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Thursday, November 19, 2009

आकर्षण

ये तन ऐसा है जो मन के हिसाब से चलता है पर दिमाग की बिलकुल नहीं सुनता, आज मेरा मन पता नहीं क्या क्या सोच रहा है शादी के आठ साल बाद आज ये इतना बेचैन क्यों है ,कितनी खुशहाल ज़िन्दगी चल रही है घर परिवार भरा पूरा है, ऐसा कुछ नहीं जिसकी कमी हो ,प्यार करने वाला पति दो प्यारे प्यारे बच्चे, बचा समय में घर पर पास के बच्चों को पेंटिंग और क्राफ्ट सिखा लेती हूँ, पूरे हफ्ते सब अपने में व्यस्त रहते है और रविवार को सारा दिन मस्ती...मेरी ज़िन्दगी ऐसी ही चलती रहती अगर मेरी मुलाक़ात इनके बचपन के दोस्त वैभव से नहीं होती....



वैभव और उसकी पत्नी मेधा ट्रान्सफर होकर लखनऊ आये तो उन्होंने इनसे संपर्क किया , अपने बचपन के दोस्त को करीब पाकर ये भी बहुत खुश थे, तीन दिनों में उनकी शिफ्टिंग और सब कुछ सेट हो गया, दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा था, हमारा उनसे मिलना अक्सर होने लगा,बच्चों का मन भी उनके बेटे विशाल में रम गया......


मैंने और मेधा ने लगभग सब कुछ बाँट लिया अपनी रुचियाँ अपने सपने ,अपने विचार वैभव और ये भी हमारी बातों में बहुत रस लेते...दिन बीते होली आ गई, हम सारे होली की प्लानिंग करने लगे बच्चे तो हद से ज्यादा उत्साहित थे ,हमारे घर में होली का कार्यक्रम रखा गया , सुबह सुबह सब एक दुसरे के रंग लगाने में लग गए,मैंने मेधा को रंग लगाया और होली की बधाई दी,फिर मैं वैभव को रंग लगाने बड़ी और मैंने उनके गालों पर रंग मॉल दिया फिर क्या था वैभव और इन्होने मिलकर मुझे बुरी तरह से रंग लगाया..रंग लगवाते हुए अचानक मुझे वैभव का स्पर्श कुछ अजीब सा लगने लगा, मैं सहज नहीं हो पा रही थी मैंने वैभव की तरफ देखा तो उसकी आँखों में कुछ अजीब सी चमक थी......तभी बच्चे आ गए और हमारा रंग लगाने का कार्यक्रम ख़त्म हो गया...


होली तो चली गई पर अकेले में मुझे वो स्पर्श अचानक याद आता और मेरे मन में वैसी ही गुदगुदी होती जैसी शायद इनके पहले स्पर्श से हुई थी...वैभव अब भी आते पर मैं अब उतनी सहज नहीं रह पाती...उसकी आँखों में मेरे लिए आकर्षण साफ़ दिखता मेरे जन्मदिन पर मुझे हाँथ मिलाकर विश करते समय उसने मेरा हाँथ ज़रा जोर से दबा दिया और सर से पाँव तक मैं सिहर गई..


मेरे होंठों पर एक रहस्यमयी सी मुस्कान हमेशा रहने लगी, हमारी विवाहित ज़िन्दगी में जो ठंडापन आ रहा था वो कुछ कम होने लगा..मैं जब इनको स्पर्श करती या ये मुझको बाँहों में लेते तो मेरे मन में अचानक वैभव की छवि आ जाती और मैं और जोश के साथ इनसे लिपट जाती, ये मुझे छेड़ते क्या बात है आजकल तुम बदली बदली सी लगने लगी हो...मैं अपने मन में भी वैभव के लिए आकर्षण महसूस कर रही थी..दिमाग कह रहा था "क्यों अपना बसाया परिवार उजाड़ रही है " पर दिल ओ सपने बुन रहा था "इसमें बुराई क्या है किसी को मैंने बताया थोड़े ही है".........


मन हमेशा से ऐसा पाने को लालायित रहता है जो वर्जित हो मैंने कितनी बार कल्पना में अपने को वैभव की बाहों में देख लिया था और मन का चोर कहता था अगर ये सच में हो गया तो कैसा रहेगा,क्या वैभव भी ऐसा ही सोचते है मेरे बारे में ....


क्रिसमस की छुटियों आ गई और हमदोनो परिवारों नें मनाली जानें का कार्यक्रम बना लिया...सच कहूं इनके साथ जाने से ज्यादा मेरा मन वैभव के पास होने के एहसास से खुश था पैतीस साल की उम्र में मुझ में सोलह साल की लड़की सा अल्हडपन आ गया था,सारे रास्ते हम हंसी मज़ाक करते गए बीच बीच में वैभव मुझपर एक प्यार भरी निगाह डाल देता,...दोनों शायद अपने अपने दिल के हांथों मजबूर हो रहे थे, और इस सब में ये भूल बैठे थे की हमारे साथ हमारे जीवन साथी भी हैं ,जो शायद इस बदलाव को महसूस कर रहे थे....


