आजकल जहाँ से गुजरते है एक सोंधी सी खुशबू ठिठकने पर मजबूर कर देती है लगता है कहीं ना कहीं कुछ पापकार्न पक रहे है ये मक्के वाले नहीं ,जी ये तो प्यार वाले पापकार्न है ,छोटे शहरों में जो मोहल्ले की छतों पर,पार्क के कोनो में हुआ करता था आज वो हर सड़क और गली ,मॉल और पार्क ,कैफे और बाज़ार में सामने दिखता है .
मारल पुलिस प्लीज़ माफ़ करो मुझे तो ये गुलाबी मौसम बहुत पसंद है , जब हवा में सिर्फ प्यार छाया हो .
माना छतें और शामें आज की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी से माइनस हो चुकी है पर दिल तो वही है ना और दिलदार भी साथ ही है, फिर ज्यादा कुछ करना भी तो नहीं है,बस एक कॉम्प्लीमेंट ,एक गुलाब ,एक कप चाय या छोटी सी वाक. सारा नज़ारा बदल देगा .सब सामने ही है पर रोज़ कि व्यस्तताओं नें आँखों पर काला चश्मा लगा दिया है
सिर्फ युवा ही नहीं आज हर जोड़ा खुलकर अपने प्यार का इज़हार करता है,चाहें जन्मदिन हो ,valentine डे या यूँही , आखिर बुराई क्या है ,जिस जीवन साथी ने हर सुख दुःख में आपका साथ दिया है अगर उसका हाँथ थाम कर दुनिया के नज़ारे देखने निकल पड़े तो भवें क्यों तिरछी क्यों की जाए,चाहें बरसात के मौसम में एक साथ भुट्टे का मज़ा लेना हो या खोमचे पर खड़े होकर चाट खाना और अपनी "प्रियतमा" को गोलगप्पे खाते हुए देखना.
कुछ द्रश्य जो आज से कुछ साल पहले तक शायद दीखते नहीं थे आज आम है .ऐसे दृश्य हमें एहसास दिलाते है ज़िन्दगी सिर्फ भागने के लिए नहीं है ,कुछ पल सुकूं से गुज़ारने के लिए भी है,किसी रिश्ते में बंधने से पहले वो पल जैसे भी हो निकाले जाते थे और जिए भी जाते थे डर था ना अपने साथी को खोने का ,और आज जब वो साथ है तो वक़्त की कमी का रोना क्यों ?
तीन घंटे पिक्चर हाल में गुजारना कुछ लोगों को पैसे या टाइम की बर्बादी लग सकता है पर कोई बताये सिर्फ साथ रहने के लिए अपनी व्यस्त शाम में से तीन घंटे कौन निकाल पाता है, कितने लोग है जो शाम को जल्दी आकर कहते है चलो तैयार हो जाओ कहीं घूम कर आते है , आसमान में बादल छाते है ,बरस जाते है जब तक हम आप बाहर निकलते है तब हमें सिर्फ कीचड और ट्रेफिक जाम याद आता है,
आज कोई बुजुर्ग जोड़ा जब मॉल में एक कॉफ़ी टेबल पर एक साथ सुकून से काफ़ी का मज़ा ले रहा होता है तो कितने युवा जोड़ों के दिल में यही उम्मीद जगाती है काश हमारा बुढ़ापा भी ऐसे हाँथ में हाँथ डालकर बीते एक दुसरे के साथ. अजीब बात है सबको रश्क है टीनएजर युवाओं से रश्क कर रहे है "जब हम Independent होंगे तो जैसे चाहें एन्जॉय करेंगे ", युवा अधेड़ों से रश्क करते है "यार हम भी सेटल हो जाए फिर लाइफ जियेंगे " और बुजुर्ग पीछे मुड कर देखते है और सोचते है काश ..थोडा वक़्त अपने लिए भी निकाला होता . बस यूँही फिसल जाते है हसीं लम्हें रेत कि मानिंद हांथों से
बड़ों के लिहाज के चलते ऐसे पलों का मज़ा सिर्फ पहाड़ों पर छुट्टियों के दौरान ही उठाते थे ना ,आज वीकेंड वही मौक़ा देता है हर हफ्ते आप पर है आप कितना एन्जॉय कर पाते है ,प्यार तब भी था प्यार अब भी है बस पहले जताते नहीं थे अब छिपाते नहीं. भले ही युवा जोड़ों को गुटर-गूं करते देख दिल में टीस उठे कभी उनको बे-शर्म भी कह दे पर वो टीस खुद वो लम्हे ना एन्जॉय कर पाने की होती है, तो रोका किसने है ज़िन्दगी तो यूँही भागती रहेगी जब तक जोड़ों के दर्द आपको धीमे चलने के लिए मजबूर नहीं कर देंगे क्या पता तब वक़्त हो ,पैसा हो पर साथी ना हो ,लम्हे तो चुराने ही पड़ेंगे ना ,
ये प्यार के पोपकोर्न है आपके हाँथ थामने भर से खिल उठेंगे और अपनी सोंधी खुशबू से मजबूर कर देंगे कि बस एक रूमानी सा ब्रेक तो बनता ही है ना .
