पतन नहीं
उत्थान करो
रण का तुम
आह्वान करो
लक्ष्य भले ही
दुष्कर हो
अर्जुन सा
शर-संधान करो
भय का जो
अंधियारा हो
विफल प्रयास जो
सारा हो
एक ध्येय पर
अड़ जाओ
देह की माना
सीमा है
अन्तर की सीमा
मत बांधो
श्राप को भी
वरदान करो
उत्थान करो
रण का तुम
आह्वान करो
लक्ष्य भले ही
दुष्कर हो
अर्जुन सा
शर-संधान करो
भय का जो
अंधियारा हो
विफल प्रयास जो
सारा हो
एक ध्येय पर
अड़ जाओ
देह की माना
सीमा है
अन्तर की सीमा
मत बांधो
श्राप को भी
वरदान करो
लाजबाब प्रेरक प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteशौर्य और साहस का संचार कर रही है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा,सोनल जी.
ये बात ...विजयी भव्:.:)
ReplyDeleteओजयुक्त, प्रेरक कविता। बहुत सुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाहस का संचार करती सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह..बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteऊर्जा से भरपूर रचना..
श्राप को भी वरदान करो ... बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रेरक कविता। धन्यवाद।
ReplyDeleteमन के उत्साह को द्विगुणित करती पंक्तियाँ..
ReplyDeleteलक्ष्य भले ही
ReplyDeleteदुष्कर हो
अर्जुन सा
शर-संधान करो
............. सुंदर और प्रेरक पंक्तियाँ
Saarthak ahwan karti ... Ojasvi rachna ... Bahut prerak ...
ReplyDeleteदेह की माना
ReplyDeleteसीमा है
अन्तर की सीमा
मत बांधो
बड़ी ख़ूबसूरत बात कही है.
उत्साह से लबरेज पंक्तियाँ ,मनोबल बढाती . आभार
ReplyDeleteवाह ...लाजबाब
ReplyDeleteदेह की माना
ReplyDeleteसीमा है
अन्तर की सीमा
मत बांधो
....बहुत प्रेरक ओजमयी प्रस्तुति...बहुत सुंदर
अन्तर की सीमा
ReplyDeleteमत बांधो
श्राप को भी
वरदान करो.
बेहतरीन सन्देश देती सुंदर प्रस्तुति.
अन्तर की सीमा
ReplyDeleteमत बांधो
श्राप को भी
वरदान करो
बहुत ही ओजमयी सुंदर और प्रेरक कविता
@देह की माना सीमा है
ReplyDeleteअन्तर की सीमा मत बांधो ...
अति सुन्दर!
देह की माना
ReplyDeleteसीमा है
अन्तर की सीमा
मत बांधो
behad khoobsoorat rachana .....sadar abhar.