सुनो !
तुमसे बात करना कविता लिखने जैसा है ..बेहद नाजुक बातें होती है तुमसे ...बातें नाजुक हां ...इन गुलाबी होंठो से खुदा ना करे कोई और बातें हो ..तो मैं कह रहा था तुमसे बात करना .....तुम्हारी उंगलिया अनजाने संगीत पर ताल देती है हमेशा या तुम कीबोर्ड कुछ ना पढ़ी जा सकने वाली इबारत टाइप कर रही हो कई बार सोचा की पूछ ही लूं शायद बता दो पर रहने दो जिस दिन महाकाव्य पूरा होगा उस दिन तुम्हारे लबो से सुनूँगा..तसल्ली से ...ये जो आदत है ना तुम्हारी बातें करते हुए अपनी जुल्फों में उंगलिया फेरने की ,,मुझे बादलो में बिजली के तड़कने का एहसास देती है ..कभी आईने के सामने खड़े होकर जुल्फों में फसीं इन उँगलियों को यूँभी देख लेना ....मुझसे बात करते करते अचानक जो मुस्कुराती हो वो मुस्कान हमेशा रहस्यों से भरी होती है ..एक दिन इस मुस्कराहट ...इन होंठों से जुड़े सारे रहस्य हल कर लूँगा मैं पढ़ रहा हूँ तुम्हे समझ रहा हूँ तुम्हे ...अगर समझ पाया तो ...कई बार ऐसा लगा मेरी बातों को समझने के लिए तुम्हे अपनी आँखों का सहारा लेना पड़ता है ...जब किसी बात पर ध्यान देते हुए तुम अपनी आँखे छोटी करती हो तो लगता है मेरे विचार अपनी आँखों के रास्ते खींच रही हो अपने दिमाग तक और समझ में आते ही फिर उसी आकार में लौट आती है तुम्हारी आँखे .... तुम्हे जब लगता है मैं तुम्हे नहीं सुन रहा मैं तब भी तुम्हे ही पढ़ रहा होता हूँ ..ना तुमसे निगाह हटती है ना किसी पल ख्यालों से तुम गायब होती हो ,कहा ना मैं तुम्हे पढ़ रहा हूँ ..जब तुम बेतकल्लुफी जताती हो और सामने कुशन के सहारे अधलेटी होकर बात कर रही होती हो ..तो तुम जानती हो मैं तुम्हारे जिस्म की लहर के साथ चढ़ उतर रहा हूँ ... मेरी नज्मो में जो नमक है वो तुमसे ही तो है उधार लिया है मैंने ...एक दिन इस नमक का क़र्ज़ अदा कर दूंगा ...उस दिन तक ..मुझे पढने दो..
तुमसे बात करना कविता लिखने जैसा है ..बेहद नाजुक बातें होती है तुमसे ...बातें नाजुक हां ...इन गुलाबी होंठो से खुदा ना करे कोई और बातें हो ..तो मैं कह रहा था तुमसे बात करना .....तुम्हारी उंगलिया अनजाने संगीत पर ताल देती है हमेशा या तुम कीबोर्ड कुछ ना पढ़ी जा सकने वाली इबारत टाइप कर रही हो कई बार सोचा की पूछ ही लूं शायद बता दो पर रहने दो जिस दिन महाकाव्य पूरा होगा उस दिन तुम्हारे लबो से सुनूँगा..तसल्ली से ...ये जो आदत है ना तुम्हारी बातें करते हुए अपनी जुल्फों में उंगलिया फेरने की ,,मुझे बादलो में बिजली के तड़कने का एहसास देती है ..कभी आईने के सामने खड़े होकर जुल्फों में फसीं इन उँगलियों को यूँभी देख लेना ....मुझसे बात करते करते अचानक जो मुस्कुराती हो वो मुस्कान हमेशा रहस्यों से भरी होती है ..एक दिन इस मुस्कराहट ...इन होंठों से जुड़े सारे रहस्य हल कर लूँगा मैं पढ़ रहा हूँ तुम्हे समझ रहा हूँ तुम्हे ...अगर समझ पाया तो ...कई बार ऐसा लगा मेरी बातों को समझने के लिए तुम्हे अपनी आँखों का सहारा लेना पड़ता है ...जब किसी बात पर ध्यान देते हुए तुम अपनी आँखे छोटी करती हो तो लगता है मेरे विचार अपनी आँखों के रास्ते खींच रही हो अपने दिमाग तक और समझ में आते ही फिर उसी आकार में लौट आती है तुम्हारी आँखे .... तुम्हे जब लगता है मैं तुम्हे नहीं सुन रहा मैं तब भी तुम्हे ही पढ़ रहा होता हूँ ..ना तुमसे निगाह हटती है ना किसी पल ख्यालों से तुम गायब होती हो ,कहा ना मैं तुम्हे पढ़ रहा हूँ ..जब तुम बेतकल्लुफी जताती हो और सामने कुशन के सहारे अधलेटी होकर बात कर रही होती हो ..तो तुम जानती हो मैं तुम्हारे जिस्म की लहर के साथ चढ़ उतर रहा हूँ ... मेरी नज्मो में जो नमक है वो तुमसे ही तो है उधार लिया है मैंने ...एक दिन इस नमक का क़र्ज़ अदा कर दूंगा ...उस दिन तक ..मुझे पढने दो..
