इतनी नजदीकी अच्छी नहीं
चलो कुछ खफा हो जाती हूँ
अपना ही मज़ा है बेचैन करने का
चलो मैं बे-वफ़ा हो जाती हूँ
तेरे सामने आऊं भी नहीं
तुझे महसूस हर लम्हा रहूँ
मांगे तू भी साथ मेरा शिद्दत से
चलो मैं खुदा सी हो जाती हूँ
कब तक नशीली रात सी रहूँ
होंठो पे छिपी बात सी रहूँ
जान जाए ये ज़माना मुझको
चलो चटख सुबह सी हो जाती हूँ
जितना जानो उतना उलझ जाओ
इतना उलझो ना सुलझ पाओ
ना जाने किस वक्त ज़रुरत पड़े
चलो मैं दुआ सी हो जाती हूँ
कभी देखो तो अनजान लगूं
कभी दिल की मेहमान लगूं
एक झलक देख लो तो दीवाने हो जाओ
चलो मैं उस अदा सी हो जाती हूँ
nice to be here!
ReplyDeletekeep writing!.....all the best
regards,
sanjay
very nice ....really nice
ReplyDeleteवाह जी क्या बात है...हर सोच में अदा है आपकी तो.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.
bahut pyaree shoukh chanchal see kavita.....
ReplyDeleteकब तक नशीली रात सी रहूँ
ReplyDeleteहोंठो पे छिपी बात सी रहूँ
जान जाए ये ज़माना मुझको
चलो चटख सुबह सी हो जाती हूँ
वाह ..खूब चटख रंग बिखेरे हैं ...सुन्दर ..
ये अदा बड़ी अच्छी है ...चलो आशिक सा हो जाता हूं
ReplyDeleteदिल को छू गई आपकी ये रचना...बेहतरीन
बेहद उम्दा रचना ! बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteदिल को छू गई आपकी ये रचना...बेहतरीन
ReplyDeleteबड़ी दमदार अठखेलियाँ आपके प्रेमाभिव्यक्ति की।
ReplyDeletebahut khub ...चलो चटख सुबह सी हो जाती हूँ
ReplyDeleteक्या बात है..गजब!
ReplyDeletebahut hi khubsurat...
ReplyDeleteबहुत बार आपकी रचनाएँ देखी, पढ़ीं पर टिप्पणी नहीं कर पाया, इस बार बिना किये नहीं जाऊँगा
ReplyDeleteचलो मैं उस अदा सी हो जाती हूँ
इस आखिरी पंक्ति में सब कुछ कह दिया है आपने. सब कुछ हो जाना चाहती है वह उसके प्यार में.... बहुत ही सुन्दर
मेरे ब्लॉग पर भी पधारियेगा.
manojkhatrijaipur.blogspot.com
jab bhi padhti hoon
ReplyDeletetumhari ishqkiya nazm
bas main bhi
'waah waah' si ho jati hoon :)
keep going!!
इतने सलीके से,
ReplyDeleteक़त्ल करना सीखे आपसे कोई,
गोया नज्में कह रही हो,
३०२ दफा हो जाती हूँ !
लिखते रहिये ...
सोनल बहुत खूब । दिल को छू गयी रचना। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteकब तक नशीली रात सी रहूँ
ReplyDeleteहोंठो पे छिपी बात सी रहूँ
जान जाए ये ज़माना मुझको
चलो चटख सुबह सी हो जाती हूँ
वाह..क्या पंक्तियां है...सुंदर अभिव्यक्ति
बेहद उम्दा रचना ! बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteइतनी नजदीकी अच्छी नहीं
ReplyDeleteचलो कुछ खफा हो जाती हूँ
अपना ही मज़ा है बेचैन करने का
चलो मैं बे-वफ़ा हो जाती हूँ
khatarnak irade rakhti hain aap to .. :D
badhiya rachna hai
शरारत करना कोई आपसे सीखे। तरसा तरसा के प्यार करती हैं आप।
ReplyDeleteवाह ..
