगी कैसी
ReplyDeleteमुक्ति जी की बात से हम सहमत है सचमुच में दुनिया में ऐसे इन्सान बहुत कम बचे है जिनके अन्दर इंसानियत अभी भी बाकि है................
ReplyDeleteshandar post!! swagt hai....
ReplyDeleteJai Ho Mangalmay HO
Bhaut Accha Likha hai Rastogi G
ReplyDeleteरोबट और जानवर के बीच पड़े, हम इन्सान।
ReplyDeleteमैं शर्मिन्दा ना होती इंसान होने पर..!!!
ReplyDeleteशब्दों का बहुत खूबसूरत एहसास कराती रचना ...:)
kya kahun , padhkar chup ho jaane ka man kar raha hai .... nishabd karti hui lines... amazing post ,..
ReplyDeletebadhayi
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
very nice and emotional post it touch the inner of heart
ReplyDeletethanks for joining hope visit in future also
behtreen prastuti!
ReplyDeletejimeedar koi bhi ho, aapne achha likha he!
कभी तो ये दिल दिमाग की सुन लेता ...
ReplyDeleteBahut khubbbbbbbbbbb
www.anjaan45.blogspot.com
धन्यवाद जी, मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ तो मेरा मार्गदर्सन करे..
ReplyDeleteBahut khoob
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार... नीरज जी की दो लाइन याद आ रही है
ReplyDeleteआदमी को आदमी बनाने के लिए,
जिंदगी को जिंदगी बनाने के लिए,
प्यार की कहानी फिर लिखाने के लिए,
स्याही नहीं आंखो वाला पानी चाहिए।
भावनाओं से भरी रचना. उम्दा सोच है... " इंसान होने के खामियाजे भी कम नहीं...!!!!! "
ReplyDeleteक्या बात है सोनल जी बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं. क्या चल रहा है?
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