उसे प्यार नहीं था पर कर रही थी कोशिश प्यार करने की क्योंकि
यही रिवाज़ है, हर लड़की को चाहना होता है अपने होने वाले पति को, और और
समझाना होता है यही है वो राजकुमार जिसका इंतज़ार करती आ रही है सदियों
से,जब नख से शिख तक माप तौल चल रही होती है लड़की की, उसके पिता के बजट की,
तब भी उसे अपने होने वाले पति में ढूंढना होता है महान आदर्श पुरुष.जो हर
तरह से उसके योग्य है ,उसके माँ पिता तो बस माध्यम है चुना तो स्रष्टि ने
है ना उसके लिए, अपने सपनो के खांचे में फिट करके देखती है नहीं होता ,तो
अटाने की कोशिश करती है वैसे ही जैसे कोई नया सूट जो एक साइज़ छोटा हो उसे
शरीर पर चढ़ा लिया जाए
...क्योंकि बस वही है उसके पास वही सर्वश्रेष्ट है ,ये कोशिश जिसे अडजस्ट करना कहते है चलती रहती है ताउम्र, कुछ खुद को घोल देती है रोज़ थोडा थोडा और सुकून से सांस लेती है अब घुटन नहीं होती पर अपने को खोने का दर्द और टीस सालती है हमेशा जिसे एक नकली मुस्कान से ढका करती है ,
जो नहीं घुल पाती उनका शरीर झाँकने लगता है उधडी सिलाइयों से और पड़ते है गहरे निशान, देखने वाले निगाहों से और इशारों से कोंचते है ,उधडे रिश्तों को ,और वो बिता देती है पूरी उम्र घुटन में ,उनके भीतर की उमस उन्हें ही भिगोती है पसीजती है ,सूखती है पर उतार नहीं पाती वो रिश्ते कैसे सामना करेंगी दुनिया का रिश्तों की पैरहन के बिना निर्वस्त्र रह जायेंगी,
कुछ के पास वो पैरहन भी नहीं होता बेलिबास होती है क्योंकि उनका रिश्ता किसी और को ढक रहा होता है और वो सोचती है कोई नहीं देख रहा ,मांग के सिन्दूर को गहरा करती है ,मंगलसूत्र कुछ और बड़ा, आत्मविश्वास का पाउडर चेहरे पर कुछ ज्यादा जिससे चेहरा सफ़ेद दिखे ,पर चेहरा सफ़ेद दिखने की कोशिश में पीला दिखता है रक्तहीन, वे दिखाती है मेरे पास सब है ,उस राजा की तरह जो हवा का लिबास ओढ़े सड़क पर निकल गया था ...खुद को मुगालते में रखती है,
एक नई कौम अंकुरित हुई है हाल में उसी मिट्टी से,संस्कारों की खाद से सींची हुई, जिसके चेहरे पर आत्मविश्वास थोपा हुआ नहीं है,जड़े ज्यादा गहरी है, प्यार करने की कोशिश की बजाय प्यार करने में यकीन करती है,अडजस्ट करने के नाम पर इनकार करती है एक नाप बड़े या छोटे रिश्तो में उतरने के लिए या खुद चुनती है अपने नाप जिससे सांस ले सके या चुने हुए रिश्तों को परखती है, किसी भी घुटन,उमस को झेलने की बजाय आज़ाद कर लेती है खुद को, रिवाज़ खुद गढ़ने लगी है,रिश्तो के लिबास के बिना भी खुश रहती है क्योंकि वो जान गई है निर्वस्त्र रहना शर्म की बात नहीं है ईश्वर ने रचा है आपको एक खूबसूरत जीवन दिया है ,उसे उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......
