कायर ही तो है
देखी है पीठ
हर अवसर पर
प्रत्यंचाए तनी थी
रणभेरी बजी थी
गूंजी थी टंकार
और वह
ढूंढ रहा था
ऐसा स्थान जहां
ना पहुंचे आर्तनाद
ना कोई चीत्कार
वही था आयोजक
वही निमित्त था
कल तक चिंघाड़ता
अट्टहास करता
आज काँप रहा है
भावी रक्तपात
भांप रहा है
छाया में गिद्ध
देखता है प्रतिदिन
उनके आभासी नख
भेदते है आत्मा
सोचा ना था उसने
जब शिराओ से
निकल बहेगा
गिरेंगे मुंड
विजय का रस
कसैला करेगा
देह को उसकी
श्मशान जीवित हो
धिक्कारेंगे
और अपनी छाया
दोषी ठहरायेगी
रक्त मज्जा से सने
अमृत कलश को
चख पायेगा
मृत्यु के दावानल में
स्वयं जीवित रह पायेगा
देखी है पीठ
हर अवसर पर
प्रत्यंचाए तनी थी
रणभेरी बजी थी
गूंजी थी टंकार
और वह
ढूंढ रहा था
ऐसा स्थान जहां
ना पहुंचे आर्तनाद
ना कोई चीत्कार
वही था आयोजक
वही निमित्त था
कल तक चिंघाड़ता
अट्टहास करता
आज काँप रहा है
भावी रक्तपात
भांप रहा है
छाया में गिद्ध
देखता है प्रतिदिन
उनके आभासी नख
भेदते है आत्मा
सोचा ना था उसने
जब शिराओ से
निकल बहेगा
गिरेंगे मुंड
विजय का रस
कसैला करेगा
देह को उसकी
श्मशान जीवित हो
धिक्कारेंगे
और अपनी छाया
दोषी ठहरायेगी
रक्त मज्जा से सने
अमृत कलश को
चख पायेगा
मृत्यु के दावानल में
स्वयं जीवित रह पायेगा
bahut bhyawah tasveer khinch di pankiyo se..lekin safal hui sarthk kavita
ReplyDeleteये तो कड़क कविता हो गयी!
ReplyDeleteवही था आयोजक
ReplyDeleteवही निमित्त था
कल तक चिंघाड़ता
अट्टहास करता
आज काँप रहा है!!
बढ़िया !
प्रवाहमय ओजपूर्ण कविता..
ReplyDeleteनिःशब्द हूँ.................
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना.........................
सस्नेह
अनु
बेहद सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteश्मशान जीवित हो
ReplyDeleteधिक्कारेंगे
और अपनी छाया
दोषी ठहरायेगी
हरेक पंक्तियाँ लाजवाब ..
सशक्त अभिव्यक्ति ..
सादर !
सशक्त भावभिव्यक्ति...
ReplyDeleteइसमें अमरीका और यूरोप के इस्लामोफ़ैशिज़्म से टकराव की छाया है जो अगले महायुद्द का कारण है ।
ReplyDeleteकवि भावी को भाँप गया है । बड़ी कविता है । क्या कहूँ ।
सस्वर पाठ में स्वाद आया.
ReplyDeleteसमझने के लिए ज़ोर मैंने लगाया नहीं.
आशीष
--
इन लव विद.......डैथ!!!
श्मशान जीवित हो
ReplyDeleteधिक्कारेंगे
और अपनी छाया
दोषी ठहरायेगी
sundar aur sarthak, badhai.
बहुत क्रोध और रोष में लिखी रचना ...
ReplyDeleteये सच है की ये सब संभव नहीं ... जल जाता है खुद आप ही ..
sashakt rachna.....
ReplyDeleteप्रगतिवाद के साथ,यथार्थवाद प्रयोगवाद |
ReplyDeleteरचना हेतु साधुवाद !साधुवाद !!साधुवाद !!!
तीसरे विश्वयुद्ध का काल्पनिक दृश्य आँखों में दिखने लगा, यूँ तीसरे विश्वयुद्ध की कल्पना भी संभव नहीं, युद्ध के पहले दिन पहले पल में ही पूरी दुनिया समाप्त हो जायेगी. सभी के पास एक साथ पूरी दुनिया को खत्म कर देने वाले परमाणु बम. कौन बचेगा? बहुत गहरी सोच है रचना में, शुभकामनाएँ.
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