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Wednesday, November 10, 2010

मैं आ रही हूँ

Jaisalmer

कुछ लम्हे चुराकर
रेत में दबाने जा रही हूँ
रेत में डूबकर
ज़िन्दगी पाने जा रही हूँ
बवंडर यादों का
समंदर वादों का
सुनहरी शाम को
गुनगुनाने जा रही हूँ
हवा ने बुलाया है
नया रुख दिखाया है
सीमेंट में घुट ना जाए
सपनो को धुप
दिखाने जा रही हूँ
सुना है तन्हाई भी
गीत गाती है वहां
समय की घडी
रुक जाती है वहां
दफ़न होकर भी
मुक्त नहीं होते
उन सायों में
समाने जा रही हूँ
 

मैं आ रही हूँ

26 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना.

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  2. बहुत खूब्…………भावभीनी रचना।

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  3. सोनल जी, बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई।

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  4. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  5. दफन होकर भी
    मुक्त नहीं होते
    उन सायों में
    समाने जा रही हूं...

    सुंदर रचना।

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  6. बहुत गहरी बात कह दी आपने।

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  7. कुछ लम्हे चुराकर
    रेत में दबाने जा रही हूँ ... ek paudha laga dena amaltaas ka ... un lamhon ke lambe kad ke liye

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  8. ise apne parichay aur tasweer ke saath bhejiye rasprabha@gmail.com per

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  9. very nice poem...loved it...
    keep writing and visiting my posts too...

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  10. अपने सायों में सिमट जाने का भाव बड़ा सुकून भरा होता है।

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  11. वाह बहुत सुन्दर,कविता। कुछ लम्हे चुराकर रेत में दबाने की बात--बहुत सुन्दर्।
    पैमाने में व्यग्र होते सोडे के बुलबुले!

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  12. बवंडर यादों का
    समंदर वादों का
    सुनहरी शाम को
    गुनगुनाने जा रही हूँ

    well composed, truely said

    congrate

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  13. कुछ लम्हे चुराकर रेत में दबाने जा रही हूं ...
    वाह !

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  14. bahut gahari baat...sundar rachna.

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  15. अत्यंत भावपूर्ण रचना
    सुन्दर

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  16. समय की घडी
    रुक जाती है वहां
    दफ़न होकर भी
    मुक्त नहीं होते
    अंतर्मन को प्रभावित करती पंक्तियाँ ....सुंदर पोस्ट ..शुभकामनायें

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  17. दफ़न होकर भी
    मुक्त नहीं होते
    उन सायों में
    समाने जा रही हूँ
    ...प्रभावित करती हैं ये पंक्तियाँ...सुन्दर कविता..बधाई.



    _________________
    'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...

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  18. "सीमेंट में घुट ना जाए
    सपनो को धूप
    दिखाने जा रही हूँ "
    अच्छा प्रयोग है.

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  19. aapne bahut khubsurti se aane ka wada to kar diya, kab aa rahi hai aap.

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  20. Bahut khubsurat .................

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  21. kya khoob likha hai ji

    padhkar man na jaane kaha chala gaya

    bahut sundar rachna

    badhayi

    vijay
    kavitao ke man se ...
    pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com

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