मेरे शहर में
शाम नहीं होती
देखा नहीं किसी नें
ढलते सूरज को
हाँ, वालपेपर पर
कई बार देखा है ,
ऑफिस से निकलते है
बंधुआ मजदूर
अँधेरे में मुह छिपाए
कंधे झुकाए रोबोट
नशे में डुबो देते है
पूरा दिन और तनाव
पर शाम को तो
उन्होंने भी नहीं देखा
आसमान के रंग
को लेकर अक्सर
बहस छिड़ती है
छ बाय छ के
पिंजरे से कभी
आकाश दिखा नहीं
जो घोसलों को
लौटते है बिना पिए
उनके चूजे भी
सीमेंट में पलते है
सीमेंट में बढ़ते है
शाम को वो भी जानते नहीं
कुछ बूढ़े बाते करते है
गोधूलि बेला की
पर ऐसा कुछ
मेरे शहर में नहीं होता
दिन और रात के सिवा
कुछ नहीं देखा
मेरे शहर में
किसी ने भी
शाम को नहीं देखा
उम्दा अभिव्यक्ित
ReplyDeletebahut din ho gaye, mujhe bhi shaam dekhe.. pichhlee baar apne gaaon ke pokhar ke uss paar dekha tha.. dubte suraj ko:)
ReplyDeleteसही कह रही हो आप, एक अरसा हो गया शाम देखे !!!
ReplyDeleteबढ़िया चित्रण किया है आपने आज के परिदृश्य का ।
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (28-11-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
वाह......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...बड़ी गहराई से लिखा है सोनल...
अनु
शाम तो मेरे शहर में भी आती है.पर वो शाम सी नहीं रात सी होती है .(यहाँ आजकल 3:30 pm पर ही अँधेरा हो जाता है na :P)
ReplyDeleteये आज का सबसे बडा सच है …………सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDelete"सीमेंट ही सीमेंट" जिसकी परत ने अनुभूतियों पर ऐसा लेप चढ़ा दिया है जो प्रकृति की ओर निहारने ही नहीं देता - प्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteरात है कि शाम को आने ही नहीं देती है, दिन को ही निगल जाती है।
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुती....
ReplyDeletesacha aisa to har roz hota h aur strange ye h ki aisa kabhi socha nahi.. sahiii
ReplyDeleteदिल्ली मेरी दिल्ली!
ReplyDeleteसोनल जी बेहद प्रभावशाली रचना है
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
दिल को छू गयी आपकी रचना...
ReplyDelete~सादर!!!
बहुत बढ़िया सोनल जी... आज शहरों की यही दशा है ... बहुत ही वास्तविक चित्रण किया है आपने ..
ReplyDeleteसाभार
मेरे शहर में
ReplyDeleteकिसी ने भी
शाम को नहीं देखा
वाह ...बहुत ही बढिया लिखा है आपने
सच्च कहा जी। एकदम्म सच्च।
ReplyDeleteप्रिय ब्लॉगर मित्र,
ReplyDeleteहमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।
[यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।
आजकी भागमभाग जिंदगी का सच लिख दिया आपने ... असल चित्रण महानगरीय जीवन का ...
ReplyDeleteशाम का यह रंग पहली बार किसी कवि ने देखा, सचमुच कितने दिनों से मैंने भी शाम का रंग नहीं देखा, लड़कियों को घरों के आगे रंगोली बनाते हुए नहीं देखा, बच्चों को गलियों में क्रिकेट खेलते नहीं देखा। बहुत अच्छी कविता
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