Pages

Tuesday, July 10, 2012

रिश्तों की पैरहन.

उसे प्यार नहीं था पर कर रही थी कोशिश प्यार करने की क्योंकि यही रिवाज़ है, हर लड़की को चाहना होता है अपने होने वाले पति को, और और समझाना होता है यही है वो राजकुमार जिसका इंतज़ार करती आ रही है सदियों से,जब नख से शिख तक माप तौल चल रही होती है लड़की की, उसके पिता के बजट की, तब भी उसे अपने होने वाले पति में ढूंढना होता है महान आदर्श पुरुष.जो हर तरह से उसके योग्य है ,उसके माँ पिता तो बस माध्यम है चुना तो स्रष्टि ने है ना उसके लिए, अपने सपनो के खांचे में फिट करके देखती है नहीं होता ,तो  अटाने की कोशिश करती है वैसे ही जैसे कोई नया सूट जो एक साइज़ छोटा हो उसे शरीर पर चढ़ा लिया जाए 

...क्योंकि बस वही है उसके पास वही सर्वश्रेष्ट है ,ये कोशिश जिसे अडजस्ट करना कहते है चलती रहती है ताउम्र, कुछ खुद को घोल देती है रोज़ थोडा थोडा और सुकून से सांस लेती है अब घुटन नहीं होती पर अपने को खोने का दर्द और टीस सालती है हमेशा जिसे एक नकली मुस्कान से ढका करती है ,

जो नहीं घुल पाती उनका शरीर झाँकने लगता है उधडी सिलाइयों से और पड़ते है गहरे निशान, देखने वाले निगाहों से और इशारों से कोंचते है ,उधडे रिश्तों को ,और वो बिता देती है पूरी उम्र घुटन में ,उनके भीतर की उमस उन्हें ही भिगोती है पसीजती है ,सूखती है पर उतार नहीं पाती वो रिश्ते कैसे सामना करेंगी दुनिया का रिश्तों की पैरहन के बिना निर्वस्त्र रह जायेंगी,
कुछ के पास वो पैरहन भी नहीं होता बेलिबास होती है क्योंकि उनका रिश्ता किसी और को ढक रहा होता है और वो सोचती है कोई नहीं देख रहा ,मांग के सिन्दूर को गहरा करती है ,मंगलसूत्र कुछ और बड़ा, आत्मविश्वास का पाउडर चेहरे पर कुछ ज्यादा जिससे चेहरा सफ़ेद दिखे ,पर चेहरा सफ़ेद दिखने की कोशिश में पीला दिखता है रक्तहीन, वे दिखाती है मेरे पास सब है ,उस राजा की तरह जो हवा का लिबास ओढ़े सड़क पर निकल गया था ...खुद को मुगालते में रखती है,

एक नई कौम अंकुरित हुई है हाल में उसी मिट्टी से,संस्कारों की खाद से सींची हुई, जिसके चेहरे पर आत्मविश्वास थोपा हुआ नहीं है,जड़े ज्यादा गहरी है, प्यार करने की कोशिश की बजाय प्यार करने में यकीन करती है,अडजस्ट करने के नाम पर इनकार करती है एक नाप बड़े या छोटे रिश्तो में उतरने के लिए या खुद चुनती है अपने नाप जिससे सांस ले सके या चुने हुए रिश्तों को परखती है, किसी भी घुटन,उमस को झेलने की बजाय आज़ाद कर लेती है खुद को, रिवाज़ खुद गढ़ने लगी है,रिश्तो के लिबास के बिना भी खुश रहती है क्योंकि वो जान गई है निर्वस्त्र रहना शर्म की बात नहीं है ईश्वर ने रचा है आपको एक खूबसूरत जीवन दिया है ,उसे उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......


31 comments:

  1. बहुत बेहतरीन प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  2. सही कहा आपने के उसी के साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......
    सुंदर प्रस्तुति !!

    ReplyDelete
  3. आज़ादी किसी की भी हो, उसे ख़त्म करना गलत है | और फिर इस तरह के फैसले तो उन लोगो पर छोड़ देने चाहिए जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं | कोई रस्म-रिवाज़ मानवीय मूल्यों के आदर किये जाने से बढ़कर नहीं हो सकता!!!

    ReplyDelete
  4. रिश्तों के लिबास की तो सच में जरूरत नहीं है ... पर हद से बड के निर्वस्त्र रहना सिर्फ इसलिए की आज़ादी है ठीक नहीं ... सोच की आज़ादी ज्यादा जरूरी है ...
    बहुत अच्छा लिखा है आपने ...

    ReplyDelete
  5. अब वो - वो नहीं रही, हो गई है- "मैं"...सुन्दर विश्लेषण तब और अब का......

    ReplyDelete
  6. से उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ...... गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  7. हम्म ..सोच रही हूँ कितना सच सच कह दिया वो भी इतनी खूबसूरती से.पता नहीं क्यों पर मुझे लगता है जैसे हर पीढ़ी को लगता है कि नई पीढ़ी ज्यादा आजाद है.वो समझौता नहीं करती..पर कहाँ कुछ ज्यादा बदला है..थोडा बहुत इधर उधर बस ..

    ReplyDelete
  8. मेरे ख़याल से प्यार दो तरह का होता है.. एक जिससे आपको शुरुआत में ही प्यार हो जाए... और एक जो धीरे धीरे ज़िन्दगी में पसरता जाता है... और अक्सर ऐसा होता है की धीरे धीरे रूह को गिरफ्त में ले लेने वाला प्यार ही अगले जन्मों तक का रुख करता है वरना रिश्ते बिखरने में देर ही कितनी लगती है...

