वो सोच सोच कर रखती है
हर बात मुझे बताने के लिए
मेरे हां, अच्छा कहने भर से
सार्थक हो जाता है उसका याद रखना
बात बड़ी या छोटी कोई फर्क नहीं
बस बात होनी चाहिए जिससे
वो सुन सके और कह सके मुझसे
थोड़ी ज्यादा देर तक
जबसे महसूस किया है उसने
मैं उसके हाल चाल पूछता हूँ
और वो मेरी तबियत पूछती है
और पसर जाता है सन्नाटा
दोस्तों के बीच जिस बेटे की बातें
ख़त्म नहीं होती घंटों तक
अपनी माँ से बात करने पर
विषय शब्द ढूंढें नहीं मिलते
पर माँ तो सहेजती है हर घटना
हर विषय हर रंग और हर स्वर
जिससे एक फोन के कटने से
दूसरा फोन आने तक व्यस्त रहती है
BAHUT SUNDAR BHAVON KO SANJOYA HAI
ReplyDeleteजिससे एक फोन के कटने से
ReplyDeleteदूसरा फोन आने तक व्यस्त रहती है
सही कहा. माँ व्यस्त रहती है.
बहुत सुंदर..!!
ReplyDeleteसच को ब्यान करती मार्मिक एवं स्वेदन शील प्रस्तुति.... मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका आभार ...कृपया यूं हीं संपर्क बनाये रखें :)
ReplyDeleteमाँ ऐसी ही होती है....
ReplyDeleteबहुत सच कहा है...माँ बहुत कुछ कहना चाहती है, पर फोन पर बात करते समय भूल जाती है क्या बात कहनी थी...बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..
ReplyDeletekhoobsurat zazbaat....jahan maa hai vahan apne aap hi sab sahaj aur sundar hai!!
ReplyDeleteक्या बात है! वाह! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमाँ बच्चों के लिये जीती है।
ReplyDeleteमाँ की दुनिया, उसका संसार तो उसके बच्चों में ही सिमट कर रह जाता है! वो बच्चों के आने का महीनों इंतज़ार करती है। ख्यालों में खोई रह्ती है - ये बनाऊँगी, ये खिलाऊँगी और बच्चों को विदा करते ही उसकी दुनिया फिर वीरान हो जाती है !
ReplyDeleteमाँ की भावनाओं का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने । बधाई सोनल!
वाह ...बहुत खूब मां का जिक्र बिल्कुल मां की तरह ...।
ReplyDeleteसच कहा... हम जिंदगी की आपाधापी में माँ को ही वक्त देना भूल जाते हैं!माँ हमसे सिर्फ हमारे थोड़े से साथ के अलावा कुछ नहीं चाहती!
ReplyDeleteexcellent and very emotional.....
ReplyDeleteमाँ- .... कभी आश्वस्त होती है
ReplyDeleteकभी बेचैन
मैं उसके और अपने बीच का फर्क ढूंढती हूँ
माँ कुछ और सोचती है मैं कुछ और ... इसे पढ़ते हुए बहुत कुछ सोच गई
माँ- .... कभी आश्वस्त होती है
ReplyDeleteकभी बेचैन
मैं उसके और अपने बीच का फर्क ढूंढती हूँ
माँ कुछ और सोचती है मैं कुछ और ... इसे पढ़ते हुए बहुत कुछ सोच गई
ये तो मेरी कहानी है.. वीडियो चैट पर भी हम सब को देखकर रोटी रहती है!!
ReplyDeleteदोस्तों के बीच जिस बेटे की बातें
ReplyDeleteख़त्म नहीं होती घंटों तक
अपनी माँ से बात करने पर
विषय शब्द ढूंढें नहीं मिलते
बहुत बढिया है.
बहुत खूब......... माँ तो बस माँ है..... उसकी अभिव्यक्ति भी कठिन है .... परन्तु आप्नके बखूब किया है ....
ReplyDeleteअभिव्यक्ति पर याद आया ...... एक नया पोस्ट डाला है " वाह री अभिव्यक्ति" ...... समय मिले तो देखिएगा.....
www.manojobc.blogspot.com
बहुत सुंदर.वैसे बेटियों के पास माँ के लिए शब्दों,वाक्यों,पहरों,निबन्धों से भी लम्बी बातें होती हैं करने को. समय कम पड़ता है बातें लम्बी हो जाती हैं.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
माँ और बेटे में यही फर्क है .....
ReplyDeleteशुभकामनायें माँ को !
जबसे महसूस किया है उसने
ReplyDeleteमैं उसके हाल चाल पूछता हूँ
और वो मेरी तबियत पूछती है
और पसर जाता है सन्नाटा
माँ की सही तस्वीर है ... बहुत संवेदनशील रचना
अब ये कहानी तो सब जगह एक सामान है. कथा लंबी है और समय है सिर्फ २४ घंटे का.
ReplyDeleteममतामयी तस्वीर पेश की है कबिता में. बधाई.
भावविभोर करती प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता!! :)
ReplyDeleteबहुत ही भावुक रचना ... माँ के विभिन्न रूपों में ये भी एक है ... लाजवाब प्रस्तुति है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता सोनल जी बधाई
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना,बधाई!
ReplyDeleteपर माँ तो सहेजती है हर घटना
ReplyDeleteहर विषय हर रंग और हर स्वर
जिससे एक फोन के कटने से
दूसरा फोन आने तक व्यस्त रहती है
बहुत खूब प्रस्तुति !!