मेधा बहुत समझदार थी, एक स्त्री होने की वजह से उसकी छठी इन्द्रिय ज्यादा सक्रिय थी, शाम को ये और वैभव जब बच्चों को झूले पर ले गए तो मैं और मेधा अकेले बातें करने लगे,


मेधा बोली " नीतू बहुत ठण्ड हो रही है इससे अच्छा हम लखनऊ में ही रहते "


मैंने उसकी बात को मज़ाक में लेकर बोला "क्यों क्या मज़ा नहीं आ रहा ..इतना अच्छा मौसम इतना सुकून मेरा तो यहाँ से जाने का मन ही नहीं कर रहा लगता है बस समय यहीं रुक जाए "


"यही अंतर होता है नीतू किसी को एक एक पल भारी सा लगता है और किसी के लिए समय के पंख लग जाते है " मेधा ने दार्शनिक से संदाज़ में बोला


"तेरे मन में क्या है मुझको तो बता सकती है " मैंने अपने मन के चोर को दबा कर पूछा


"नीतू मैं थोड़े समय से वैभव में बदलाव महसूस कर रही हूँ, मेरा भ्रम भी हो सकता है,मुझे कभी कभी लगता है जैसे ये मेरे साथ होकर भी एरे साथ नहीं है " मेधा के गेहुएं चेहरे पर चिंता की लकीर खीच गई


मेरा चेहरा फक पड़ गया ऐसा लगा बीच बाज़ार में निर्वस्त्र हो गई हूँ ,अबी तक दिमाग की बातों को दिल सामने आने नहीं दे रहा था पर अब दिमाग दिल पर हावी होने लगा " अगर मेधा नें वैभव में परिवर्तन महसूस किया है तो इन्होने भी तो महसूस किया होगा " मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी की मैं मेधा से निगाह मिलाऊं .


"मैडम होटल चलें बहुत थक गया हूँ " सामने से इन्होने मुस्कुराते हुए कहा "तुमको क्या हुआ " इन्होने मेरा उतरा चेहरा देखकर पूछा "


"मैं भी बहुत थक गई हूँ " मैंने सकपका कर जवाब दिया


मयंक सो गए पर मेरी आँखों से नींद तो कोसों दूर थी "मैं क्या करने जा रही थी ,अपना पति ,अपने बच्चे अपनी दोस्ती सब कुछ इतने सारे रिश्ते एक पल के आकर्षण पर दांव पर लगा रही थी " मेरी आँखों से आंसू बह निकले और मैंने अपने पास लेते हुए मयंक को देखा जो बच्चों जैसी निश्तित्ता के साथ सोये हुए थे अचानक मैं माक से लिपट गई ,मयंक नें मुझे रजाई में खीच लिया और मैं उनके सीने से लग कर सो गई .....


सुबह जब आँख खुली तो मन हल्का हो चुका था आसमान के साथ मन से भी बादल छंट चुके थे, मुझे सुकून था मैंने अभी कुछ खोया नहीं था अब मुझे वैभव को भी उस आकर्षण से बाहर निकालना था जिसके चलते हम दोनों अपने रिश्तों में ज़हर घोलने चले थे....


"आज स्कीइंग करने चलते है " वैभव नें मेरी तरफ देखते हुए कहाँ बच्चे भी हाँ में हाँ मिलाने लगे


"अगर आप लोगों को प्रॉब्लम ना हो आप लोग बच्चों को लेकर चले जाओ, आज हमारा मूड होटल में ही रहने का है" मैंने रोमांटिक अंदाज़ में मयंक के गले में बाहें डालते हुए कहा.


"आप अपना सेकंड हनीमून मनाइए बच्चे हमारे साथ चले जायेंगे, मयंक आज नीतू मैडम मूड में है ज़रा संभल कर " मेधा ने मुस्कराते हुए अपनी दाई आँख दबा दी...


मयंक,मेरे और मेधा के ठहाके गूँज उठे और शायद वैभव भी मेरा इशारा समझ गया और मुस्कुरा दिया...






8 comments:

  1. सोनल, कहानी का शिल्प और कथ्य सधा हुआ और आश्चर्यजनक है. मुझे नहीं लगता कि आपने कभी प्रोफेशनल लिखा होगा, अगर ये सच है तो मेरी बात मानिये लिखना आरंभ कीजिये. भाषा समृद्ध है और दृश्यों की बुनावट सजीव. मैंने जब पढ़ना आरम्भ किया तो नर्वस था फिर प्रवाह बहा ले गया अपने साथ. कहानी सच के बहुत करीब उतर आई है. अब ब्लॉग का नाम बदल लो, सोनल पर्याप्त है. कविता बहुत लोग करते हैं पर ब्लॉग पर कहानियां लिखने वाले कम ही हैं मुझे तो दो-तीन ही याद आते हैं नीरा, वंदना अवस्थी दुबे और संजय व्यास. इनको भी देखना, सब मेरे ब्लॉग रोल में हैं. एक बार फिर से बधाई.

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  3. किशोर जी आपका सुझाव मान रही हूँ,आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. Very impressive. Bahut kasi huyi bunawat hai. Ek suggestion hai...write stories/novels with strong, bold and may be controversial female characters, u will be a runaway hit.
    Is story aur Harsingar... mein gazab ka kathya shilp dikhai deta hai.
    (Comment hindi mein kaise likht hain?)

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  5. yess dear itz amazing tat how nicely u hv painted a woman's heart..vry nice dear...m proud seriously..keep it up nd reely u shld write professionally..at least som short stories ...

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  6. बहुत सुन्दर कहानी है। कि्शोर चौधरी की बात से सहमत। इसे दुबारा पोस्ट करें बहुतेरे पाठक नहीं पढ़े होंगे वे पढ़ लेंगे।

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  7. मन हमेशा से ऐसा पाने को लालायित रहता है जो वर्जित हो
    सही है. सुन्दर कहानी. किशोर जी और अनूप जी से सहमत. दुबारा पोस्ट करें कहानी.

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