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Thursday, February 2, 2012

हे दशानन !


है वो मनुष्य
गुण-अवगुण से भरा
नहीं जुड़ता मन
राम से मेरा
बहन के अपमान से
पीड़ित होता है

भाई के धोखे से
दुखभर रोता है
सुख दुःख सब
सच्चे है उसके
प्रतिशोध में भरा
नहीं जुड़ता मन
राम से मेरा ....

 

19 comments:

  1. राम की बात तो सबने कही...आपने रावन की कही..
    बहुत खूब..

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  2. सुंदर रचना ...बधाई

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  3. हम्म रावन भी सादाहरण मनुष्य नहीं था :).

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  4. गहन अभिवयक्ति..........और सार्थक पोस्ट.....

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  5. Kya baat hai.. lajawaab drishtikon.. :)
    Waise bhi kaun jaanta hai ki sach kya tha.. jo jeet gaya wo hi maahaan hai yahan.

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  6. कभी कभी ऐसे ख़याल भी मन में आते हैं..

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  7. रावण है तभी राम है,
    श्वेत है तभी श्याम है |

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  8. एक नजरिया यह भी ..अच्छी प्रस्तुति

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  9. मो सम कौन कुटिल खलि कामी .....

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  10. पढ़ रहा हूँ ...समझ रहा हूँ ..सोच रहा हूँ
    गहन ...मर्मस्पर्शी ...

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  11. वाह सोनल ! कितना मज़बूत त्तार्किक पक्ष और गहरी वेदना समेटे है ये छोटी सी अभिव्यक्ति!

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    1. इस सार्थक प्रविष्टि के लिए बधाई स्वीकार करें.
      अपेक्षा करता हूँ कि आप मेरे ब्लॉग"MERI KAVITAYEN" पर पधारकर मुझे भी अपना स्नेह प्रदान करेंगे .

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  12. ऐसे में राम दोषी क्यों हुवे और दशानन पूज्य क्यों ...
    गहन अर्थ खोजती है ये रचना ...

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  13. दशानन के दिल की बात समझने की भी कोशिश किसी ने की

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  14. सुन्दर अभिव्यक्ति.
    दशानन के नजरिये का एक पहलु दर्शाती.
    आभार
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