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Friday, August 31, 2012

नीला उजास




सत्य है  वह 
या  भ्रम था 
मयूर वर्णी 
उसका तन था 
वैजयंती में 
पिरो गया वह 
वंशीधुन में 
डुबो गया वह 
नयन भी 
मुंदने ना पाये 
अधर भी 
खुलने ना पाये 
मोह मंतर 
पढ़ गया वह 
नीला उजास
भर गया वह 
चाँद उजला 
अब नहीं है 
भोर भी अब 
सुरमई है 
अधखुली आँखे 
भ्रमित मन 
पौ फटी है 
या ढला दिन

12 comments:

  1. क्यूँ असमंजस में मन
    क्यूँ है व्याकुलता
    सुबह भी गाती
    गोधूलि बुलाती
    है कौन वह मधुकर

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  2. बहुत सुंदर भाव .... नीले उजास में ही खोयी हुयी हूँ

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  3. सुन्दर सुन्दर कविता...

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  4. वाह................
    इससे खूबसूरत भला क्या हो सकता है????

    अनु

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  5. नीली नीली प्यारी सी कविता

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  6. WAH WAH BAHUT KHOOBSURAT_ NAZM HAI_-

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  7. Koun hai Jo Mohan jaisi mohini mein rang Gaya ... Preet ki Madhur abhivyakti ....

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  8. क्या कविता है। प्रवाह तो जैसे कोई ब्रिस्क वाक करते हुये निकल गया सामने से। जय हो! :)

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  9. वाह, बहुत सुन्दर!

    घुघूतीबासूती

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