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Wednesday, November 4, 2009

तुम कहाँ हो मनु

डायरी के पन्ने,जैसे जैसे पलटे वैसे वैसे लगा की आज से निकल कर अतीत में पहुँच गई ,ऐसा लगा मानो फिर से सोलह साल की किशोरी बन गई हूँ, हर दिन nai उलझन नहीं खुशियाँ और नए सपने सब कुछ कितना उत्साह भरा.....एक दिन सब बदल गया जब मनु से पहली बार मिली ,मनु मेरी कक्षा में नई थी सिमटी सी मेरे से बिलकुल विपरीत..शायद यही आकर्षण था जिसकी वजह से मैं उसके सामने जा बैठी...
कहाँ से आई हो? पहले कौन से स्कूल में थी ? कहाँ रहती हो ? स्कूल कैसे आती हो
जैसे बीस सवाल मैंने बेचारी पर एक साथ छोड़ दिए वो बस टकटकी लगाकर मुझे देखती रही फिर मुस्कुरा कर बोली "तुम नेहा हो ना सही सूना था तुम्हारे बारे में "
अब आश्चर्य में पड़ने की मेरी बारी थी नहीं लड़की जो आज ही आठवी कक्षा में आई है मुझको जानती है, वो मेरी उलझन समझ गई बोली "मेरी बुआ की बेटी दुसरे सेक्शन में है उसने बताया था कोई आये ना आये नेहा खुद बात करेगी तुझ से "
मेरी जिज्ञासा शांत कर उसकी हँसी छूट गई और मेरी हँसी भी कहाँ रुकने वाली थी ,मैं कब जानती थी ये छोटा सा परिचय अगले चार साल तक अटूट दोस्ती के बंधन में बदल जाएगा.
मनु पढाई में बहुत अच्छी थी और उसका सबसे बड़ा गुण था उसकी एकाग्रता, वो हमेशा कहती नेहा तेरी मेधा में कोई कमी नहीं है बस थोडा एकाग्र होकर पढाई किया कर......मैंने उसे अपने बारे में सब बता डाला घर से लेकर गली के नुक्कड़ वाले मकान की कहानियों तक और ओ हमेशा एक धैर्यवान श्रोता की तरह सब सुनती ......पर उसने कभी अपने बारे में बात नहीं की उसकी सारी बाते पढाई करियर से सम्बंधित होती ...हम साथ में टिफिन खाते जहाँ मेरे लंच में रोज़ कुछ अलग होता उसके टिफिन में उबले आलू और रोटी,
"तुम रोज़ रोज़ एक जैसे खाने से बोर नहीं होती " मैंने लंच के बाद हाँथ धोते हुए पूछा , सुबह-सुबह इससे ज्यादा नही बना सकती उसने बेतकल्लुफी से जवाब दिया , "तुम अपना लंच खुद पैक करती हो " प्रतिक्रया में मेरी आवाज़ कुछ ऊँचे स्वर में निकल गई ....
"मेरी माँ बीमार है तो बस दो साल से घर का सारा काम मैं खुद करती हूँ अब तो आदत पड़ गई है ,सुबह सारा काम कर के आती हूँ और वापस जाकर सारा काम करना होता है "
तुमने कभी बताया नहीं , इसी लिए तुम स्कूल में फ्री क्लास में भी पढाई करती होऔर उसने स्वीकृति में गर्दन हिला दी, उस दिन से मेरे मन में मनु के लिए प्रेम और गहरा हो गया मैं और मनु हमउम्र होने के बाद भी मनो दुनिया के अलग अलग छोर पर रह रहे हो ,जहाँ मुझे सारी सुविधाए मिली वही मनु घर और पढाई दोनों कितनी अच्छी तरह से संभाल रही थी....
समय बीतते देर कहाँ लगती है दोनों साथ में पढ़ते, एक अध्याय वो पढ़ती मुझे समझाती एक मैं पढ़ कर उसको इसी तरह हमने बारहवी की परिक्षा दे दी...स्कूल के बाद मिलने का वादा करके हम अलग हो गए मैं अपने ननिहाल चली गई,
रायपुर से कई बार मनु से संपर्क करने की कोशिश की पर बात नहीं हो पाई, मैंने सोचा घर जाकर मिल लूंगी, दो माह बाद उसी उत्कंठा से मैं उसकी घर पहुँच गई ...उसके घर पर बड़ा सा ताला लटका हुआ था, काफी देर तक कुछ समझ नहीं आया तो मैंने पड़ोस के घर की घंटी बजा दी दरवाजा एक बुजुर्ग अंकल ने खोला " मनु का परिवार क्या कहीं बाहर गया हुआ है " मैंने बेचैनी से पूछा, उन्होंने जो उत्तर दिया उसने तो मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन खींच ली कितना कुछ घट गया था मनु की ज़िन्दगी में पिछले दो माह में .......
लम्बी बीमारी के बाद मनु के माँ ने प्राण छोड़ दिए थे, घर वालों नें मनु पर दवाब बना कर उसका विवाह करवा दिया ,और उसके पिता शहर छोड़ कर जा चुके थे.
सब कहते है दुनिया बहुत बड़ी है आज महसूस हो रहा था ....मेरी सबसे प्रिय सहेली के जीवन में तूफ़ान आया था और मैं उससे पूरी तरह अनजान रही.
आज इतने साल बाद भी भीड़ भरे चौराहों से गुजरते हुए निगाह अचानक ठहर जाती है शायद कहीं मनु मिल जाए , मैं नहीं जानती वो कहाँ है कैसी है... बस एक बार मिल जाए.....पर हताशा ही हाँथ लगी ...
तुम कहाँ हो मनु

5 comments:

  1. वैसी मुहब्बत अब कहीं नहीं मिलती, इस क़यामत की भीड़ में मनु का चेहरा ही सुकून दे सकता है पर सब खो गए हैं लाल ओ गुल....

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  2. मन को झकझोर देने वाली कहानी।

    सोनल जी, बधाई स्‍वीकारें एक सार्थक रचना के लिए।

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    ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
    नाइट शिफ्ट की कीमत..

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  3. कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  4. अच्छी लघु कथा...

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