नीला उजास
सत्य है वह
या भ्रम था
मयूर वर्णी
उसका तन था
वैजयंती में
पिरो गया वह
वंशीधुन में
डुबो गया वह
नयन भी
मुंदने ना पाये
अधर भी
खुलने ना पाये
मोह मंतर
पढ़ गया वह
नीला उजास
भर गया वह
चाँद उजला
अब नहीं है
भोर भी अब
सुरमई है
अधखुली आँखे
भ्रमित मन
पौ फटी है
या ढला दिन
Bahut sunder kavita
ReplyDeleteक्यूँ असमंजस में मन
ReplyDeleteक्यूँ है व्याकुलता
सुबह भी गाती
गोधूलि बुलाती
है कौन वह मधुकर
बहुत सुंदर भाव .... नीले उजास में ही खोयी हुयी हूँ
ReplyDeleteसुन्दर सुन्दर कविता...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteवाह................
ReplyDeleteइससे खूबसूरत भला क्या हो सकता है????
अनु
नीली नीली प्यारी सी कविता
ReplyDeleteWAH WAH BAHUT KHOOBSURAT_ NAZM HAI_-
ReplyDeleteKoun hai Jo Mohan jaisi mohini mein rang Gaya ... Preet ki Madhur abhivyakti ....
ReplyDeleteअरे वाह....कमाल है..
ReplyDeleteक्या कविता है। प्रवाह तो जैसे कोई ब्रिस्क वाक करते हुये निकल गया सामने से। जय हो! :)
ReplyDeleteवाह, बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteघुघूतीबासूती