गम में भी मुस्कुरा लेते है
हमारी सिसकियाँ जहान ना सुन पाए
इसलिए ग़ज़ल गुनगुना लेते हैं
तुझको ही मान लिया अपना खुदा हमने
तुझको कब समझा अपने से जुदा हमने
जब जी चाह करें तेरी इबादत
तेरे कंधे पर सर को झुका लेते है
माना बहुत मसरूफ हो तुम
पर अपनी तन्हाई का क्या करें हम
जब जी चाहा तुमको करीब कर लूं
तेरी तस्वीर सीने से लगा लेते हैं
तुम आज आओ ना,
ReplyDeleteहमेशा जैसे आते हो|
तन्हाई को सजाओ,
हमेशा जैसे सजाते हो|
सुन्दर कविता के लिए धन्यवाद्।
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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