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Tuesday, September 21, 2010

क्रमश: आगे क्या ?

"अरे काका सठियाय गए हो का ? तनी आपन भेस तो देखा " लल्लन ने चौकते हुए कहा,
 "अब इ ससुरा लड़का लोग चैन से रहने भी नहीं देत है आप से मतलब रखे तो ठीक " मन में बडबडाते हुए बिसेसर काका बोले.
"का हुई गवा " गाँव के सबसे बड़े ठलुआ और बिसेसर के हमउम्र निहाल चाचा ने हुक्का गुदगुदाते हुए पूछा,

"तनी काका का भेस तो देखा ,ज़िन्दगी भर सूती कुरता और धोती में निकाल दीन अब साठ के हों को है तो पालिस्टर की शर्ट पैंट पहिन के घूम रहे हैं ".

"साठ के हुई हैं तोहार बाप, हमार तो अभे पचपन भी पूरे नहीं हुए हैं " बिसेसर बाबु तिलमिला गए और जलती निगाओ से लल्लन को देखा तो मुह में खैनी दाबे मुस्कुरा रहा था.

"अरे बिसेसर तोहार तो रंगे दूसरो लग रहो हैं " अब निहाल की भी हसी छुट गई

"आज भोर में ना जाने कौन मनहूस का चेहरा देख लिए थे जो ,जे मनहूस सामने पड़ गए अब ससुर के नाती सामने से हट भी नहीं रहे है , मिस जी इंतज़ार कर रही होंगी " बिसेसर जी के चेहरे से बेचैनी साफ़ झलक रही थी

"कहीं जाय को देर हो रही हो तो हम अपनी फटफटिया पर अभई छोड़ देते है " लल्लन ने जले पर नमक डालते हुए कहा.पर बिसेसर ने अनसुना कर अपने कदम तेजी से प्रौढ़ शिक्षा केंद्र की तरफ बढा दिए .

दो महीने से बिसेसर बाबु स्कूल पढने जा रहे थे और स्कूल में पढाई से ज्यादा उनका ध्यान मिस जी में लगने लगा था,
बड़े भैया,भाभी के गुजरने के बाद उन्होंने दोनों बच्चों की ज़िम्मेदारी अपने सर पर उठा ली,उनको शहर भेजा उनकी पढाई का इन्तेजाम और सारी व्यवस्था करने में उम्र इतनी तेजी से निकल गई शादी के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिला,बच्चे अपने में व्यस्त हो गए, काम सँभालने के लिए नौकर चाकर थे ही.
जब जिम्मेदारियां ख़तम हुई तो बिसेसर बाबु को अपने अकेले होने का एहसास सालने लगा, तो बच्चों ने जिद की आप पढ़ लिख लो तो आप का समय भी कटेगा और काम सँभालने में आसानी हो जायेगी.
मिस जी कितनी समझदार हैं कितना आसानी से हमार परेसानी समझ जाती है ,कितना बेर एक प्रश्न पुछो कबही नराज़ नहीं होती, कौनुह अच्छे परिवार से हुई हैं बड़ी संस्कार वाली है, जे गाँव-देहात की लुगाइन की तरह नहीं...कपडा भी सलीका से पहिनती है....मन में सोचते हुए बिसेसर स्कूल पहुँच गए,
क्रमश:
"इस कहानी के लिए मुझे इससे अच्छा शीर्षक नहीं मिला,यहाँ तक तो लिख गई आगे क्या करूँ भ्रमित हूँ ,आप भी अंत लिख डालिए ,मैं अकेली क्यों परेशान हूँ ?

10 comments:

  1. सीखने और पढ़ने की भला क्या उम्र..बिसेसर बाबू सही जा रहे हैं और तुम काहे उनकी उमर पर नजर लगा रही हो..सही ठासे:

    "साठ के हुई हैं तोहार बाप, हमार तो अभे पचपन भी पूरे नहीं हुए हैं "

    हा हा!!

    बहुत बेहतरीन...अंत हम लिख देते..मगर आत्मकथा लिखने का अभी मूड नहीं पक रहा सोनल... :)

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  2. जीवन पर्यन्त सीखने का मन बनाये रखना चाहिये।

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  3. :) कहानी अभी अधूरी है , पूरी करना कोई मजबूरी नहीं

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  4. :) shuruaat to tumne kar di...dekhte hai ant kab tak sujhta hai :)

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  5. कथा बुनने का आपका शिल्प सधा हुआ है। इसमें कोई अंत पठकों को न थमा कर आपने एक मद्धिम आंच देता हुआ विचार नियमक दे दिया है, और पाठक के हिस्से एक बेचैनी छोड़ देना इस शिल्प में लिखी इस कहानी की ताक़त है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    देसिल बयना-गयी बात बहू के हाथ, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!

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  6. sundar bahut sundar ....bhasha ka put kamal ka hai ...!! badhai


    JAI HO MANGALMAY HO

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  7. दिलचस्प और सुन्दर प्रारम्भ है ..

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  8. good one...

    lets all discuss the end.. any clues from ur side ...

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  9. कहानी दिलचस्प होती जा रही है .....

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