ReplyDeleteबहुत खूब !!
माशूक़ तो वैसे भी आशिक़ का ख़ुदा होती है, और रात भी, भोर भी, और दिखाती है वो अदा भी जो दीवाना बना दे, और बेवफ़ाई तो सचमुच दीवाना कर देती है..लिहाजा ये ग़ज़ब न करना आप. वर्ना कहीं ख़ुद ही रास्तों पे न चिल्लाना पड़े कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को..
ReplyDeleteअच्छी कविता, हर बार की तरह!!
तेरे सामने आऊं भी नहीं
ReplyDeleteतुझे महसूस हर लम्हा रहूँ
महसूस तो उसी को किया जा सकता है जो सामने न हो. महसूसने की हद तक हो जाने की सुन्दर तमन्ना है इस सुन्दर रचना में.
अपना ही मज़ा है बेचैन करने का
ReplyDeleteबहुत खूब!
आप आजकल है कहां
ReplyDeleteखैर... शायद वयस्तता चल रही हो
हां... रचना अच्छी है हमेशा की तरह बोले तो भन्नाट और झकास
सही कहा आपने ..आप कुछ भी हो सकती हो
ReplyDeleteकविता का प्रवाह बहुत सुन्दर रहा और भाव बहुत रंग बिरंगे
is rachna ke bhav bahut achchhe hain Sonal ji... tippani kiye bina nahi raha gaya.
ReplyDeletebadhai sweekaren
वाह...बहुत खूब !!!
ReplyDeleteसचमुच इसी से तो प्रेम और अनुपम लगने लगता है...
बहुत मोहक भावाभिव्यक्ति...
बहुत ही सुन्दर शब्द लिये हुये भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteचर्चा मंच का आभार इस प्रस्तुति को पढ़वाने के लिये।
Bahut sunder aur dil ko choo lene wali ada bhari kavita. bahut badhai
ReplyDeleteअच्छी कविता लिखते रहिये ।
ReplyDeleteजितना जानो उतना उलझ जाओ
ReplyDeleteइतना उलझो ना सुलझ पाओ
ना जाने किस वक्त ज़रुरत पड़े
चलो मैं दुआ सी हो जाती हूँ
सुन्दर पंक्तियाँ हैं :)
कभी देखो तो अनजान लगूं
ReplyDeleteकभी दिल की मेहमान लगूं
एक झलक देख लो तो दीवाने हो जाओ
चलो मैं उस अदा सी हो जाती हूँ
वाह ... क्या लाजवाब सी अदा है आपकी ... ये रचना भी तो एक तरह की अदा ही है .... बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
जितना जानो उतना उलझ जाओ
ReplyDeleteइतना उलझो ना सुलझ पाओ
ना जाने किस वक्त ज़रुरत पड़े
चलो मैं दुआ सी हो जाती हूँ
itni khubssorat line ki me to bewafa hi ho gaya
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ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर इस बार थोडा सा बरगद..
इसकी छाँव में आप भी पधारें....
बहुत सुन्दर..............
ReplyDeleteSonal Ji,
ReplyDeleteAchcha khayal hai ruthne ka aur phir khud hi suljaane ka ..... Badiyaa hai
कभी देखो तो अनजान लगूं
कभी दिल की मेहमान लगूं
एक झलक देख लो तो दीवाने हो जाओ
चलो मैं उस अदा सी हो जाती हूँ
Surinder Ratti
Mumbai
कभी देखो तो अनजान लगूं
ReplyDeleteकभी दिल की मेहमान लगूं
एक झलक देख लो तो दीवाने हो जाओ
चलो मैं उस अदा सी हो जाती हूँ .... bahut roomaanee !
bohot bohot bohot cute si nazm hai, ekdum pyaari si...:)
ReplyDeleteye woh hai jo khud banti hai andar se aati hai..great one!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना हैं ।
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