...क्योंकि बस वही है उसके पास वही सर्वश्रेष्ट है ,ये कोशिश जिसे अडजस्ट करना कहते है चलती रहती है ताउम्र, कुछ खुद को घोल देती है रोज़ थोडा थोडा और सुकून से सांस लेती है अब घुटन नहीं होती पर अपने को खोने का दर्द और टीस सालती है हमेशा जिसे एक नकली मुस्कान से ढका करती है ,
जो नहीं घुल पाती उनका शरीर झाँकने लगता है उधडी सिलाइयों से और पड़ते है गहरे निशान, देखने वाले निगाहों से और इशारों से कोंचते है ,उधडे रिश्तों को ,और वो बिता देती है पूरी उम्र घुटन में ,उनके भीतर की उमस उन्हें ही भिगोती है पसीजती है ,सूखती है पर उतार नहीं पाती वो रिश्ते कैसे सामना करेंगी दुनिया का रिश्तों की पैरहन के बिना निर्वस्त्र रह जायेंगी,
कुछ के पास वो पैरहन भी नहीं होता बेलिबास होती है क्योंकि उनका रिश्ता किसी और को ढक रहा होता है और वो सोचती है कोई नहीं देख रहा ,मांग के सिन्दूर को गहरा करती है ,मंगलसूत्र कुछ और बड़ा, आत्मविश्वास का पाउडर चेहरे पर कुछ ज्यादा जिससे चेहरा सफ़ेद दिखे ,पर चेहरा सफ़ेद दिखने की कोशिश में पीला दिखता है रक्तहीन, वे दिखाती है मेरे पास सब है ,उस राजा की तरह जो हवा का लिबास ओढ़े सड़क पर निकल गया था ...खुद को मुगालते में रखती है,
एक नई कौम अंकुरित हुई है हाल में उसी मिट्टी से,संस्कारों की खाद से सींची हुई, जिसके चेहरे पर आत्मविश्वास थोपा हुआ नहीं है,जड़े ज्यादा गहरी है, प्यार करने की कोशिश की बजाय प्यार करने में यकीन करती है,अडजस्ट करने के नाम पर इनकार करती है एक नाप बड़े या छोटे रिश्तो में उतरने के लिए या खुद चुनती है अपने नाप जिससे सांस ले सके या चुने हुए रिश्तों को परखती है, किसी भी घुटन,उमस को झेलने की बजाय आज़ाद कर लेती है खुद को, रिवाज़ खुद गढ़ने लगी है,रिश्तो के लिबास के बिना भी खुश रहती है क्योंकि वो जान गई है निर्वस्त्र रहना शर्म की बात नहीं है ईश्वर ने रचा है आपको एक खूबसूरत जीवन दिया है ,उसे उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......
बहुत बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteabsolutely stunning.
ReplyDeleteसही कहा आपने के उसी के साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति !!
आज़ादी किसी की भी हो, उसे ख़त्म करना गलत है | और फिर इस तरह के फैसले तो उन लोगो पर छोड़ देने चाहिए जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं | कोई रस्म-रिवाज़ मानवीय मूल्यों के आदर किये जाने से बढ़कर नहीं हो सकता!!!
ReplyDeleteरिश्तों के लिबास की तो सच में जरूरत नहीं है ... पर हद से बड के निर्वस्त्र रहना सिर्फ इसलिए की आज़ादी है ठीक नहीं ... सोच की आज़ादी ज्यादा जरूरी है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने ...
अब वो - वो नहीं रही, हो गई है- "मैं"...सुन्दर विश्लेषण तब और अब का......
ReplyDeleteसे उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ...... गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteहम्म ..सोच रही हूँ कितना सच सच कह दिया वो भी इतनी खूबसूरती से.पता नहीं क्यों पर मुझे लगता है जैसे हर पीढ़ी को लगता है कि नई पीढ़ी ज्यादा आजाद है.वो समझौता नहीं करती..पर कहाँ कुछ ज्यादा बदला है..थोडा बहुत इधर उधर बस ..
ReplyDeleteमेरे ख़याल से प्यार दो तरह का होता है.. एक जिससे आपको शुरुआत में ही प्यार हो जाए... और एक जो धीरे धीरे ज़िन्दगी में पसरता जाता है... और अक्सर ऐसा होता है की धीरे धीरे रूह को गिरफ्त में ले लेने वाला प्यार ही अगले जन्मों तक का रुख करता है वरना रिश्ते बिखरने में देर ही कितनी लगती है...
ReplyDeleteशुक्रिया ज़िन्दगी.....
ReplyDeleteबहुत सही :)
ReplyDeletegood...good...too good.........
ReplyDeleteएक सच को निर्वस्त्र खड़ा कर दिया....स्वीकारने में झिझक होगी ही...
बेहतरीन लिखा...
अनु
बेहतरीन !