मारल पुलिस प्लीज़ माफ़ करो मुझे तो ये गुलाबी मौसम बहुत पसंद है , जब हवा में सिर्फ प्यार छाया हो .
माना छतें और शामें आज की तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी से माइनस हो चुकी है पर दिल तो वही है ना और दिलदार भी साथ ही है, फिर ज्यादा कुछ करना भी तो नहीं है,बस एक कॉम्प्लीमेंट ,एक गुलाब ,एक कप चाय या छोटी सी वाक. सारा नज़ारा बदल देगा .सब सामने ही है पर रोज़ कि व्यस्तताओं नें आँखों पर काला चश्मा लगा दिया है
सिर्फ युवा ही नहीं आज हर जोड़ा खुलकर अपने प्यार का इज़हार करता है,चाहें जन्मदिन हो ,valentine डे या यूँही , आखिर बुराई क्या है ,जिस जीवन साथी ने हर सुख दुःख में आपका साथ दिया है अगर उसका हाँथ थाम कर दुनिया के नज़ारे देखने निकल पड़े तो भवें क्यों तिरछी क्यों की जाए,चाहें बरसात के मौसम में एक साथ भुट्टे का मज़ा लेना हो या खोमचे पर खड़े होकर चाट खाना और अपनी "प्रियतमा" को गोलगप्पे खाते हुए देखना.
कुछ द्रश्य जो आज से कुछ साल पहले तक शायद दीखते नहीं थे आज आम है .ऐसे दृश्य हमें एहसास दिलाते है ज़िन्दगी सिर्फ भागने के लिए नहीं है ,कुछ पल सुकूं से गुज़ारने के लिए भी है,किसी रिश्ते में बंधने से पहले वो पल जैसे भी हो निकाले जाते थे और जिए भी जाते थे डर था ना अपने साथी को खोने का ,और आज जब वो साथ है तो वक़्त की कमी का रोना क्यों ?
तीन घंटे पिक्चर हाल में गुजारना कुछ लोगों को पैसे या टाइम की बर्बादी लग सकता है पर कोई बताये सिर्फ साथ रहने के लिए अपनी व्यस्त शाम में से तीन घंटे कौन निकाल पाता है, कितने लोग है जो शाम को जल्दी आकर कहते है चलो तैयार हो जाओ कहीं घूम कर आते है , आसमान में बादल छाते है ,बरस जाते है जब तक हम आप बाहर निकलते है तब हमें सिर्फ कीचड और ट्रेफिक जाम याद आता है,
आज कोई बुजुर्ग जोड़ा जब मॉल में एक कॉफ़ी टेबल पर एक साथ सुकून से काफ़ी का मज़ा ले रहा होता है तो कितने युवा जोड़ों के दिल में यही उम्मीद जगाती है काश हमारा बुढ़ापा भी ऐसे हाँथ में हाँथ डालकर बीते एक दुसरे के साथ. अजीब बात है सबको रश्क है टीनएजर युवाओं से रश्क कर रहे है "जब हम Independent होंगे तो जैसे चाहें एन्जॉय करेंगे ", युवा अधेड़ों से रश्क करते है "यार हम भी सेटल हो जाए फिर लाइफ जियेंगे " और बुजुर्ग पीछे मुड कर देखते है और सोचते है काश ..थोडा वक़्त अपने लिए भी निकाला होता . बस यूँही फिसल जाते है हसीं लम्हें रेत कि मानिंद हांथों से
