भय
भय का किल्ला फूटा
मन के सहमें कोनें में
कांटे क्यों उग आये है
रेशम जड़े बिछोने में
क्या मेरा है जो लूटेगा
छोड़ दिया सो छूटेगा
आँखों में सपने डूब गए
हर दिन के रोने धोने में
भारी साँसे भारी जीवन
पीड़ा स्वप्न सजोने में
कांटे क्यों उग आये है
रेशम जड़े बिछोने में
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6-8-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2059 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, १०१ साल का हुआ ट्रैफिक सिग्नल - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteकांटे क्यों उग आये है
ReplyDeleteरेशम जड़े बिछोने में
भय के चलते यही होता है।
मन की पीड़ा का सुन्दर विश्लेषण रचना में |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteबढिया है...
ReplyDeleteलवली!!
ReplyDeleteJabardast
ReplyDeleteJabardast
ReplyDeleteक्या मेरा है जो लूटेगा
ReplyDeleteछोड़ दिया सो छूटेगा
कांटे क्यों उग आये है
ReplyDeleteरेशम जड़े बिछोने में
... शायद रेशम तभी वह सुरक्षित है
सुन्दर प्रस्तुति
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं
कांटे क्यों उग आये है
ReplyDeleteरेशम जड़े बिछोने में
जहाँ रेशम का बिछौना वहाँ काँटे ही उगते हैं... सभी सुख मयस्सर नहीं होता... बहुत भावपूर्ण, बधाई.
वक़्त की गिरह में बाँध के रख छोड़ा है मैंने ,,
ReplyDeleteवो हर लम्हा जो तुम बिन गुज़रता नही था...
उत्तम रचना
ReplyDeleteउत्तम रचना
ReplyDeleteशुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in
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ReplyDeleteमन की पीड़ा की सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमन की पीड़ा की सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमन की पीड़ा की सुन्दर अभिव्यक्ति।
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