ReplyDeleteभरोसे के निर्णय और निर्णयों पर भरोसा।
ReplyDeleteइस आलेख में आपने अपनी सबसे अलग और भारी आवाज से ‘चुप’ रहे लोगों को अपनी वाणी दी है, उन्हें ऊर्जस्वित किया है।
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सच्चा प्यार चाहिए या नानवेज जोक..... ड़ाल करें - ब्लॉग बुलेटिन
रिश्तों की पैरहन .... के तीन दृश्य दिखाये .... अधिकांश रूप से लोग पहले दृश्य के दिखाई देते हैं .... अंतिम दृश्य के लोगों का जीवन कैसा होता है नहीं जानती ...पर आज़ादी इतनी भी सही नहीं कि बाद में मात्र लोग हाथ मलते रह जाएँ .... न घर के रहें न घाट के
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ReplyDeleteमैं एक उदाहरण सोचता हूं सोनलजी।
ReplyDeleteमान लीजिए कि समाज की व्यवस्था कहीं नहीं हो। लड़के को भी अपनी दुल्हन खोजने की उतनी ही आजादी हो जितनी कि एक दुल्हन को अपना दूल्हो खोजने की हो। पूरी तरह मुक्त। जिसे प्यार करे उसे ही अपनाए।
अब पता चलता है कि एक ही प्रेमिका के प्यार में कई पुरुष हैं या एक ही प्रेमी के प्यार में कई महिलाएं हैं। ऐसे में फेयर सलेक्शन का आदिम तरीका ही बचेगा। जो जंगल में होता है। जो ताकतवर उसकी दुल्हन।
हम सभ्य समाज में इसे भी नकार देते हैं।
अब एक दूसरी स्थिति : एक दुल्हन को एक दूल्हा पसंद आ गया, लेकिन उस दूल्हे को एक दूसरी दूल्हन पसंद है। दूसरी दुल्हन को तीसरा व्यक्ति पसंद है जो शादीशुदा है।
क्या मामला उलझ नहीं जाएगा।
आखिर में यही रास्ता बचता है कि फेयर सलेक्शन और मुक्त समाज के बीच एक सामान्य समाज है जो सभी आगा-पीछा सोचकर दो लोगों को मिलाने का प्रयास करता है।
बाकी प्रेम का मामला मुझे (निजी तौर) कम समझ में आता है... :)
एक स्वीकारोक्ति...
ReplyDeleteबीएस पाबलाजी के जन्मदिन वाले ब्लॉग पर पता चला कि आपका और मेरा जन्मदिन एक ही दिन आता है। बस यहीं तक आपको जानता रहा। आज चिठ्ठा चर्चा से लिंक लेकर पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूं।
अच्छा लिखती हैं आप, कई पिछली पोस्टों पर जा आया... आभार। आगे नियमितता बनाए रखने का प्रयास रहेगा।
बात तो सोलह आना दुरुस्त है, पर है अभी कोसों दूर |
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12 -07-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... रात बरसता रहा चाँद बूंद बूंद .
sonal
ReplyDeletewonderful post
keep it up
बस इस नई कौम से ही सारी आशाएं हैं...
ReplyDeleteउसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......
ReplyDeleteऐसा हमेशा संभव नहीं...
aapka lekh bahut achchha lga ...aksar yahi hota hai ...ek anchahe rishte ko jina padta hai ..
ReplyDelete"जो नहीं घुल पाती उनका शरीर झाँकने लगता है उधडी सिलाइयों से और पड़ते है गहरे निशान, देखने वाले निगाहों से और इशारों से कोंचते है ,उधडे रिश्तों को ,और वो बिता देती है पूरी उम्र घुटन में ,उनके भीतर की उमस उन्हें ही भिगोती है पसीजती है ,सूखती है पर उतार नहीं पाती वो रिश्ते कैसे सामना करेंगी दुनिया का रिश्तों की पैरहन के बिना निर्वस्त्र रह जायेंगी,"
ReplyDeleteआज तो तुम्हारा हाथ चूमने का मन कर रहा है सोनल ! बस यूँ ही लिखती रहो!......<3
बहुत कमाल लिखती हैं सोनल. अधिकांश औरतों का दर्द यही है कि वो तमाम उम्र अपने नाप से छोटे वस्त्र में खुद को अटाने में बीता देती है, सामाजिकता ओढ़ कर ही तो जीवन पार किया जाना है. सामाजिक बदलाव और स्त्री का अपने अधिकारों के लिए सचेत होने के लिए सन्देश...
ReplyDeleteबहुत गहरी समझ से लिखा है आपने, बधाई.
बहुत बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteबेहतरीन ढंग से आपने लिखा है
आभार
बहुत सही लिखा सोनल जी ...एक सशक्त प्रस्तुति..
ReplyDeleteउसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ...... गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeletevashikaran mantra