बड़ों के लिहाज के चलते ऐसे पलों का मज़ा सिर्फ पहाड़ों पर छुट्टियों के दौरान ही उठाते थे ना ,आज वीकेंड वही मौक़ा देता है हर हफ्ते आप पर है आप कितना एन्जॉय कर पाते है ,प्यार तब भी था प्यार अब भी है बस पहले जताते नहीं थे अब छिपाते नहीं. भले ही युवा जोड़ों को गुटर-गूं करते देख दिल में टीस उठे कभी उनको बे-शर्म भी कह दे पर वो टीस खुद वो लम्हे ना एन्जॉय कर पाने की होती है, तो रोका किसने है ज़िन्दगी तो यूँही भागती रहेगी जब तक जोड़ों के दर्द आपको धीमे चलने के लिए मजबूर नहीं कर देंगे क्या पता तब वक़्त हो ,पैसा हो पर साथी ना हो ,लम्हे तो चुराने ही पड़ेंगे ना ,
ये प्यार के पोपकोर्न है आपके हाँथ थामने भर से खिल उठेंगे और अपनी सोंधी खुशबू से मजबूर कर देंगे कि बस एक रूमानी सा ब्रेक तो बनता ही है ना .
अगर दौड़ती-भागती जिंदगी से कुछ पल ना चुरा लिए जाएँ तो फिर जिंदगी मोहलत नहीं देती...किसी खुशनुमा पल के लिए ...मुट्ठी से रीते रेत की तरह जिंदगी फिसल जाती है..हाथों से
ReplyDeleteहमने तो खूब एंज्वॉय किये हैं ये लम्हें. हाँ, आज की पीढ़ी अभिव्यक्ति के मामले में हमसे आगे है. कुछ यही प्यार भरे सौंधे लम्हें, इस भागती-दौडती दुनिया के जिंदा होने के सबूत हैं, इस बात का एहसास कि दुनिया अभी मशीन नहीं बनी है. और हम मात्र मशीन के कल-पुर्जे नहीं हैं.
ReplyDeletebAHUT BADIYA
ReplyDeleteहमने तो खूब एंज्वॉय किये हैं ये लम्हें. हाँ, आज की पीढ़ी अभिव्यक्ति के मामले में हमसे आगे है. कुछ यही प्यार भरे सौंधे लम्हें, इस भागती-दौडती दुनिया के जिंदा होने के सबूत हैं, इस बात का एहसास कि दुनिया अभी मशीन नहीं बनी है. और हम मात्र मशीन के कल-पुर्जे नहीं हैं. I loved this post... very touching....
ReplyDelete@ टीनएजर युवाओं से रश्क कर रहे है "जब हम Independent होंगे तो जैसे चाहें एन्जॉय करेंगे ", युवा अधेड़ों से रश्क करते है "यार हम भी सेटल हो जाए फिर लाइफ जियेंगे " और बुजुर्ग पीछे मुड कर देखते है और सोचते है काश ..थोडा वक़्त अपने लिए भी निकाला होता . बस यूँही फिसल जाते है हसीं लम्हें रेट कि मानिंद हांथों से
ReplyDeleteबस यही तो है न ..जो समझ लिया तो आसान और खुशगवार सी हो जाती है जिंदगी.
हर पल यहाँ जी भर जियो जो है समां कल हो न हो :)
जीवन से प्रयार के पल हमेशा चुराते रहना चाहिए ... किसी भी अवस्था में प्यार किया जा सकता है ... और वैसे भी पोपकोर्न हो या जो भी हो हाथ में ... उनका हाथ तो थामा ही जा सकता है ...
ReplyDeleteवाह ...बेहद खूबसूरत ...पोस्ट...खूबसूरत शब्दों का समावेश ..
