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Wednesday, April 20, 2011

मैं शर्मिन्दा ना होती इंसान होने पर ...

कभी कभी आँखे ऐसे दौर से गुज़रती है जब उनमें पानी की कमी नहीं रहती ..दिल का भारीपन जुबां को खुलने नहीं देता ..आखिर भारी दिल ..छलकने को तैयार आँखे और सुस्त जुबान कभी एक सुर में नहीं रह सकते ...कोई ना कोई धोखा दे ही जाएगा ..और हम शर्मिन्दा हो जायेंगे अपने इंसान होने पर ...
..रोबोट सी ज़िन्दगी जीते हुए बरस बीत गए ..थोडा थोडा करके साल डर साल अपने अन्दर की इंसानियत काट कर समय के साथ बहती चली गई ..पर कुछ हिस्से नहीं काट पाई जो मेरे दिल और आँहो से जुड़े थे ..आज भी वही बचे हुए हिस्से दिल में तीस पैदा करते है और आँखों में reaction सा हो जाता है और फिर मैं शर्मिन्दा हो जाती हूँ अपने इंसान होने पर ...
कुछ समय पहले इंसान से जानवर बनने का चलन था मैंने भी कोशश की ..शायद जानवर बनकर राहत पा जाऊं ..दिन बीते साल बीते पर ना पूरी इंसान रह पाई ना जानवर ...जब भी जानवर बनने की कोशिश की ...पता नहीं कहाँ से एक लकीर इंसानियत की चेहरे पर उभर आई और दिल ने बगावत कर दी ...काश कभी तो ये दिल दिमाग की सुन लेता ..और मैं शर्मिन्दा ना होती इंसान होने पर ...
इसी दौरान रोबोट का दौर आया हर चीज़ में छोटी सी मशीन ज़िन्दगी कितनी आसान सी लगने लगी भावनाओं वाले प्रोग्राम की फाइल hidden कर दी और सुकूं की ज़िन्दगी चलने लगी ...जब मशीन बनने लगे तो एहसास हुआ आस पास इंसान है ही नहीं सिर्फ मशीने ही मशीने है ...गलती तो मेरी ही थी ना कहाँ मशीनों में इंसान ढूंढ रही थी .... बड़े गर्व के साथ मशीनों में शामिल हो गई ...चोट देने लगी चोट खाने लगी दर्द अब कहीं नहीं था ये मेरी सोच थी ....

एक दिन फिर ..वो सामने आ गया ..इंसान कही का ...अभी भी दिल ,सितारे ,रेशम फूलों की बातें करता है ....बेवक़ूफ़ मेरे रेशमी दुपट्टे को हाँथ में लेकर कहता था "कितने निर्दोष कीड़ो की जान गई है इस दुपट्टे को बनाने में "
दर्द और उसका एहसास सब ज़िंदा रखा है उसने ...बहुत कोशिश की मैं उससे दूर रहूँ जिससे इंसान होने की बीमारी ना लगे बड़ी मुश्किल से खुद को मशीन बनाया है ... पर
नहीं रोक पाई ना ...आज शर्मिन्दा हूँ इंसान होने पर ..
(इस पोस्ट में जो कुछ लिखा है उसके लिए पूरी तरह डा. अनुराग आर्य जी का facebook status ज़िम्मेदार है )

24 comments:

  1. सोनल! पहले तो इस पोस्ट के जिम्मेदार को धन्यवाद.:)
    अब तुम्हारी बारी..अगर मशीन इतना अच्छा लिख सकती है तो हम कहेंगे तुम मशीन ही बनी रहो और गाहे बगाहे इंसान से मिलती रहो क्योंकि इसके फलस्वरूप कुछ इतना खूबसूरत हम ( जो पता नहीं इंसान हैं या जानवर या मशीन)पढ़ सकेंगे. .

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  2. भावना तो इन्सान वाली उबाल मार रही है और आप कह रही हो की आप मशीन हो . अगर मशीन होती तो टंकड़ की त्रुटियां नहीं होती . तो ये मान लो की आप इन्सान ही हो .मानवीय भावनाओ से लबरेज

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  3. इंसान होने पर कभी शर्मिंदा मत होना, क्योंकि दुनिया में अब बहुत कम इंसान बचे हैं. जो हैं उन्हें भी ढूँढ पाना बहुत मुश्किल है.

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  4. पोस्ट लिखने के बाद कैसा लग रहा है.! उम्मीद है दिल और दिमाग की ज़द्दोजेहद कुछ कम हुई होगी. फिर भी इंसान को जिंदा रखना ज़रूरी है.

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  5. इंसान जानवर और मशीन .....सब में कुछ न कुछ तो घालमेल है......

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  6. आखिर यह विचार आपके मन में आया क्यों इस प्रश्न का उत्तर चाहिए मशीन में और आदमी का फर्क केवल भाव का है

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  7. इंसान सिर्फ़ इंसान ही रहे तो अच्छा है।
    बहुत कुछ कह गयी आपकी पोस्ट

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  8. बहुत कुछ कह गयी आपकी पोस्ट

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  9. इंसान तो बहुत कम है इसलिए उनके होने पर शर्मिंदगी कैसी

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  10. मुक्ति जी की बात से हम सहमत है सचमुच में दुनिया में ऐसे इन्सान बहुत कम बचे है जिनके अन्दर इंसानियत अभी भी बाकि है................

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  11. shandar post!! swagt hai....

    Jai Ho Mangalmay HO

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  12. Bhaut Accha Likha hai Rastogi G

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  13. रोबट और जानवर के बीच पड़े, हम इन्सान।

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  14. मैं शर्मिन्दा ना होती इंसान होने पर..!!!
    शब्‍दों का बहुत खूबसूरत एहसास कराती रचना ...:)

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  15. kya kahun , padhkar chup ho jaane ka man kar raha hai .... nishabd karti hui lines... amazing post ,..

    badhayi

    मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html

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  16. very nice and emotional post it touch the inner of heart
    thanks for joining hope visit in future also

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  17. behtreen prastuti!

    jimeedar koi bhi ho, aapne achha likha he!

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  18. कभी तो ये दिल दिमाग की सुन लेता ...
    Bahut khubbbbbbbbbbb
    www.anjaan45.blogspot.com

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  19. धन्यवाद जी, मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ तो मेरा मार्गदर्सन करे..

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  20. बहुत सुंदर विचार... नीरज जी की दो लाइन याद आ रही है


    आदमी को आदमी बनाने के लिए,
    जिंदगी को जिंदगी बनाने के लिए,
    प्यार की कहानी फिर लिखाने के लिए,
    स्याही नहीं आंखो वाला पानी चाहिए।

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  21. भावनाओं से भरी रचना. उम्दा सोच है... " इंसान होने के खामियाजे भी कम नहीं...!!!!! "

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  22. क्या बात है सोनल जी बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं. क्या चल रहा है?

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