दिल को निचोड़ कर दर्द सुखा दिया
दो बूँद टपकी थी पोछा लगा दिया
शिकन बहुत थी करवटों की चादर पर
जोश की इस्त्री से उसको मिटा दिया
नमक की लकीरें पलकों के मुहाने पे
भाप की गर्मी से उड़ा दिया
मुए अरमान चिपक गए कलेजे से
आह भरी और सब पिघला दिया
उनका आसरा था वो आये भी नहीं
हमने भी हमसफ़र को अजनबी बना दिया
कुछ लकीरों ने कुछ हालात ने तय किया
अच्छे खासे इंसान को आशिक बना दिया
बहुत बहुत बहुत मोहक शब्दों से बुनी कविता..बहुत अच्छा लगा पढ़ना.
ReplyDeleteहमने भी हमसफ़र को अजनबी बना दिया
ReplyDeleteकुछ लकीरों ने कुछ हालात ने तय किया
अच्छे खासे इंसान को आशिक बना दिया
वाह ..
क्या बढ़िया लिखा है सोनल जी... अच्छे खासे इंसान को आशिक बना दिया.....
शुभान अल्लाह
ReplyDeleteदिल को निचोड़ कर दर्द सुखा दिया
ReplyDeleteदो बूँद टपकी थी पोछा लगा दिया
बेहद खूबसूरत कविता... बहुत दम है कविता में भी और आप में भी :-)
रोज की जिन्दगी से मन के भाव व्यक्त करती बड़ी ही सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबहुत खूब ........बढ़िया लिखा है सोनल जी ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteदो बूँद टपकी थी पोछा लगा दिया
ReplyDeletenice
दिल को निचोड़ कर दर्द सुखा दिया
ReplyDeleteदो बूँद टपकी थी पोछा लगा दिया
शिकन बहुत थी करवटों की चादर पर
जोश की इस्त्री से उसको मिटा दिया
नमक की लकीरें पलकों के मुहाने पे
भाप की गर्मी से उड़ा दिया
मुए अरमान चिपक गए कलेजे से
आह भरी और सब पिघला दिया
उनका आसरा था वो आये भी नहीं
हमने भी हमसफ़र को अजनबी बना दिया
कुछ लकीरों ने कुछ हालात ने तय किया
अच्छे खासे इंसान को आशिक बना दिया
mujhe samjh nhi arha tha ki kon si line sab se achi hai
so puri kavita hi uttar di
ek ek line iski behad dard bhari aur khubsoorti se likhi gai hai
नमक की लकीरें पलकों के मुहाने पे
ReplyDeleteभाप की गर्मी से उड़ा दिया
bahut khub ....
कब चाह थी की मुझे यह चाँद मिले ,आसमान मिले
बस एक तमन्ना रही की मुझे मेरे सपनो का जहान मिले
दो बूँद टपकी थी पोछा लगा दिया
ReplyDeleteशिकन बहुत थी करवटों की चादर पर
जोश की इस्त्री से उसको मिटा दिया
amazing just amazing
ब्लॉग सही, डायरी ही सही,
ReplyDeleteवो नहीं तो शायरी ही सही ..
बढ़िया शब्द चयन और भाव्यक्ति ...
waah sonal ...shbdon ki kya karigiri ki hai..too gud!
ReplyDeleteaap kavita lekhan memahir hai .......bahut achchhi likhti hai aap........aise hi likhte rahiye.......shubhakamnaye
ReplyDeleteनमक की लकीरें पलकों के मुहाने पे
ReplyDeleteभाप की गर्मी से उड़ा दिया
बहुत खूबसूरत नज़्म ....एक एक शब्द मन में उतरता हुआ ..
उत्तम अभिव्यक्ति है भावों की ,अच्छी रचना ।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है………………गज़ब के भाव भरे हैं।
ReplyDeleteवाह वाह सोनल जी , बहुत ही कमाल का लिखा है आपने ....सच में ही खूबसूरत भाव निकल कर आए हैं । शुभकामनाएं , गणेश चतुर्थी की बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको
ReplyDeleteबिलकुल नए बिम्ब के सहारे, अनोखी बात कही है आपने... और इंसान और आशिक़ का भेद तो आज ही समझ आया!! बहुत अच्छे!!
ReplyDeleteaap bahot atchha likhti hai, if u free so visit my blog one time http://www.onlylove-love.blogspot.com
ReplyDeletenice poem...nice words......congrats!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट!
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा, “मनोज” पर, मनोज कुमार की प्रस्तुति पढिए!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
bahoot khoob..
ReplyDeletehttp://bannedarea.blogspot.com/
http://asilentsilence.blogspot.com/
नमक की लकीरें पलकों के मुहाने पे
ReplyDeleteभाप की गर्मी से उड़ा दिया
मुए अरमान चिपक गए कलेजे से
आह भरी और सब पिघला दिया
wahh bahut khoob ... ye kuch alag aatmiyta liye lagi !!
JAI HO MANGALMAY HO
बहुत खूब ... इतना कुछ हो जाए तो इंसान आशिक तो बन ही जाता है ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है| एक एक शब्द मन में उतरता हुआ|
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना - और पंक्तियाँ तो बेमिशाल
ReplyDelete"मुए अरमान चिपक गए कलेजे से
आह भरी और सब पिघला दिया"
kuch ek panktiyan achhi hain sonal ji par ap kelevel se zara kam rah gayi rachna ...aaj kal fursat kam lag rahi hai blogs padh paane kee isliye der ho gayi aane me ...maafi chahunga .. :)
ReplyDeleteachha hai ..
ReplyDelete....बढ़िया लिखा है सोनल जी ! शुभकामनाएं
ReplyDeleteकब किसने सोचा होगा कि श्रृंगार रस का इतना सुंदर प्रयोग भी हो सकता है.
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