ना तुम देह से परे
कभी सोच पाए ना सोच पाओगे
पलटवार करोगे
जो खुद को कमतर पाओगे
ना दोगे स्थान बराबरी का
स्वयं अर्जित किया
तो खीजोगे तिलमिलाओगे
तुम्हारे जन्म से
तुम्हारी वासनाओ तक
तुम्हारे पेट से लेकर
तृप्त अतृप्त इच्छाओं तक
निचोड़ोगे दबाओगे
पर देह से इतर जो मन है
उसे क्या जान पाओगे
कभी सोच पाए ना सोच पाओगे
पलटवार करोगे
जो खुद को कमतर पाओगे
ना दोगे स्थान बराबरी का
स्वयं अर्जित किया
तो खीजोगे तिलमिलाओगे
तुम्हारे जन्म से
तुम्हारी वासनाओ तक
तुम्हारे पेट से लेकर
तृप्त अतृप्त इच्छाओं तक
निचोड़ोगे दबाओगे
पर देह से इतर जो मन है
उसे क्या जान पाओगे
जानना चाहता ही कौन है...
ReplyDeleteकम पंक्तियों में काफी कुछ कहा तुमने.
nice and wonderful post
ReplyDeleteये सब बातें समझने का मन कहां
ReplyDeleteहिन्दी कॉमेडी- चैटिंग के साइड इफेक्ट
मन तक पहुँचने के लिए मन होना चाहिए ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletewaah kya baat hai....
ReplyDelete"पर देह से इतर जो मन है
ReplyDeleteउसे क्या जान पाओगे"
गहराई तक कौन पहुँच पाता है? इच्छाओं की तृप्ति ही मात्र धेय रह गया है । मन की थाह लेने की, उस आत्मिक तत्व को मह्सूस करने की फ़ुर्सत कहाँ रह गई है ?
बहुत सुंदर! बधाई
मन तक पहुँचने पर मन की बात होती है
ReplyDeleteक्षुधा मन की हो जाए तो बाकी सब भी मन .... कोई प्रश्न ही नहीं , कोई चाह ही नहीं , बस सबकुछ एकाकार
और आगे तक पहुँचना होता है प्रेम में।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ,बधाई.
ReplyDeleteकल 21/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
waha bahut khub........naari man ki pidha....sundar shabdo se abhivyakti....
ReplyDeletebahut sachchi baat!
ReplyDeletebahut sundar,badhaayee
ReplyDeleteमन को मन ही पढ पायेगा
ReplyDelete"........................"
ReplyDeletebahut hi sundar!
ReplyDeletebahut sari baate kaha dali is chhoti si kavita me....bahut badhiya
ReplyDeleteकितनी सशक्त/सार्थक रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई....
स्त्री पर स्तरीय कविताएं, कम ही मिलती हैं। जो उस तक पहुंचने का राह बताती हुई हो। स्त्री देह भर है तो उसके लिए हर तरफ़ जगह है, लेकिन यदि प्रेम है तो कहीं नहीं। विडम्बना यह है कि प्रेम करना उसका स्त्रीत्व है और प्रेम में रीतते जाना इस पुरुषसत्तात्मक समाज में उसकी नियति।
ReplyDeleteस्त्री की मौन जद्दोजहद को आपने परिचित बिंबों से उतारा है।
वाह ...बहुत ही अच्छी रचना ।
ReplyDeleteदेह से इतर जो मन है.. सुन्दर, सार्थक और विचारों को झकझोरती रचना.
ReplyDeleteदीवाली की शुभकामनायें!!
थोड़ा समय मेरे ब्लॉग के लिए निकालें.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
समय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
ReplyDeleteप्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
गहरी संवेदनशील बात ... अस्सन नहीं होता देह से आगे मन को तलाशना ...
ReplyDeleteक्या बात है. मन कहीं इससे परे है.
ReplyDeleteदीपोत्सव की शुभकामनायें.
मन न मिलें तो तन की प्यास खोखली, पर मन मिले और तन न मिले, तो भी तो अधूरापन होगा?
ReplyDeleteकविता मुझे पसंद आई......... आपको दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता । मन को आंदोलित कर गयी । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।. दीपावली की शुभकामनाएं । धन्यवाद .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आपको गोवर्धन व अन्नकूट पर्व की हार्दिक मंगल कामनाएं,
ReplyDeleteबहुत गंभीर कविता...
ReplyDeleteबहुत अच्छे से आपने पुरुषप्रधान समाज पर व्यंग्य किया है सरल शब्दों में गूढ़ रचना
ReplyDeleteदीपावली व नववर्ष की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं !
पूर्णता "सत्यम शिवम् सुन्दरम" से आती हैं...किसी एक के अभाव में बात अधूरी हैं.
ReplyDeletesonal ji बहुत ही बोल्ड और बेहतरीन कविता
ReplyDeleteसही कहा और बेहद खूबसूरती से अंत किया अपनी कविता का...
ReplyDeleteLike ..
ReplyDeletebahut sahi
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