ReplyDeleteभौंरा ..एक फूल से
खुशबु निकाल लेता है
जूनून हो जीने का
तो जिन्दगी से हर कोई
वक़्त चुरा ही लेता है ....(अनु )
हर जोड़ा इतराया है,
ReplyDeleteगहरा प्यार समाया है।
कितना भी जी लो जी भर के, मगर दूसरों को देखकर हमेशा यही लगता है ,की कशा हमने भी इस तरह जिया होता.... वो क्या है न, बाजूवाले घर की घाँस हमेशा हम को हमरी घर की घाँस से ज्यादा हरी लगती है ;-)...
ReplyDeleteसच कहा सोनल जी यूं ही नही मिला करते पल फ़ुरसत के…………वक्त से कहो थोडा ठहर जाये………मै दो पल जी लूँ इन लम्हो को जी लूँ फिर चाहे ज़िन्दगी क्यूँ ना गुजर जाये
ReplyDeleteहमारी मेडम जी आजकल अपनी मम्मी जी के घर पर मक्के के पोपकोर्न खा रही है ... नहीं तो कसम से हम भी यही प्यार वाले पोपकोर्न खा रहे होते ... :-(
ReplyDeleteआज कोई बुजुर्ग जोड़ा जब मॉल में एक कॉफ़ी टेबल पर एक साथ सुकून से काफ़ी का मज़ा ले रहा होता है तो कितने युवा जोड़ों के दिल में यही उम्मीद जगाती है काश हमारा बुढ़ापा भी ऐसे हाँथ में हाँथ डालकर बीते एक दुसरे के साथ.
ReplyDeleteWah ji wah!!!!
mazedaar post.. laga jaise 'lage raho Munnabhai" ki RJ Vidhya baalan nayi nazar ka naya nazariya le k aa gayi ho.. mazaa aa gaya padh k :)
nice post:)
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुती....
ReplyDelete
ReplyDelete♥
प्रिय सोनल जी
सस्नेहाभिवादन !
मुझे तो ये गुलाबी मौसम बहुत पसंद है , जब हवा में सिर्फ प्यार छाया हो
आप-सी दृष्टि सबको मिल जाए …
तो हरसू गुलाबी कलियां खिल जाएं …
:)
ये प्यार के पोपकोर्न अपनी सोंधी खुशबू से मजबूर करने लगे हैं… अब एक रूमानी सा ब्रेक तो बनता ही है … … …
शानदार और जीवंत पोस्ट के लिए बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सटीक!
ReplyDeleteलम्हे तो चुराने ही पड़ेंगे
ReplyDeleteSonal ji..
ReplyDeleteYaad hame bhi aaye wo pal..
Jab chhalka aakhon se pyaar..
Man main fir se aaya falgun..
Yadon ke wo rang hazaar..
'Pyaar ke popkorn' padh kar man main bhav se umad uthe hain.. Sahi kahti hain aap.. Jindgi bhag daud main nikal jaati hai aur sabhi yahi sochte rah jaate hain ki kash kuch fursat ke pal churaye hotr apne liye..
Sukhad ahsaason ko .liye aapka aalekh... Aapka tahe dil se Dhanyawad...
Shubhkamnaon sahit..
Deepak Shukla..
VERY NICE SONAL
ReplyDeleteअच्छे तरीके से समझाया है।
ReplyDeleteये प्यार के पोपकोर्न है आपके हाँथ थामने भर से खिल उठेंगे और अपनी सोंधी खुशबू से मजबूर कर देंगे कि बस एक रूमानी सा ब्रेक तो बनता ही है ना .
ReplyDeletebilkul banta hai jee :)
बहुत अच्छी रचना है आपकी , हमारे ब्लॉग पर भी दर्शन दे श्रीमान
ReplyDeleteहमारी कुटिया पर तो कोई आता ही नहीं है, आईये ना ............
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ...पोस्ट
ReplyDeleteशुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!
प्यार हर तरफ फैला हुआ है ..नज़र उठा के देखने कि ज़रूरत भर है...पोस्ट बहुत ही बढ़िया है..."रूमानी" ब्रेक बढ़िया कोंसेप्ट लगा...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteबहुत उत्तम ...................
ReplyDeleteपापकान,, खाए जाओ , खाए जाओ ....प्रेम के गुण गाये जाओ ....जय हो मुरलीधर की ..राधे राधे ...
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