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Tuesday, January 15, 2013

वो तनहा !


छोड़कर घर फुटपाथ पर वो पड़ा था
वक़्त ने कितना कड़ा चांटा जड़ा था
गाँव को लगता था साहब बन गया वो
आखिरी दम सांस में काँटा गड़ा था 
सपने तोड़े सबके और उम्मीदें जलाई
राख पर अपनी आज वो तनहा खड़ा था
की बगावत समझा खुद को सिकंदर
पेट का सच आज सपनो से बड़ा था
किस तरह कहता मुझे वापस बुला लो 
सारे घर से रात भर कितना लड़ा था

19 comments:

  1. Replies
    1. चल मरदाने,सीना ताने - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. किस तरह कहता मुझे वापस बुला लो
    सारे घर से रात भर कितना लड़ा था.....kash aisa na hota.....

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  3. महत्वाकांक्षाओं की मार बडी तेज़ पड़ती है कभी....
    चलो सुबह का भूला शाम घर आने की सोच तो रहा है....

    अनु

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  4. की बगावत समझा खुद को सिकंदर
    पेट का सच आज सपनो से बड़ा था

    ....बहुत खूब...बहुत मर्मस्पर्शी रचना..

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  5. एहसास हुआ यही क्या कम है.

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  6. गाँव को लगता था साहब बन गया वो
    आखिरी दम सांस में काँटा गड़ा था .

    सच कहूँ या आईना ! सुन्दर रचना के लिए बधाई !

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  7. किस तरह कहता मुझे वापस बुला लो
    सारे घर से रात भर कितना लड़ा था
    बढिया है.

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  8. सटीक अभिव्यक्ति ..... शहर आ कर बड़ा आदमी बनाने की लालसा ऐसी स्थिति भी पैदा कर सकती है ।

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  9. बढ़िया - पर यह है कौन ???
    Tamasha-e-zindagi

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  10. Kitane logon kee katha hai yah. Na Ghar ka na ghatka see sthiti. Dukh ki abhiwyakti.

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  11. सब पापी पेट का सवाल है !!!!

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  12. किस तरह कहता मुझे वापस बुला लो
    सारे घर से रात भर कितना लड़ा था ..
    बुत उम्दा ... हर शेर काजवाब ... अलग के कहता हुवा ....

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  13. दर्द बयानी ! अच्छी है।

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