    ReplyDelete
  9. good...good...too good.........
    एक सच को निर्वस्त्र खड़ा कर दिया....स्वीकारने में झिझक होगी ही...

    बेहतरीन लिखा...
    अनु

    ReplyDelete
  10. भरोसे के निर्णय और निर्णयों पर भरोसा।

    ReplyDelete
  11. इस आलेख में आपने अपनी सबसे अलग और भारी आवाज से ‘चुप’ रहे लोगों को अपनी वाणी दी है, उन्हें ऊर्जस्वित किया है।

    ReplyDelete
  12. रिश्तों की पैरहन .... के तीन दृश्य दिखाये .... अधिकांश रूप से लोग पहले दृश्य के दिखाई देते हैं .... अंतिम दृश्य के लोगों का जीवन कैसा होता है नहीं जानती ...पर आज़ादी इतनी भी सही नहीं कि बाद में मात्र लोग हाथ मलते रह जाएँ .... न घर के रहें न घाट के

    ReplyDelete
  13. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  14. मैं एक उदाहरण सोचता हूं सोनलजी।

    मान लीजिए कि समाज की व्‍यवस्‍था कहीं नहीं हो। लड़के को भी अपनी दुल्‍हन खोजने की उतनी ही आजादी हो जितनी कि एक दुल्‍हन को अपना दूल्‍हो खोजने की हो। पूरी तरह मुक्‍त। जिसे प्‍यार करे उसे ही अपनाए।

    अब पता चलता है कि एक ही प्रेमिका के प्‍यार में कई पुरुष हैं या एक ही प्रेमी के प्‍यार में कई महिलाएं हैं। ऐसे में फेयर सलेक्‍शन का आदिम तरीका ही बचेगा। जो जंगल में होता है। जो ताकतवर उसकी दुल्‍हन।

    हम सभ्‍य समाज में इसे भी नकार देते हैं।

    अब एक दूसरी स्थिति : एक दुल्‍हन को एक दूल्‍हा पसंद आ गया, लेकिन उस दूल्‍हे को एक दूसरी दूल्‍हन पसंद है। दूसरी दुल्‍हन को तीसरा व्‍यक्ति पसंद है जो शादीशुदा है।

    क्‍या मामला उलझ नहीं जाएगा।

    आखिर में यही रास्‍ता बचता है कि फेयर सलेक्‍शन और मुक्‍त समाज के बीच एक सामान्‍य समाज है जो सभी आगा-पीछा सोचकर दो लोगों को मिलाने का प्रयास करता है।


    बाकी प्रेम का मामला मुझे (निजी तौर) कम समझ में आता है... :)

    ReplyDelete
  15. एक स्‍वीकारोक्ति...

    बीएस पाबलाजी के जन्‍मदिन वाले ब्‍लॉग पर पता चला कि आपका और मेरा जन्‍मदिन एक ही दिन आता है। बस यहीं तक आपको जानता रहा। आज चिठ्ठा चर्चा से लिंक लेकर पहली बार आपके ब्‍लॉग पर आया हूं।


    अच्‍छा लिखती हैं आप, कई पिछली पोस्‍टों पर जा आया... आभार। आगे नियमितता बनाए रखने का प्रयास रहेगा।

    ReplyDelete
  16. बात तो सोलह आना दुरुस्त है, पर है अभी कोसों दूर |

    ReplyDelete
  17. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12 -07-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में .... रात बरसता रहा चाँद बूंद बूंद .

    ReplyDelete
  18. बस इस नई कौम से ही सारी आशाएं हैं...

    ReplyDelete
  19. उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ......
    ऐसा हमेशा संभव नहीं...

    ReplyDelete
  20. aapka lekh bahut achchha lga ...aksar yahi hota hai ...ek anchahe rishte ko jina padta hai ..

    ReplyDelete
  21. "जो नहीं घुल पाती उनका शरीर झाँकने लगता है उधडी सिलाइयों से और पड़ते है गहरे निशान, देखने वाले निगाहों से और इशारों से कोंचते है ,उधडे रिश्तों को ,और वो बिता देती है पूरी उम्र घुटन में ,उनके भीतर की उमस उन्हें ही भिगोती है पसीजती है ,सूखती है पर उतार नहीं पाती वो रिश्ते कैसे सामना करेंगी दुनिया का रिश्तों की पैरहन के बिना निर्वस्त्र रह जायेंगी,"
    आज तो तुम्हारा हाथ चूमने का मन कर रहा है सोनल ! बस यूँ ही लिखती रहो!......<3

    ReplyDelete
  22. बहुत कमाल लिखती हैं सोनल. अधिकांश औरतों का दर्द यही है कि वो तमाम उम्र अपने नाप से छोटे वस्त्र में खुद को अटाने में बीता देती है, सामाजिकता ओढ़ कर ही तो जीवन पार किया जाना है. सामाजिक बदलाव और स्त्री का अपने अधिकारों के लिए सचेत होने के लिए सन्देश...
    बहुत गहरी समझ से लिखा है आपने, बधाई.

    ReplyDelete
  23. बहुत बढ़िया पोस्ट
    बेहतरीन ढंग से आपने लिखा है
    आभार

    ReplyDelete
  24. बहुत सही लिखा सोनल जी ...एक सशक्त प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  25. उसके साथ जियो जिससे प्यार कर सको नाकि प्यार करने की कोशिश में ज़िन्दगी गुज़ार दो ...... गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्‍तुति।

    vashikaran mantra

    ReplyDelete