बेतरतीब मैं 18-जून २०१५
(१)
(२)
वक़्त बदलते देर नहीं लगती वैसे ही इंसान को बदलते ,कठिन समय में सामने वाले का व्यवहार भी कठिन हो जाता है ,जैसे -जैसे आप अपने बल पर परेशानियों से पार पाकर ऊपर उठते हो ,वही चेहरे जो एक समय मुहं छिपाते थे ,मुस्कुराते हुए नज़र आते हैं, एक बन्दर की तकलीफ पर पूरा झुण्ड एक साथ आ सकता है पर इंसान ने अपने पूर्वज से ये नहीं सीखा
(३)
सफल वर्तमान के साथ अतीत की गलियों में लौट -लौटकर जाना एक नशा सा होता है , कितनी बार सोचो नहीं जाना उतनी बार सम्मोहित से लौट लौट कर जाते हैं,उन पलों को जब आप गिरे थे,अपमानित हुए थे, आंसू पिए थे ,सब जश्न में थे और आप अकेले , आज आप जश्न में हैं तो किसी को अकेले में मत रहने देना
(४)
हाँथ में महंगा फोन ,कंधे पर महंगा पर्स आँखों पर चश्मा ,उसने वो सब बटोर लिया था जो उसको रईस और खुश दिखा सकते थे,आँखों में काजल की लकीरे गहरी करते हुए अपनी उदासी को काला करना चाहती थी काश काजल आँखों के भीतर भी लगा सकते।
बहुत स्वाभाविक, सहज बिम्ब हैं सोनल जी...
ReplyDeleteसु्न्दर.............
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in