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Tuesday, November 3, 2009

मैं और मेरी दुनिया



कपोल कल्पना की ये दुनिया
मुझको तो मादक लगती है
इस दुनिया की कितनी कृतियाँ
नयनों आगे तिरती है

जिसको चाहूँ जो कह डालूं
जिसको चाहूँ दास बना लूं
या फिर सिंहासन पर बैठाकर
बोलो राजतिलक कर डालूं

एक छाया को मित्र बनाकर
अपने दिल के राज सुना दूं
स्वयं अपनी प्रशंसा में फिर
एक प्रशस्ति गीत मैं गा लूं

आप बनूँ मैं स्वयं की प्रेमिका
खुद ही रूठूं खुद ही मन लूं
या अंजुरी में भर गुलाबजल
अपना मुख सुवासित कर डालूं

इस तनाव भरे जग में
क्यों खुशियों हेतु किसी का मुख देखें
आप ही अपने मित्र बने हम
खुद से प्रेम करना सीखें

4 comments:

  1. thik kaha sonal,ye vo dunia hai jisame hum apne sabase nikat hote hai.kinhi imandar kshanon mein ye sath hame apani kai kamiyan bhi bata deta hai.mera to manana hai har kisi ko khud ke paas baith kar khud ko har kon se jaroor dekhana chahiye."jo man khojo apana"na bura na bhala bas ek sachcha khoj lo.bahut badiya.

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  2. वैसे तो सब पंक्तियाँ मनभावन है ये ख़ास पसंद आई मुझे...

    आप बनूँ मैं स्वयं की प्रेमिका
    खुद ही रूठूं खुद ही मन लूं
    या अंजुरी में भर गुलाबजल
    अपना मुख सुवासित कर डालूं

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  3. sonal ji maine aapki kuch purani rachnaye dekhi sach me kamal ka likhti hai aap

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