्वाह ………खूबसूरत अहसास
ReplyDeleteसुनो!मैं पढ़ रही हूँ तुम्हे.............
ReplyDeleteतुम्हारी पोस्ट पढ़ना मोहब्बत की किसी शायरी जैसा है...
:-)
lovely.........
वाह .......बहुत खूब .....
ReplyDeletebaut tasalli si hui padh kar Sonal
ReplyDeletesunder
abhaar
naaz
बहुत बढ़िया !!!!
ReplyDelete"... मेरी नज्मो में जो नमक है वो तुमसे ही तो है उधार लिया है मैंने ..."
बला का खूबसूरत लिखा है सोनल !!!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अहसास और उतना ही खूबसूरत अंदाज़-ए- बयां
ReplyDeletebeautiful metaphors, nice flow, liked it !!
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति ....
ReplyDeleteक्यों भारत के लोग अंग्रेजी को इतना महत्त्व देते हैं जब आपकी लेखनी ऐसा अहसास दिलाती है मानो अपनी आँखों के सामने ही कोई घटना घाट रही हो. लिखने का इतने अच्छे अंदाज़ के लिए बधाई स्वीकार कीजिये.
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब।
ReplyDeleteइस प्यार को तुम समझो न समझो ..... है तो
ReplyDeleteसोनल, न जाने क्यों मुझे लगता है कि ये वे विचार हैं जो एक स्त्री चाहती है उसका प्रेमी सोचे. मुझे नहीं लगता ये शब्द कभी पुरुष के हो सकते हैं. यदि हाँ तो किसी विरले पुरुष के.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
क्या यही प्यार है ....|
ReplyDeleteअहा, भाव बहा ले गया।
ReplyDeleteएक दिन इस नमक का क़र्ज़ अदा कर दूंगा ...उस दिन तक ..मुझे पढने दो..
ReplyDeleteएहसास बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं .... बहुत सुंदर
वाह क्या बात है ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बुंदेले हर बोलों के मुंह, हमने सुनी कहानी थी ... ब्लॉग बुलेटिन
सिर्फ सुनना ही तो सब कुछ नहीं , पढ़ तो रहा ही हूँ ....
ReplyDeleteशायराना अंदाज़ !
कल 20/06/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
बहुत मुश्किल सा दौर है ये
तुम्हे जब लगता है मैं तुम्हे नहीं सुन रहा मैं तब भी तुम्हे ही पढ़ रहा होता हूँ
ReplyDeleteक्या बात...ख़ूबसूरत अहसासों से लबरेज़..
इस नमक का क़र्ज़ ... काश जिंदगी भर मेरी नज्मों में ये नमक घुला रहे ... मैं यूं ही कर्जदार रहूँ ...
ReplyDeleteकमाल का प्रवाह ... बस पढता ही गया ...
बहुत सुंदर ढंग से भावों को अभिव्यक्त किया है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअच्छा अंदाज़ है ...
ReplyDeleteबेहद शायराना अंदाज लिये खूबसूरत रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
Tareef karne ka ye andaaz bhi badhiya hai.....
ReplyDeleteअंदाजे बयाँ काफी खुबसूरत है
ReplyDeleteक्या खूब , एक बार पढ़ा और पढ़ता चला गया ....
ReplyDeleteकाफी सुंदर अभिव्यक्ति ....